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कहीं कमर दर्द स्कोलियोसिस का संकेत तो नहीं

कमर दर्द का एक कारण स्कोलियोसिस भी है। स्कोलियोसिस नामक रोग में रीढ़ की हड्डी में असामान्य रूप से विकृति आ जाती है। इस बीमारी की चपेट में बच्चे ज्यादा आते हैं और यह रोग धीरे-धीरे बढ़ता है, जिसका पता युवावस्था तक नहीं चलता।
14 साल की होनहार और मेहनती सुरभि (बदला हुआ नाम) को कोई भी शारीरिक विकलांगता नहीं थी, लेकिन दो साल पहले सुरभि की दोस्त को उसकी पीठ के ऊपरी भाग में उभार नजर आया। शुरुआत में तो उसके माता-पिता ने इसे बढ़ती उम्र का कारण माना, लेकिन जब कोई सुधार नजर नहीं आया, तब उन्होंने डॉक्टर से सलाह ली। शुरुआती चेकअप में डॉक्टर ने पीठ दर्द को सामान्य बताया, लेकिन कंधे की जांच रिपोर्ट में उसके कंधे में विकृति का पता चला। इसके बाद एक्स-रे और एम.आर.आई. जांचों से पता चला कि सुरभि स्कोलियोसिस बीमारी से पीड़ित है। उसने नियमित रूप से डॉक्टरी परामर्श लिया और रीढ़ की हड्डी के संतुलन को बनाने के लिये सर्जरी का सहारा लिया।
कारण
हालांकि 80 से 86 प्रतिशत मामलों में स्कोलियोसिस के कारण अज्ञात होते हैं। कई बार जन्मजात कारण, ट्यूमर, चोट या किसी खास चिकित्सीय स्थिति जैसे लकवा (पैरालिसिस) या मांसपेशियों के कमजोर होने से भी स्कोलियोसिस होने का खतरा बढ़ जाता है।
ज्यादातर मामलों में स्कोलियोसिस का स्वरूप हल्का होता है, लेकिन कुछ मामलों में उम्र के साथ यह रोग बिगड़कर गंभीर रूप अख्तियार कर लेता है। रीढ़ की हड्डी शरीर का संतुलन बनाने में सहायक होती है और अगर इसमें असंतुलन हो तो यह विकलांगता का रूप ले लेती है। कई मामलों में गंभीर स्कोलियोसिस के लंबे समय तक चलने के कारण पीठ-दर्द, फेफड़ों और हृदय के क्षतिग्रस्त होने की आशंकाएं बढ़ जाती हैं। जैसे-जैसे स्कोलियोसिस बढ़ता है, वैसे-वैसे पीड़ित व्यक्ति में शारीरिक विकृतियां नजर आने लगती हैं। इस बदलाव से रोगी खुद में असहज महसूस करता है और उसका आत्मविश्वास कमजोर होने लगता है।
इलाज
हल्के स्कोलियोसिस में इलाज की कोई आवश्यकता नहीं होती, लेकिन समय-समय पर चेकअप कराना जरूरी है ताकि यह पता चल सके कि रीढ़ की हड्डी में कोई विकृति तो नहीं हुई। हालांकि रोग के गंभीर मामलों को ब्रेसिस और सर्जरी के द्वारा ही ठीक किया जा सकता है।
ब्रेसिस - यह तकनीक उन मामलों में इस्तेमाल की जाती है, जिनमें स्कोलियोसिस की समस्या न हल्की और न गंभीर (मीडियम) होती है। खास तौर से बच्चों में यह तकनीक इस्तेमाल की जाती है, क्योंकि बच्चों की हड्डियां विकसित हो रही होती हैं। ब्रेसिस तकनीक इसका इलाज नहीं है, बल्कि यह स्कोलियोसिस को गंभीर होने से रोकती है। जब बच्चे की हड्डियों का विकास पूरा हो जाता है तो ब्रेसिस का इस्तेमाल रोक दिया जाता है।
सर्जरी - रीढ़ की हड्डी में अगर गंभीर समस्या उत्पन्न हो जाए तो इस स्थिति में स्पाइन फ्यूजन सर्जरी ही एकमात्र उपाय है।
स्पाइन फ्यूजन सर्जरी स्कोलियोसिस के इलाज में सबसे कारगर और सुरक्षित तकनीक है। स्पाइन फ्यूजन का मकसद रीढ़ की हड्डी की विकृति को रोकना और जितना संभव हो सके रीढ़ की हड्डी की विकृति को सही करना है ताकि उसमें स्थिरता आ सके। सर्जरी के बाद के शुरुआती दो हफ्ते तक पीड़ित व्यक्ति को पूरी तरह से आराम करने की जरूरत होती है। ऑपरेशन के बाद के शुरुआती छह महीने तक कोई भी भारी काम या ज्यादा वजन उठाने की मनाही रहती है। नियमित तौर पर एक्स-रे और शारीरिक जांच की जाती है और साल के अंत तक व्यक्ति रोजमर्रा के काम कर सकता है।
सर्जरी पूरी तरह से सुरक्षित होती है और सर्जरी से मरीज को नुकसान नहीं बल्कि फायदा ही होता है। तकरीबन 95 प्रतिशत मामलों में सर्जरी सफल होती है लेकिन जरूरी यह है कि सर्जरी सेंटर अच्छा हो जहां योग्य एवं कुशल सर्जन तथा सभी जरूरी सुविधाएं उपलब्ध हों।


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