हेपेटाइटिस-सी रक्त से संचारित होने वाला रोग है। किसी व्यक्ति के हेपेटाइटिस-सी से संक्रमित होने पर विषाणु उसके रक्त से लिवर में चले जाते हैं, जहां ये लिवर कोशिकाओं के द्वारा फैल सकते हैं। लिवर के संक्रमित होते ही शरीर की प्रतिरोधी क्षमता प्रभावित लिवर कोशिकाओं पर आक्रमण करती है, जिससे लिवर में जलन होती है और लिवर को नुकसान होता है। लिवर का यह नुकसान धीरे-धीरे बढ़ता जात है। इसलिए हेपेटाइटिस-सी विषाणु की शुरू में ही पहचान होना जरूरी है, ताकि लिवर कम से कम प्रभावित हो।
लिवर शरीर के सबसे बड़े और सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंगों में से एक है। लिवर का काम विटामिन और खनिज संग्रह करना, भोजन तोड़ना, प्रोटीन बनाना और रसायन तोड़ना है।
संक्रमण के कारण
हेपेटाइटिस-सी से संक्रमित होने के कई कारण हैं। लेकिन इसका मुख्य कारण किसी प्रभावित व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध या रक्त संपर्क या खराब ढंग से विसंक्रमित किए गए उपकरण का प्रयोग है। हालांकि हेपेटाइटिस-सी के विषाणु रक्त में पैदा होते हैं और यह बीमारी भी रक्त से फैलती है। लेकिन हेपेटाइटिस-सी से ग्रस्त लोंगों के लार से भी यह बीमारी फैल सकती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि पूरी दुनिया में 17 करोड़ लोग इस रोग के विषाणु से ग्रस्त हैं।
कुछ लोग इस विषाणु से संक्रमित होने के 6 महीनों के भीतर ही विषाणु से मुक्त हो जाते हैं। लेकिन, अधिकतर लोग विषाणु से मुक्त नहीं हो पाते और जीवन भर हेपेटाइटिस-सी से प्रभावित रहते हैं। यह उनके लिए जिंदगी भर की परेशानी बन जाती है जिसमें यकृत खराब हो सकता है और जान तक जा सकती है।
हेपेटाइटिस-सी के लक्षण
हेपेटाइटिस-सी को आम तौर पर शांत रोग के रूप में जाना जाता है, क्योंकि इसके लक्षण शुरू में प्रकट नहीं होते। इसके बावजूद, लिवर को नुकसान होता रहता है। हालांकि इस बीमारी का अलग-अलग लोगों पर अलग-अलग असर हो सकता है। कुछ लोगों को कोई शिकायत नहीं होती है तो कुछ बेहद थक जाते हैं और बीमार महसूस करते हैं। वैसे इस रोग में आम तौर पर नींद, थकान, वजन में कमी, जुकाम, फ्लू, पेट दर्द और जांडिस जैसे लक्षण देखे गए हैं।
हेपेटाइटिस-सी की जांच
हेपेटाइटिस-सी का पता लिवर की जांच से चलता है।
हेपेटाइटिस-सी का इलाज
हेपेटाइटिस-सी के पुराने मरीजों के इलाज के लिए दो तरह की दवाइयों का प्रयोग किया जाता है इंटरफेरोन और रिबाविरिन।
इंटरफेरोन विषाणुओं के प्रभाव से लड़ने के लिए शरीर द्वारा पैदा किया जाने वाला प्रोटीन है। दवा के रूप में इंटरफेरोन शरीर की प्राकृतिक सुरक्षा को बढ़ाता है। इसे त्वचा के नीचे इंजेक्शन से दिया जाता है।
रिबाविरिन के साथ इंटरफेरोन को जोड़ने से कुछ लोगों में इलाज अधिक कारगर हो जाता है। रिबाविरिन टिकिया या कैप्सूल के रूप में होता है जिसे दिन में दो बार मुंह से लिया जाता है। यह इंटरफेरोन के प्रभाव को और विषाणु से मुक्त होने की संभावना को बढ़ाता है। लेकिन सिर्फ रिबाविरिन से इलाज से रोगी विषाणु से मुक्त नहीं हो सकता।
पुराने हेपेटाइटिस-सी के इलाज से बचाव संभव है और यह लिवर का और नुकसान होने से रोकता है। लेकिन इसकी दवा 12 महीनों तक लेनी होती है। इसके साथ ही रोगी को सिगरेट और शराब के सेवन से बचना चाहिए वरना लिवर को और नुकसान होने की आशंका होती है।
हेपेटाइटिस-सी से कैसे बचें
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