गर्भावस्था के दौरान होने वाली समस्याओं में से जेस्टेशनल डायबिटीज भी एक है। स्वयं पर थोड़ा ध्यान देकर आप ना केवल गर्भावस्था की जटिलताओं से बच सकती हैं बल्कि स्वस्थ शिशु को भी जन्म दे सकती हैं।
आपकी आहार योजना और शिशु का स्वास्थ्य
गर्भावस्था के दौरान आपका आहार ही आपके शिशु का स्वास्थ्य निर्धारित करता है। ऐसे में जेस्टेशनल डायबिटीज की स्थिति में आहार योजना के बारे में आहार विशेषज्ञ से सम्पर्क करना आवश्यक हो जाता है। हो सके तो चिकित्सक से अपने आहार की सूची बना लें और कार्बोहाइड्रेट की मात्रा और अपने वजन को नियंत्रित करने का हर सम्भव प्रयास करें।
नियंत्रण खोने ना पाये
आहार का समय, मात्रा और प्रकार रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को प्रभावित करता है। समय पर सही आहार का सेवन करें और कुछ समय के लिए आहार की योजना का सख्ती से पालन करें। मिठाइयों से तौबा कर लें और दिन में एक से दो बार स्नैक्स लें। फाइबर का सेवन फलों, सब्जियों और ब्रेड के रूप में करें।
शारीरिक श्रम के कई फायदे
प्रतिदिन कम से कम 2 घंटे तक सामान्य व्यायाम करें और लगभग 30 मिनट तक कार्यरत रहें। सामान्य व्यायाम करने पर आपका शरीर इन्सुलिन का सही प्रयोग कर रक्त में शुगर के स्तर को नियंत्रित करेगा। गर्भवती महिलाओं के लिए तैराकी और टहलना अच्छा व्यायाम है।
मानिटरिंग ही बचाव है
जेस्टेशनल डायबिटीज की चिकित्सा का एक महत्वपूर्ण भाग है रक्त में शुगर की जांच। प्रतिदिन एक से दो बार घर बैठे रक्त में शुगर की मात्रा की जांच करें और इस विषय में चिकित्सक से परामर्श लें।
भ्रूण विकास और स्वास्थ्य जांच
चिकित्सक आपको फीटल किक की गिनती करने की भी सलाह देगा जिससे यह पता चल सके कि आपका शिशु सामान्य गति से क्रिया कर रहा है या नहीं। शिशु के विकास के परीक्षण के लिए अल्ट्रासाउंड कराना भी एक अच्छा विकल्प है। अगर आपका बच्चा सामान्य से बड़ा है तो आपको इन्सुलिन शाट्स लेने की आवश्यकता है।
फिटनेस चाहिए तो चेक अप है जरूरी
अगर आपको जेस्टेशनल डायबिटीज है तो समय-समय पर चिकित्सक से सम्पर्क करना आपके और होने वाले शिशु के लिए बहुत आवश्यक है। रक्त में शुगर की मात्रा को देखते हुए आप अपने आहार और वजन नियंत्रण करने के विषय में भी चिकित्सक से सम्पर्क कर सकते हैं। ग्लूकोजमीटर के प्रयोग से रक्त में शुगर की मात्रा की जांच करें।
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