भ्रूण का पालन-पोषण करने वाली बच्चेदानी की रसौलियां महिलाओं की अत्यंत व्यापक समस्या है। एक अनुमान के अनुसार 35 वर्ष से अधिक उम्र की हर पांचवीं महिला को यह समस्या होती है। ज्यादातर मामलों में ये रसौलियां कैंसरजन्य या जानलेवा नहीं होती हैं लेकिन ये संतानहीनता का कारण बन सकती हैं। इन रसौलियों के कारण माहवारी के दौरान अधिक रक्त स्राव होने के कारण एनीमिया हो सकती है।
बच्चेदानी में होने वाली इन छोटी-छोटी रसौलियों के कारण माहवारी के दौरान ज्यादा रक्त आने लगता है। यह रक्तस्राव अधिक दिनों तक चल सकता है। आम तौर पर तीन से पांच दिन में बंद हो जाने वाला रक्तस्राव दस दिन तक भी जारी रह सकता है। इससे शरीर में रक्त की कमी (एनीमिया) हो जाती है। इससे महिला को कमजोरी एवं थकान होती है। ज्यादातर मामलों में मासिक चक्र पूर्ववत रहता है। कई बार मासिक खत्म हो जाने के बाद भी बीच-बीच में योनि से खून आने की शिकायत होती है। कुछ अन्य मामलों में रसौलियों में संक्रमण हो जाने से योनि से रक्त से सना हुआ दुर्गंधयुक्त स्राव आने लगता है। ऐसा होना रसौलियों के साथ-साथ कोई अन्य बीमारी होने का संकेत हो सकता है। कुछ मामलों में मासिक स्राव के समय पेट के निचले हिस्से में दर्द की शिकायत होती है।
रसौलियां बढ़ने पर पेडू (पेल्विस) में भारीपन महसूस होने लगता है। कुछ मामलों में रसौलियां भीतर ही भीतर अपनी धुरी पर घूम जाती है जिससे पेट में अचानक तेज दर्द उठने लगता है। कई महिलाओं में रसौलियों के बहुत अधिक बढ़ जाने पर आसपास के अंगों पर दबाव पड़ने लगता है। बड़ी आंत एवं मलाशय पर दबाव पड़ने के कारण कब्ज तथा मूत्राशय पर दबाव पड़ने के कारण पेशाब रुक जाता है और थोड़ी-थोड़ी देर पर थोड़ा-थोड़ा पेशाब भी निकलता है।
ये रसौलियां संतानहीनता का बहुत बड़ा कारण हैं। अक्सर इन रसौलियों का पता संतान नहीं होने पर महिला की डाॅक्टरी जांच के दौरान ही लगता है। रसौलियों के कारण गर्भाशय में गर्भ को ठीक से जगह नहीं मिल पाती है जिससे गर्भ खुद ही गिर जाता है। कई बार संसेचित डिंब गर्भाशय की भीतरी सतह से चिपक नहीं पाता है। लेकिन कई महिलाओं में इन रसौलियों के बावजूद गर्भ ठीक से ठहर जाता है और भू्रण सामान्य रूप से बढ़ता रहता है। ऐसे मामलों में आपरेशन से प्रसव कराने की जरूरत पड़ सकती हैै। 40 साल की उम्र की तकरीबन 25 फीसदी महिलाओं की बच्चेदानी में ये रसौलियां होती हैं। हालांकि ये रसौलियां कैंसरजन्य नहीं होती हैं। समझा जाता है कि इस्ट्रोजन हार्मोन से ये रसौलियां अंकुरित होती हैं और उनका आकार बढ़ता है।
इन रसौलियों के इलाज के तौर पर पहले दवाईयां दी जाती हैं। लेकिन अगर दवाईयों से रक्तस्राव कम नहीं हो या रसौलियों के आकार का बढ़ना जारी रहे और रसौलियां बढ़ कर बहुत बड़ी हो जाये तो आपरेशन करके बच्चेदानी निकाल दी जाती है।
डिसफंक्शनल यूटैरन ब्लीडिंग (डी.यू.बी.) और एंडोमेट्रियोसिस जैसी बीमारियों की वजह से भी रक्तस्राव अधिक हो सकता है। डी.यू.बी. का पता डायल्टेशन एंड क्यूरोटार्ज (डी.एंड.सी.) नामक एक छोटे से आपरेशन के जरिये लगाया जाता है। लेकिन इन सब बीमारियों की पहचान स्त्री रोग विशेषज्ञ ही कर सकता है। कई बार महिलाएं सोचती हैं कि अल्ट्रासाउंड से ही बीमारी का पता लग जाएगा। लेकिन अल्ट्रासाउंड से हर तरह की बीमारियों की पहचान नहीं की जा सकती है। इसलिए ऐसी तकलीफ होने पर पहले किसी स्त्री रोग विशेषज्ञ को दिखाना चाहिए और अगर डाॅक्टर अल्ट्रासाउंड कराने की सलाह दें तभी अल्ट्रासाउंड कराना चाहिए। मरीज को इन समस्याओं से निजात पाने के लिए हार्मोन की गोली तभी लेनी चाहिए जब उनकी डी.एंड.सी. और अन्य सभी रिपोर्टें सामान्य हो। कुछ महिलाएं इन समस्याओं के इलाज के लिए डाॅक्टर के पास इस भय से जाने से कतराती हैं कि डाॅक्टर कहीं आपरेशन की सलाह न दे दे। लेकिन अगर रसौली बहुत बड़ी है या दवाईयों से ठीक नहीं हो रही हो और डाॅक्टर आपरेशन कराने की सलाह दे रहे हों तो आपरेशन में देर नहीं करनी चाहिए। मौजूदा समय में इन रसौलियों का इलाज लैपरोस्कोपी तकनीक से भी होने लगा है। इसके लिये चीर-फाड की जरूरत नहीं पड़ती है और न ही मरीज को कोई कष्ट होता है। अगर किसी महिला को रजोनिवृति के बाद रक्तस्राव हो या बीच-बीच में रक्तस्राव हो तो उसेे गंभीरता से लेना चाहिए क्योंकि इस तरह की तकलीफ में कैंसर होने की आशंका बहुत अधिक होती है। इसकी जांच के लिए डाॅक्टर आम तौर पर सबसे पहले डी. एंड. सी. करते हैं। डी. एंड. सी. की रिपोर्ट सही आने पर ही रोगी को दवा दी जाती है।
गर्भाशय की रसौलियों से संतानहीनता
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