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जब बढ़ जाये पुरुषों की छाती

स्तन को नारीत्व की अभिव्यक्ति माना जाता है ऐसे में पुरुषों के लिये बढ़ी हुयी छाती शर्म एवं कुठा की बात होती है। मोटापा, शुक्राशय की बीमारियां, टेस्टेस्टेराॅन हार्मोन का स्राव नहीं होने, इस्ट्रोजेन हार्मोन का अधिक स्राव होने, पिट्यूटरी ग्रंथि अथवा एड्रीनल ग्रंथि में ट्यूमर और लीवर सिरोसिस जैसी बीमारियांे तथा कुछ खास दवाईयों के सेवन पुरूषों की छाती में उभार के लिये जिम्मेदार हैं। काॅस्मेटिक एवं प्लास्टिक सर्जरी की विभिन्न तकनीकों की मदद से पुरुषों की छाती में उभार को दूर किया जा सकता है।
महिलाओं के सौंदर्य और आकर्षण में चार चांद लगाने वाले स्तन पुरुषों के लिये लज्जा और हीन भावना के कारण बन जाते हैं। चिकित्सकों के अनुसार लड़कियों में किशोरावस्था में इस्ट्रोजेन हार्मोन के स्राव के कारण स्तन का विकास होने लगता है जबकि पुरुषों में इस हार्मोन की कमी के कारण उनके स्तन का विकास नहीं हो पाता है और इस कारण उनकी छाती सपाट रहती है। इस्ट्रोजेन के अलावा प्रोजेस्टेराॅन, प्रोलेक्टिन, ग्रोथ हार्मोन, इंसूलिन तथा थाॅयराॅयड हार्मोन का भी स्तनों के विकास में योगदान होता है। लेकिन कुछ पुरुषों में अन्य कारणों से उनकी छाती महिलाओं जैसी उभरी होती है जिससे उन्हें शर्मनाक स्थितियों का सामना करना पड़ता है। चिकित्सकीय भाषा में इसे गाइनीकोमैस्टिया कहा जाता है।
नयी दिल्ली के नेहरू प्लेस में अंसल टावर स्थित इमेज एंड अल्फा वन एंड्रोलाॅजी सेंटर के निदेशक डा. अनूप धीर का कहना है कि पुरुषों में स्तन बढ़ने का सबसे सामान्य कारण मोटापा है। मोटे व्यक्तियों में शरीर के अन्य अंगों के साथ-साथ स्तन में भी वसा जमा होता है जिससे उनके स्तन लड़कियों से प्रतीत होते हैं। इसके अलावा शुक्राशय की बीमारियों, टेस्टेस्टेराॅन हार्मोन का स्राव नहीं होने, इस्ट्रोजेन हार्मोन का अधिक स्राव होने, पिट्यूटरी ग्रंथि अथवा एड्रीनल ग्रंथि में ट्यूमर, लीवर सिरोसिस आदि बीमारियों के कारण भी पुरुषों में स्तन का विकास होने लगता है। कुछ खास दवाईयों के सेवन से भी पुरुषों में स्तन का विकास हो सकता है।
पुरुषों के बढ़े हुए स्तन को काॅस्मेटिक सर्जरी (गाइनीकोमैस्टिया) से ठीक किया जा सकता है लेकिन सर्जरी से पहले इसके कारण का पता लगाना जरूरी है। जैसे- उस व्यक्ति को लीवर की बीमारी तो नहीं है, उसने इस्ट्रोजेन या स्टेराॅयड दवा का सेवन तो नहीं किया है। कारण का सही-सही पता नहीं चलने पर उसे मैमोग्राम या स्तन का एक्स-रे कराने की सलाह दी जाती है क्योंकि इससे स्तन की बनावट के साथ-साथ स्तन कैंसर का भी पता चल जाता है। हालांकि ऐसे मामलों में स्तन कैंसर होने की संभावना बहुत कम होती है फिर भी इसकी जांच जरूरी है। इस जांच के आधार पर ही मरीज का इलाज किया जाता है। लेकिन अगर मरीज को कोई गंभीर बीमारी नहीं है, उसे सिर्फ हारमोन असंतुलन की अथवा कोई सामान्य समस्या है तो उसके स्तन को काॅस्मेटिक सर्जरी से ठीक किया जा सकता है। स्तन की काॅस्मेटिक सर्जरी करने से पहले भी मैमोग्राम और एक्स-रे कराना जरूरी है क्योंकि इससे स्तन में वसा और ग्र्रंथि कोशिकाओं की मात्रा का भी पता चल जाता है और इसके आधार पर ही सर्जरी के तरीके का चयन किया जाता है। हालांकि सर्जरी के कुछ मामलों में संक्रमण, रक्तस्राव और एनीस्थिसिया के दुष्प्रभाव की संभावना होती है। इसके अलावा सर्जरी के निशान, स्तन के पिगमेंट में स्थायी परिवर्तन और दोनों स्तन या निप्पल में थोड़ी असमानता भी हो सकती है। ऐसे मामलों में दोबारा आॅपरेशन की जरूरत पड़ती है। सर्जरी के एक साल बाद तक स्तन में कोई अनुभूति नहीं हो सकती है और उसमें सुन्नपन आ सकता है जो अपने आप ठीक हो जाता है।



