अनेक सहूलियतों के वाहक माने जाने वाले कम्प्यूटर एवं इंटरनेट आपके लिये असहनीय तकलीफों के भी सबब बन सकते हैं। मौजूदा समय में कम्प्यूटर जैसे कामकाज के आधुनिक उपकरणों के तेजी से बढ़ते इस्तेमाल के कारण कार्पल टनल सिंड्रोम (सी टी सी) जैसे स्नायु रोगों का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है।
इस बीमारी का खतरा केवल कम्प्यूटर का बहुत अधिक इस्तेमाल करने वालों को ही नहीं, बल्कि उन सभी लोगों को अधिक होता है जिन्हें अपनी ऊंगलियों एवं हाथों का बहुत अधिक इस्तेमाल करना पड़ता है। मिसाल के तौर पर टाइपिस्टों, मोटर मैकेनिकों और मांस काटने वालों को यह बीमारी होने की आशंका अधिक होती है। मधुमेह, गाउट एवं गठिया के मरीजों तथा शराब का बहुत अधिक सेवन करने वालों को भी कार्पल टनल सिंड्रोम का खतरा अधिक होता है। इसके अलावा गर्भधारण, रजोनिवृति और गर्भनिरोधक गोलियों के सेवन से होने वाले हार्मोन संबंधी परिवर्तन के दौरान भी यह बीमारी हो सकती है।
यह बीमारी आनुवांशिक कारणों से भी हो सकती है। कुछ लोगों में आनुवांशिक तौर पर कलाई एवं ऊंगलियों की नसों (फ्लेक्सर टेंडन)की प्राकृतिक चिकनाई कम होती है। प्राकृतिक चिकनाई कम होने पर सी टी सी होने की आशंका अधिक होती है। इसके अलावा कुछ लोगों की कलाई और ऊंगलियों में हड्डियों एवं नसों की बनावट इस प्रकार की होती है कि उन्हें यह बीमारी अन्य लोगों की तुलना में अधिक होती है। कलाई या हाथ के अगले हिस्से में चोट लगने से भी सी टी सी हो सकती है।
अगर ऊंगलियों को काम के दौरान बीच-बीच में विश्राम मिलता रहे तो सूजन एवं दबाव को कम होने में मदद मिलती है। अपने काम-काज के तौर-तरीकों में बदलाव लाकर इस बीमारी की रोकथाम की जा सकती है। अगर इस बीमारी का समय से पता चल जाये तो इसका इलाज आसान हो जाता है। कार्पल टनल सिंड्रोम की जांच नर्व कंडक्शन परीक्षण से होती है।
हाथों में सुन्नपन्न, सनसनाहट अथवा झुनझुनी, छोटी-मोटी चीजों को पकड़ने में कमजोरी, हाथ को कंधे तक उठाने में दर्द और अंगूठे, तर्जनी एवं मध्यमा में संवदेना की कमी जैसे लक्षण कार्पल टनल सिंड्रोम (सी टी सी) के लक्षण हैं।
कार्पल टनल कलाई में हड्डियों और सख्त लिगामेंट से घिरी अत्यंत पतली सुरंग जैसी संरचना है जो कलाई एवं ऊंगलियों की विभिन्न हड्डियों को आपस में जोड़ती है। कार्पल टनल कलाई के जरिये प्रवेश करते हुये ऊंगलियों में जाता है। इस सुरंग (टनल) से ऊंगलियों और अंगूठे की नसें (फ्लेक्सर टेंडन) और मध्यस्थ स्नायु (मेडियन नर्व) गुजरते हैं। ये नसें मांसपेशियों और हाथ की हड्डियों को जोड़ती हैं और ऊंगलियों की क्रियाशीलता का संचालन करती हैं। हमारा मस्तिष्क मध्यस्थ स्नायु (मेडियन नर्व) के जरिये ही हाथों एवं ऊंगलियों तक संदेश पहुंचा कर उनकी क्रियाशीलता पर नियंत्रण रखता है। हाथ एवं ऊंगलियों के हिलाने पर नसें (फ्लेक्सर टेंडन) टनल के किनारों से रगड़ खाती हैं। इन ऊंगलियों की नसों के टनल से बार-बार रगड़ खाने के कारण नसों में सूजन उत्पन्न होती है। सूजन के कारण मध्यस्थ स्नायु (मेडियन नर्व) पर दबाव पड़ता है और इससे ऊंगलियों एवं हाथों में सुन्नपन्न, कमजोरी एवं झुनझुनी पैदा होती है और गंभीर अवस्था में इनमें भयानक दर्द होता है। रोग की आरंभिक अवस्था में इसका इलाज रात में कलाई में पट्टी अथवा स्पिन्ट पहनने से हो सकता है। इससे कलाई को मुड़ने से रोका जाता है। कलाई को विश्राम देने और दवाइयों से भी आराम मिलता है। गंभीर अवस्था में चिकित्सक कार्पल टनल में कोर्टिसोन के इंजेक्शन दे सकते हैं। जिन मरीजों को उक्त तरीकों से लाभ नहीं मिलता उन्हें सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है। आधुनिक समय में सर्जरी की ऐसी तकनीकों का विकास हुआ है जिसमें चीर-फाड़ की जरूरत नहीं के बराबर होती है।
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