वर्तमान समय में स्पाइन टी.बी. (ट्यूबरकुलोसिस) के प्रकोप में काफी तेजी आ गयी है। कुछ साल पहले तक स्पाइन टी.बी. बहुत कम लोगों को होती थी लेकिन अब इनके रोगियों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। और आज स्पाइन टीबी कमर दर्द एवं गर्दन दर्द की प्रमुख समस्या बन गयी है। आम लोगों में यह धारणा है कि फेफड़े की टी.बी. की तरह स्पाइन टी.बी. भी छुआछुत की बीमारी है। लेकिन यह धारणा पूरी तरह से गलत है। दरअसल स्पाइन टी.बी. क्लोज ट्यूबरकुलोसिस होती है अर्थात इसके कीटाणु दूसरे लोगों को संक्रमित नहीं कर सकते।
स्पाइन टी.बी. होने के कारणों में शरीर में संक्रमण का होना और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होना प्रमुख है। इसलिये हमें खांसी, जुकाम, बुखार जैसी बीमारियों को हल्के ढंग से नहीं लेना चाहिये क्योंकि ये बीमारियां धीरे—धीरे रोगों से बचाव करने की हमारे शरीर की शक्ति को कम करती हंै जिससे हमारा शरीर दूसरे रोगों से मुकाबला नहीं कर पाता और हम टी.बी. एवं अन्य बीमारियों से घिर सकते है। मधुमेह और कैंसर की दवाइयां शरीर की कोशिकाओं को मारती हैं जिससे भी शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति कम होती है।
क्या हैं लक्षण
कमर एवं गर्दन के सामान्य दर्द आराम करने पर ठीक हो जाते हैं लेकिन स्पाइन टी.बी. के कारण उभरने वाले कमर एवं गर्दन के दर्द आम तौर पर आराम करने के बाद भी ठीक नहीं होते। इसके अलावा स्पाइन टी.बी. होने पर रोगी को कमर दर्द के अलावा हाथ-पैर में झनझनाहट, सुन्नपन और कमजोरी आने, बैठे-बैठे अचानक उठने पर पैरों के सुन्न हो जाने, चलते-चलते अचानक गिर जाने, लगातार कब्ज, टट्टी और पेशाब में रुकावट आने या उन पर नियंत्रण नहीं रहने और लिखावट बदल जाने जैसी समस्यायें हो सकती हैं। इलाज नहीं कराने या इलाज में विलंब होने पर स्पाइन की हड्डी अंदर से गल जाती है और रोगी को लकवा (पारालाइसिस) मार देता है। स्पाइन टी.बी. में मरीज को शाम के वक्त हल्का बुखार रह सकता है और वजन दिनों-दिन गिरता जाता है।
कैसे होती है जांच
इन लक्षणों वाले मरीजों में बीमारी का स्पष्ट तौर पर पता करने के लिये उनके रक्त का ई.एस.आर. परीक्षण, छाती का एक्स-रे, मांटुज जांच, स्पाइन की एक्स-रे जांच और कैट स्कैन जैसे परीक्षण किये जाते हंै। इनसे यह पता चल जाता है कि हड्डी गली हुई तो नहीं है या टी.बी. के कारण हड्डी के अंदर कोई संक्रमण तो नहीं रह गया है।
उपचार
इस बीमारी के दुष्प्रभावों में सबसे गंभीर है रीढ़ की हड्डी में असामान्यता उत्पन्न होना और जिसके गंभीर होने पर सर्जरी ही एकमात्र उपाय बचता है। आज के समय में कई ऐसी तकनीकें ईजाद की गई है जिसमें रीढ़ की हड्डी का ऑपरेशन न सिर्फ सुरक्षित हो गया है, बल्कि बिना चीर-फाड़ के आपरेशन होने से रोगी को बहुत जल्दी स्वास्थ्य लाभ होता है। इन तकनीकों में से एक तकनीक है बैलून कायफोप्लास्टी। इस तकनीक में बिना किसी चीर-फाड़ के रीढ़ की हड्डी के फ्रैक्चर को ठीक किया जाता है। इस प्रक्रिया में दो बैलून इस्तेमाल किये जाते है, जिससे वर्टिबल कॉलम के दोनों तरफ हड्डी को सहारा दिया जाता है। इसमें बैलून को वर्टिबल कोशिकाओं के बीच में फुलाया जाता है ताकि कोशिकाएं अपनी सही स्थिति में आ सकें। बैलून हल्के तरीके से अंदरूनी हड्डी के अंदर जाकर वर्टिबल कोशिकाओं को उठा देते हैं और इससे बीच में रिक्त स्थान हो जाता है। उस रिक्त स्थान पर बोन सीमेंट जमा दिया जाता है। सीमेंट वर्टिबल को सही स्थिति में रखने में मदद करता है। इसके बाद बैलून को पिचका दिया जाता है और बाहर निकाल दिया जाता है।
बैलून कायफोप्लास्टी में एक फ्रैक्चर का इलाज करने में तकरीबन एक घंटा लगता है। इस प्रक्रिया को करने से पहले रोगी की स्थिति का जायजा लिया जाता है। पिछले दो दशकों से यह प्रक्रिया सबसे सुरक्षित मानी जाती है। बैलून कायफोप्लास्टी द्वारा रीढ़ की हड्डी की सर्जरी से टी.बी. जैसी गंभीर बीमारी का इलाज बिना किसी चीर-फाड़ के आसानी से किया जा सकता है जिससे रोगी को जल्द आराम मिलता है और संक्रमण की गुंजाइश कम रहती है!
बैलून कायफोप्लास्टी : स्पाइन की तपेदिक का का कारगर इलाज
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