मां बनने की उम्र वाली 10 में से एक महिला को एंडोमेट्रियोसिस होती है। ऐसी काफी महिलाओं का या तो इलाज नहीं होता है या समुचित इलाज होता है। इस रोग के लक्षण हमेशा प्रकट नहीं होते हैं और यह अस्पष्ट इनफर्टिलिटी के करीब आधे मामलों का कारण हो सकता है।
32 वर्षीय श्रीमती शालू (बदला हुआ नाम) ने अपनी समस्या को बताते हुये कहा कि वह इस पीड़ा को तब तक झेलती रही जब तक उनके अपने जीवन में खुशी लाने के लिए उन्हें सही मार्गदर्शन और उपचार का विकल्प नहीं मिल गया। उन्होंने बताया, ''मुझे पीरियड के दौरान दर्द होता था और मुझे इससे राहत पाने के लिए दर्दनिवारक दवा लेनी पड़ती थी और बाद में जब मैं 18 वर्ष की थी तो मेरे पेट में कुछ गांठ विकसित हो गए।'' जब उनकी जांच की गयी तो एंडोमेट्रियोसिस सिस्ट का पता चला जिसके लिए उन्हें कुछ दवाइयां दी गयी लेकिन उन दवाइयों के सेवन से उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ और अंत में सर्जरी से सिस्ट को निकाला गया। उनकी स्थिति तो शादी के बाद और भी बदतर हो गयी क्योंकि उन्हें अपने पति के साथ यौन संबंध स्थापित करने में मुश्किल आ रही थी।
दम्पति की जिंदगी दिन प्रति दिन और साल दर साल और भी दयनीय होती जा रही थी क्योंकि शालू गर्भ धारण नहीं कर पा रही थी। ऐसे दम्पति के लिए विशेषकर गोद भराई जैसे किसी भी सामाजिक समारोहों में भाग लेना अत्यंत दुखदायी होता है क्योंकि ऐसे रस्म उन्हें उनके जीवन में खालीपन की याद दिलाते हैं। लेकिन जब दंपती ने गुड़गांव फर्टिलिटी सेंटर में प्रमुख आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. रिचा शर्मा से मुलाकात की तो उनका जीवन खुशियों से भर गया। जांच में उनमें कम अंडे होने का पता चला। आईवीएफ प्रक्रिया के पहले प्रयास में ही शालू गर्भवती हो गयी। आईवीएफ अब एंडोमेट्रियोसिस से पीड़ित वैसी महिलाओं के लिए वरदान बन गया है जो मां बनना चाहती हैं।
गुड़गांव फर्टिलिटी केंद्र के प्रमुख भ्रूण वैज्ञानिक डॉ. समित शेखर कहते हैं कि यदि समस्या का जल्द पता नहीं लगाया गया तो समय गुजरने के साथ अंडों की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में साथ कमी आती जाती है और इस मामले में कामयाबी उम्र, गर्भाशय की ताकत और इम्ब्रियोलाॅजी पर निर्भर करती है। समस्या का जल्द पता लगाकर और सही निर्णय लेकर आप अपनी जीवन में खुशी ला सकती हैं। तो फिर आप इंतजार किस बात का कर रही हैं?
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