जैव घुलनशील स्टेंट की आधुनिकतम प्रौद्योगिकी दिल की धमनियों की बीमारियों के इलाज में क्रांति का सूत्रपात करेगी और खास तौर पर भारतीय मरीजों के लिये यह प्रौद्योगिकी वरदान साबित हो सकती है।
भारत में तेजी से बढ़ रहे हृदय वाहिका (कार्डियोवैस्कुलर) रोगों के प्रकोप पर अंकुश लगाने में जैव घुलनशील स्टेंट कारगर साबित हो सकता है।
सुप्रसिद्ध हृदय रोग विषेशज्ञ तथा फोर्टिस एवं एस्कार्ट्स अस्पताल समूह के डीन डा. उपेन्द्र कौल ने ''जैव घुलनषील स्टेंट : भविश्य के लिये एक दृष्टि'' नामक शोध पत्र प्रस्तुत करते हुये कहा, ''इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी ने काफी लंबा रास्ता तय कर लिया है। इसकी शुरुआत बैलून एंजियोप्लास्टी से हुयी और बाद में धातु स्टेंट का विकास हुआ। इसके बाद औषधि युक्त स्टेंट विकसित हुआ लेकिन अब इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी की वैसी तकनीक हमारे पास हासिल हो गयी है जो भविष्य में क्रांति का सूत्रपात करेगी। इस तकनीक से मरीजों को होने वाले लाभों पर किये गये अध्ययनों से साफ तौर पर पता चला है कि जैवघुलनशील उपकरण दिल की धमनियों की बीमारियों के इलाज के भविष्य हैं।''
एबसार्ब परीक्षण के पहले चरण के निष्कर्षों से पता चला है कि जैव घुलनशील स्टेंट से न केवल दिल की धमनियों की बीमारियों का सफलतापूर्वक उपचार हो जाता है बल्कि दो साल में उपचारित रक्त नलिकायें किसी स्थायी प्रत्यारोपण से बाधित हुये बगैर फैलने और सिकुड़ने में समर्थ हो जाती हैं और जिससे स्टेंट के घुल जाने का पता चलता है। इसके अलावा मरीजों का दो साल तक निगरानी एवं परीक्षण करने पर पता चला कि उनमें रक्त के थक्के बनने (थ्रोम्बोसिस) की भी समस्या नहीं आयी। यही नहीं मरीजों में छह माह से लेकर दो साल के भीतर दिल की कोई अन्य बड़ी समस्या भी नहीं प्रकट हुयी।
डा. उपेन्द्र कौल बताते हैं, ''मौजूदा अनुमानों से पता चलता है कि 2020 तक विश्व में दिल और धमनियों की बीमारियों का सबसे अधिक बोझ भारत को झेलना पड़ेगा। अनुमानों के अनुसार इन बीमारियों से होने वाली मौतों में से एक तिहाई मौतें भारत में हांगी। इसका मतलब यह हुआ कि अनेक भारतीय युवा अवस्था में ही मौत के शिकार बन जायेंगे। ''
डा. उपेन्द्र कौल ने कहा कि आज पहले की तुलना में अधिक संख्या में युवा भारतीय दिल की धमनियों की बीमारियों के षिकार बन रहे हैं। आज तनावपूर्ण एवं भागदौड़ वाली जीवन षैली के कारण हमारा भविष्य और अधिक धुमिल प्रतीत हो रहा है। पष्चिमी देषों की तुलना में भारत में लोग 10 से 15 साल पहले ही दिल की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। अनुमान है कि भारत में दिल की धमनियों की बीमारियों से ग्रस्त लोगों की संख्या साढ़े चार करोड़ है।''
डा. उपेन्द्र कौल का मानना है कि अगर भावी परीक्षणों एवं अध्ययनों के दौरान दिल की धमनियों में अधिक जटिल अवरोधों एवं रुकावटों में जैव घुलनशील स्टेंट बेहतर साबित हो गये तो आने वाले समय में ये स्टेंट दिल की धमनियों की बीमारियों के मरीजों के इलाज के नये मानदंड बन जायेंगे।
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