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कैसे करें अपने लाडले की दाँतों की देखभाल

शरीर के अन्य अंगों की तरह दाँतों का विकास एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। दाँतों का विकास भिन्न-भिन्न बच्चों में काफी अलग होता है। आमतौर पर ज्यादातर बच्चों में छह माह से दाँत निकलने शुरू हो जाते हैं। पहले दूध के दाँत या अस्थाई दाँत निकलते हैं। इसके बाद छह से आठ वर्ष की आयु में स्थाई दाँत निकलने प्रारंभ होते हैं। 
कुछ बच्चों में दाँत पैदाइशी होते हैं। इन्हें प्री डेसिडुयस डेंटिशन कहते हैं। इन दाँतों से बच्चे को काफी तकलीफ होती है। यह दाँत मसूड़ों पर और माँ के स्तन पर लगते हैं इसलिए ऐसे बच्चे माँ का दूध नहीं पी पाते। इसलिए इनके दाँतों को निकालना पड़ता है। 
सामान्य तौर पर बच्चों में दूध के दाँत छह महीने में आने शुरू होते हैं और ढाई से तीन साल की उम्र तक आते रहते हैं। इन दाँतों के आने के समय कई बार बच्चों के मसूड़ों में खारिश सी पैदा हो जाती है या दस्त होने लगता है। लेकिन दाँतों के निकलने से इनका कोई खास संबंध नहीं है। ये अपने आप ठीक हो जाते हैं। ये दाँत 11—12 साल की उम्र तक रहते हैं और उसके बाद छह साल की उम्र से पक्के दाँत आने शुरू हो जाते हैं। सबसे पहले एक पक्की दाढ़ निकलती है। यह दूध की दूसरी दाढ़ के सबसे पीछे निकलनी शुरू होती है। छह से 12 साल की उम्र तक स्थायी और अस्थायी दोनों तरह के दाँत निकलते हैं और 12 साल की उम्र के बाद पक्के दाँत आने शुरू हो जाते हैं।
दाँतों की सेहत एवं उसकी मजबूती के लिये दाँतों की देखभाल बहुत जरूरी है अन्यथा दाँतों की कई बीमारियाँ होने की आशंका हो सकती है। छोटे बच्चों में दाँतों की सबसे सामान्य बीमारी दाँतोें में कीड़ा लगना है। अधिकतर माताएँ बच्चों को बोतल से दूध पिलाती हैं। वे सोए हुए बच्चे को भी बोतल से दूध पिला देती हैं। यह बच्चे के लिए हानिकारक होता है और इससे बच्चे के दाँत में कीड़े लग जाते हैं। इसलिए बच्चों को सोते हुए दूध नहीं पिलाना चाहिए। बच्चा जब जाग रहा हो उसी समय दूध पिलाना चाहिए और दूध पिलाने के बाद एक-दो घूंट पानी पिला देना चाहिए। इसके अलावा बच्चों को बोतल से दूध पिलाने के बजाय कटोरी-चम्मच से दूध पिलाना चाहिए। बच्चे को एक से डेढ़ साल तक स्तनपान कराना भी जरूरी है। यह बच्चे के जबड़े और दाँत के विकास के लिए बहुत जरूरी है। 
जब बच्चों के दूध के दाँत टूट जाते हैं तो वहाँ पर पक्के दाँत आते हैं। दूध के दाँत निकलने के दौरान यह ध्यान रखना जरूरी है कि उनकी जगह पर उगने वाले दाँत जल्दी या अधिक देरी से तो नहीं आ रहे हैं। अगर ये दाँत देर से आने वाले हंै तो उसके स्थान पर कुछ तार लगाकर उस जगह को बचाया जाता है ताकि आने वाले दाँत के लिए जगह बची रहे और दाँत टेढ़े-मेढ़े न होने पायें।
बच्चों को सुबह जागने पर और रात को सोने से पहले दाँतों में ब्रश कराना बहुत जरूरी है। इसके अलावा माता-पिता को यह कोशिश करनी चाहिए कि बच्चों को मीठी चीजें कम दें और दिन भर में तीन-चार बार से अधिक मीठी चीजें न दें। अगर दिन भर में बच्चा दो बार दूध पी रहा है और खीर खा रहा है तो उसे उस दिन चाॅकलेट नहीं देना चाहिये क्योंकि मुँह के कीटाणु को जब मीठी चीज मिलती है तो वे अम्ल पैदा करते हैं और यह अम्ल दाँत को गलाता है। हालाँकि लार में अम्ल को बेअसर करने की शक्ति होती है, दिन में तीन-चार बार मीठी चीजें खा लेने पर वह उसका मुकाबला कर लेती है लेकिन उससे ज्यादा बार खा लेने पर अम्ल दाँत को सड़ाने लगते हैं। इसलिये माता-पिता की कोशिश होनी चाहिए कि बच्चा कम से कम मीठी चीजें खाए। लेकिन फिर भी अगर बच्चा मीठी चीजें खा रहा है तो उसके खाने के बाद उसे दो-तीन घूंट पानी पिला देना चाहिए या कुल्ला करा देना चाहिए। इसके अलावा बच्चों को बार-बार मीठी चीजें देने के बजाय खाना खाने के तुरन्त बाद मीठी चीजें देना चाहिए और उसे कुल्ला करा देना चाहिए। 