इस सर्जरी से आठ घंटा पहले से मरीज को कुछ भी खाने-पीने से मना किया जाता है। यदि मरीज पहले से कोई दवा खा रहा हो तो उसे भी रोक दिया जाता है। यहां तक कि एस्प्रीन या कोई अन्य दर्द निवारक दवा का सेवन करने से भी मना किया जाता है क्योंकि इससेे सर्जरी के दौरान रक्तस्राव होने की संभावना होती है। धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों को सर्जरी से दो हफ्ते पहले धूम्रपान रोक देने और जख्म भरने तक धूम्रपान नहीं करने की सलाह दी जाती है क्योंकि धूम्रपान से रक्त संवहन में कमी आती है और जख्म को भरने में अधिक समय लगता है। इस सर्जरी में आम तौर पर एक से डेढ़ घंटे का समय लगता है।



सर्जरी से पहले यह पता लगाना जरूरी है कि मरीज के स्तन में ग्रंथि कोशिकाओं अथवा वसा कोशिकाओं की अधिक वृद्वि हुई है और इसी के आधार पर सर्जरी की जाती है। यदि स्तन बढ़ने का कारण ग्रंथि कोशिकाएं हैं तो कोशिकाओं को स्कालपेल से काट कर निकाला जाता है। कभी-कभी इसके साथ लाइपोसक्शन तकनीक का भी इस्तेमाल किया जाता है। इसके लिए स्तन के निप्पल के चारों ओर के काले हिस्से के किनारे पर आधे इंच से भी कम लंबाई का चीरा लगाया जाता है और उससे अतिरिक्त ग्रंथि अथवा वसा कोशिकाओं को काटकर बाहर निकाल दिया जाता है। यदि स्तन बढ़ने का कारण वसा कोशिकाओं की वृद्धि है तो इस सर्जरी की तकनीक में थोड़ा फेर-बदल किया जाता है। इसके लिए लाइपोसक्शन तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। स्तन के काले हिस्से के किनारे या कांख वाले हिस्से में आधे इंच से भी कम लंबाई का चीरा लगाया जाता है और वैक्युम पंप लगे कैनुला नामक एक पतली खोखली नली को इसमें प्रवेश कराया जाता है। इस कैनुला को त्वचा के नीचे घुमाया जाता है जिससे वसा टूट जाते हैं और पंप के जरिये बाहर आ जाते हैं। इस प्रक्रिया के समय मरीज कंपन या घर्षण सा महसूस करता है लेकिन उसे आम तौर पर दर्द नहीं होता। कुछ मामलों में जब अधिक मात्रा में ग्रंथि या वसा कोशिकाओं को निकाला जाता है तो नये छोटे स्तन पर त्वचा ठीक से फिट नहीं हो पाती। ऐसे मामलों में स्तन के काले हिस्से की त्वचा में एक चीरा लगाकर अतिरिक्त त्वचा को काट कर निकालना पड़ता है। कुछ मामलों में अलग से चीरा लगाकर एक छोटी नली को उसमें प्रवेश कराया जाता है और उससे अतिरिक्त द्रव्य को बाहर निकाला जाता है। सर्जरी के बाद चीरे के ऊपर पट्टी बांध दी जाती है। सर्जरी के बाद कुछ दिन तक मरीज असामान्य महसूस करता है। यदि मरीज को हल्का दर्द हो रहा हो तो उसके लिए दवाईयां दी जाती हैं। कुछ मामलों में सर्जरी के बाद सूजन या गूमड़ सा महसूस होता है। इसे ठीक करने के लिए मरीज को एक-दो सप्ताह तक रात में एक खास पोशाक पहनने को दी जाती है। कुछ सप्ताह में सूजन ठीक हो जाती है। मरीज को इसका पूरा फायदा नजर आने में तीन से छह महीने का समय लग जाता है।


इस सर्जरी के कुछ घंटे बाद ही मरीज चलने-फिरने लगता है और दूसरे दिन से काम पर जा सकता है। यदि मरीज को टांके लगाये गये हों तो वे 5-6 दिन में गल जाते हैं। मरीज को एक-दो सप्ताह तक शारीरिक संबंध नहीं बनाने और तीन सप्ताह तक भारी व्यायाम नहीं करने की सलाह दी जाती है। एक महीने के अंदर मरीज पहले की तरह अपनी सामान्य गतिविधियां करने लगता है। मरीज को कम से कम छह महीने तक सर्जरी के निशान को धूप से बचाना चाहिए क्योंकि धूप के संपर्क में आने पर चीरे का निशान काला पड़ सकता है। यदि धूप से बचना संभव नहीं है तो मजबूत सनब्लाॅक का इस्तेमाल करना चाहिए।


डा. अनूप धीर नयी दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल तथा आसलोक अस्पताल से जुड़े हैं। वह नयी दिल्ली के नेहरू प्लेस में अंसल टावर स्थित इमेज एवं अल्फा वन एंड्रोलाॅजी सेंटर के निदेशक हैं।


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