गर्मियों में खासकर बच्चों में फूड प्वाइजनिंग एक आम समस्या है। गंदे हाथों से खाद्य पदार्थों को छूने और खराब हो चुके खाद्य पदार्थों को खाने से हानिकारक जीवाणु और विषैले पदार्थ पाचन तंत्र में चले जाते हैं। ऐसा आम तौर पर आलू के सलाद, फ्राई किए हुए चावल, मांस, चिकन, मछली, अंडे से बने खराब हो चुके व्यंजनों को खाने से होता है।
ग्रीष्म और वर्षा ऋतु अर्थात मई, जून और जुलाई माह में इस रोग का प्रकोप इस कारण से अधिक होता है, क्योंकि इन महीनों में इसके जीवाणु अधिक पनपते हैं। साथ ही कटे हुए फल, सब्जियां, मिठाईयां एवं अन्य खाद्य पदार्थ जल्दी खराब हो जाते हैं। मक्खी और मच्छर इनके जीवाणुओं को एक खाद्य पदार्थ से दूसरे खाद्य पदार्थ तक ले जाते हैं। जब जावाणुओं से संक्रमित खाद्य पदार्थ को कोई व्यक्ति खाता है तो वह खाद्य विषाक्तता का शिकार हो जाता है।
फूड प्वाइजनिंग होने पर रोगी के पेट में ऐंठन, जी मिचलाने, डायरिया और कभी-कभी बुखार और ठंड जैसे लक्षण हो सकते हैं। इसके लक्षण खाना खाने के दो घंटे से लेकर कुछ दिनों में प्रकट हो सकते हैं। कभी-कभी तो फूड प्वाइजनिंग, पेट के फ्लू और वायरल संक्रमण में अंतर कर पाना मुश्किल हो जाता है क्योंकि इनके लक्षण तकरीबन एक जैसे ही होते हैं। हालांकि फूड प्वाइजनिंग में रोगी को बहुत परेशानी होती है लेकिन आम तौर पर रोगी की हालत गंभीर नहीं होती और उचित समय पर डाक्टर की सलाह पर उल्टी रोकने वाली दवा, उचित मात्रा में पेय पदार्थ लेने और आराम करने पर रोगी की हालत में जल्द सुधार हो जाता है। अधिकतर लोगों को एंटीबायोटिक दवा लेने की जरूरत नहीं पड़ती। विषाक्त खाद्य पदार्थों का पता भोजन की जांच अथवा टट्टी की जांच से चल जाता है। जिआरडिया जैसे परजीवियों के संक्रमण होने पर रोगी का इलाज अलग तरीके से किया जाता है। कभी-कभी इसके लक्षण इंफ्लामेट्री बाॅउल सिंड्रोम या गंभीर पाचन समस्या के रूप में प्रकट होते हैं।
फूड प्वाइजनिंग से बचने का सबसे बेहतर तरीका यह है कि किसी खाद्य पदार्थ को छूने से पहले हाथों को अच्छी तरह से धो लेना चाहिए और कच्चे मांस या अंडे को छूने और बाथरूम से आने के बाद हाथों को किसी एंटीबैक्टीरियल साबुन से अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए। जितनी भोजन की जरूरत हो उतना ही बनाना चाहिए और बच जाने पर उसे सही तापक्रम पर रखना चाहए। आम तौर पर लोग बचे हुए साॅस और मसालों को फ्रीज में नहीं रखते हैं जबकि जीवाणु इनमें तेजी से वृद्धि करते हैं।
अधिक उम्र के लोगों और बच्चों के पाचन तंत्र की कार्यक्षमता कम होती है और उनमें जीवाणुओं को नष्ट करने वाले स्टोमेक एसिड भी कम होते हैं इसके कारण उनमें खाद्य विषाक्तता होने पर उनकी हालत गंभीर हो जाती है। गर्भवती महिलाओं को भी खाने-पीने के मामले में अधिक सतर्कता बरतने की जरूरत होती है। इसके अलावा मधुमेह, कैंसर या एड्स जैसी किसी गंभीर बीमारी या कमजोर प्रतिरक्षण क्षमता वाले लोगों में भी फूड प्वाइजनिंग होने का खतरा अधिक होता है और उनका इलाज करना मुश्किल हो जाता है।
बच्चों को खाद्य विषाक्तता होने पर शरीर में बहुत जल्द पानी की कमी हो जाती है, चमड़ी ढीली पड़ जाती है और आंखें धंस जाती हैं। बच्चा ज्यादातर निद्रावस्था में ही रहता है, उसकी चेतना कम हो जाती है, उसके शरीर में पेशाब का बनना भी कम हो जाता है और वह जल्द ही गंभीर अवस्था में आ जाता है। आरंभिक अवस्था में जीवन रक्षक घोल (ओ.आर.एस.-ओरल रिहाइड्रेशन साल्ट्स) काफी लाभदायक होता है। ओ.आर.एस. हर जगह आसानी से उपलब्ध हो जाता है। एक गिलास पानी में एक बड़ा चम्मच ओ.आर.एस. का पाउडर मिलाकर घोल बना लेना चाहिए और मरीज को यह घोल बार-बार पिलाना चाहिए। यदि बाजार में जीवन रक्षक घोल उपलब्ध नहीं है तो घर पर इसे सरलता से बनाया जा सकता है। एक गिलास पानी में एक चम्मच चीनी, चुटकी भर नमक, आधा नींबू और चुटकी भर मीठा सोडा डालकर अच्छी तरह मिलाकर घोल बना लेना चाहिए। इसके अलावा मरीज को घर में उपलब्ध नारियल का पानी, छाछ, पतली दाल, शीतल पेय, चाय जैसे तरल पदार्थ भी पिलाते रहना चाहिए। अगर बच्चे के शरीर में पानी की अधिक कमी हो गयी है, वह निद्रावस्था में या बेहोश है, उसकी सांसें तेज चल रही है, पेशाब करना बंद कर दिया है या आठ घंटे तक टट्टी नहीं रूकी हो तो उसे तुरंत नजदीक के अस्पताल में ले जाना चाहिए।
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