बच्चों को ब्रश कराते समय यह ध्यान रखना जरूरी है कि दाँतों की सफाई ठीक से हो रही है या नहीं। ऊपर के दाँतों को ब्रश करने के लिए मसूड़ों की तरफ से नीचे की तरफ आना चाहिए और खाने वाली सतह पर गोल-गोल करके या आगे-पीछे करके ब्रश करना चाहिए। इसी तरह नीचे की दाँतों में ब्रश नीचे से मसूड़ों की तरफ से ऊपर की तरफ करना चाहिए और अंदर-बाहर करना चाहिए। हमें अपने ऊपर और नीचे के जबड़े को तीन-तीन भाग में विभाजित कर लेना चाहिए और हर भाग पर कम से कम पाँच-छह बार स्ट्रोक लगाकर ब्रश करना चाहिए। दिन में दो बार ब्रश करना और खाना खाने के बाद कुल्ला करना बहुत जरूरी है वर्ना यह खाना दाँतों के बीच में फंसा रहता है जिससे दाँत सड़ने लगते हैं और मुँह से बदबू आने लगती है। इसका इलाज संभव है। 
साल में एक बार दाँतों के डाॅक्टर से अपने दाँतों का निरीक्षण जरूर कराना चाहिए। अगर दाँत में कीड़े लगे हों तो उसकी सफाई करानी चाहिए। लोेगों में यह गलत धारणा है कि सफाई कराने से दाँत कमजोर हो जाते हैं। इससे न तो दाँत घिसते हैं और न ही हड्डी कमजोर होती है, इसमें सिर्फ दाँत के ऊपर जमी गंदगी निकाली जाती है। गंदगी निकालने के बाद दाँतों पर पाॅलिश कर दी जाती है ताकि दाँत बिल्कुल चिकने हो जाएँ और उनमें खाना वगैरह न चिपके।
गर्भवती महिला को अपने आहार पर विशेष ध्यान देना चाहिए क्योंकि आहार से ही गर्भ में पल रहे बच्चे के दाँतों का भावी स्वास्थ्य निर्भर करता है। उन्हें प्रोटीन, विटामिन, कैल्शियम और विटामिन 'डी' युक्त संतुलित आहार लेना चाहिए। गर्भावस्था के समय खाने पर विशेष ध्यान नहीं देने पर बच्चे के दाँत प्रभावित हो सकते हैं। इसके अलावा जब बच्चे के दाँत आ रहे हैं तो उस समय दूध, फल आदि पर्याप्त मात्रा में देना चाहिए और उसके भोजन में कैल्शियम का विशेष ध्यान देना चाहिए। उस समय पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम नहीं लेने पर दाँत अधिक सख्त नहीं बनेंगे जितने बनने चाहिए। जब एक बार दाँत बन जाते हैं तो उसमें से कैल्शियम नहीं निकलता है और न ही बाद में उस पर कैल्शियम जमा होता है। हालाँकि पाउडर के दूध में भी कैल्शियम पूरी मात्रा में होता है फिर भी छोटे बच्चों को इसे कम से कम पिलाना चाहिए। लैक्टोजेन या अन्य दूध माँ के दूध का मुकाबला नहीं कर सकते। माँ का दूध बच्चे के लिए सर्वोत्तम आहार है। जब माँ का दूध नहीं बन पा रहा है तो लैक्टोजेन वगैरह दिया जा सकता है। हालाँकि लैक्टोजेन वगैरह की तुलना में गाय का दूध बेहतर है। अगर बच्चे को दूध का स्वाद पसंद नहीं है तो इसमें बार्नविटा, माइलो, काॅम्प्लान वगैरह मिलाकर दिया जा सकता है। लेकिन बच्चों में कृत्रिम दूध का सेवन कम से कम कराना चाहिए। छोटे बच्चों को माँ का दूध और बड़े बच्चों को गाय या भैंस का दूध पर्याप्त मात्रा में देना चाहिए। 
कई माता-पिता को इस बात को लेकर चिंता होती है कि उनके बच्चे मुँह में हाथ डालकर हाथ को चबाता है। दाँत निकलने की वजह से बच्चे को दस्त और बुखार इत्यादि होता है। माता-पिता को यह बताना जरूरी है कि चार-पाँच माह की उम्र में बच्चे का मुँह में हाथ डालना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। अगर दाँत निकलते समय दर्द होता हो तो बच्चा मुँह में हाथ डालते समय रोता है लेकिन अगर उसे दर्द नहंी हो तो वह मुँह में हाथ डालकर खुश होता है। इसके अलावा बच्चे का दाँत निकलने की वजह से दस्त और बुखार आदि नहीं होता है बल्कि ये सब अस्वच्छता अथवा अन्य कारणों से बच्चे को संक्रमण आदि हो जाने की वजह से होते हैं। बच्चे दाँत निकलने के दौरान मुँह में मिट्टी आदि ले लेते हैं जिससे उन्हें संक्रमण होने की आशंका अधिक रहती है। इसलिये बच्चे को दाँत निकलते समय माता-पिता को बच्चे की देखभाल अधिक करनी चाहिये। 


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