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किडनी फेल्योर और हाइपोथायरायडिज्म में होम्योपैथी है लाभदायक : अध्ययन

किडनी फेल्योर और हाइपोथायरायडिज्म में होम्योपैथी है लाभदायक : अध्ययनकिडनी फेल्योर और हाइपोथायरायडिज्म में होम्योपैथी के लाभों के बारे में दिल्ली स्थित डॉ. बनर्जी क्लिनिक ने दो अध्ययन किए। इन अध्ययनों के प्रारंभिक निष्कर्षों में किडनी फेल्योर और हाइपोथायरायडिज्म के काफी लोगों पर होम्योपैथी उपचार का प्रभाव सकारात्मक पाया गया है। हाइपोथायरायडिज्म पर किये गये अध्ययन के तहत 2011 से 2015 तक 2,083 रोगियों के रिकॉर्ड का विश्लेषण किया गया। अध्ययन में यह पाया गया कि चैथी बार क्लिनिक आने के बाद ही 35 प्रतिशत रोगियों में उनके सीरम थायराइड उत्तेजक हार्मोन की रीडिंग में सुधार देखा गया।


क्रोनिक किडनी रोग पर किये गये अध्ययन के तहत 2018 और 2019 में दो गैर-निरंतर महीनों में (एक महीना छोड़कर) 61 रोगियों के रिकॉर्ड का विश्लेषण किया गया। अध्ययन में पाया गया कि तीसरी बार क्लिनिक आने के बाद ही, 50-58.3 प्रतिशत रोगियों में उनके सीरम यूरिया और क्रिएटिनिन रीडिंग में सुधार देखा गया।
इन अध्ययनों के प्रयोजनों के लिए, एक कैचमेंट अवधि तय की गई और कैचमेंट अवधि के दौरान डॉ. कल्याण बनर्जी क्लिनिक में आने वाले इन बीमारियों से पीड़ित रोगियों के डेटा को निकाला गया। डॉ. कल्याण बनर्जी क्लिनिक के संस्थापक डॉ. कल्याण बनर्जी ने कहा, “इस अध्ययन के शुरुआती अवलोकन काफी दिलचस्प हैं। हाइपोथायरायडिज्म अध्ययन में, डेटा से संकेत मिला कि रोगियों को दी जाने वाली विशिष्ट होम्योपैथिक दवाएं थायरॉयड ग्रंथि के कामकाज में सुधार करने में सक्षम थीं, जिससे थायरॉयड उत्तेजक हार्मोन रीडिंग में कमी आई।


इस इलाज में रोगियों में थायराइड हार्मोन रिप्लेसमेंट की खुराक को कम करने या पूरी तरह से रोकने की क्षमता होती है। यह हाइपोथायरायडिज्म के प्राकृतिक इतिहास की समझ के विपरीत है, जो बताता है कि इस बीमारी में वृद्धि को आमतौर पर नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। हाइपोथायरायडिज्म के एक तिहाई से अधिक मरीजों को होम्योपैथिक दवाओं से लाभ हो रहा है। चूंकि अभी भारत की 11 प्रतिशतत आबादी हाइपोथायरायडिज्म से पीड़ित है इसलिए यह संख्या काफी महत्वपूर्ण है।”
डॉ. कल्याण बनर्जी ने कहा, “क्रोनिक किडनी रोग के अध्ययन में, हमने रोगियों में क्लिनिकली रूप से सबसे अधिक महत्वपूर्ण दो रीडिंग में सुधार देखा। वर्तमान में उपलब्ध कोई भी उपचार सीरम यूरिया और क्रिएटिनिन रीडिंग में कमी करने में सक्षम नहीं है। इससे मरीजों को काफी फायदा हो सकता है। हालांकि ये रीडिंग यह निर्णय लेने में अहम भूमिका निभा सकते हैं कि डायलिसिस शुरू की जानी चाहिए या नहीं। होम्योपैथिक उपचार से मरीजों को डायलिसिस शुरु नहीं करने में मदद मिल सकती है।”
डॉ. कल्याण बनर्जी क्लिनिक के डॉ. कुशल बनर्जी ने बताया, “हाइपोथायरायडिज्म और क्रोनिक किडनी रोग या किडनी फेल्योर बहुत आम बीमारियां हैं और पारंपरिक चिकित्सा में इनका कोई इलाज नहीं है। हमारे क्लिनिक में नियमित रूप से ऐसे हजारों रोगियों का इलाज किया जाता है और हमारे इलाज के बाद उनके किडनी फंक्षन टेस्ट (केएफटी) और थायरॉयड फंक्शन टेस्ट (टीएफटी) में सुधार पाया जाता है। इसलिए हमने हमारे उपचार का क्रमबद्ध मूल्यांकन करने का निर्णय लिया। हमारा उद्देश्य वास्तविक सबूत से यह पुष्टि करने का प्रयास करना था कि होम्योपैथिक उपचार से क्रोनिक किडनी रोग और हाइपोथायरायडिज्म के रोगियों को लाभ होता है।


इन दो अध्ययनों के बाद, हम आशा करते हैं कि इन पर और भी अनुसंधान किये जाएंगे। हम अपने निष्कर्षों को प्रकाशित करने और अपने उपचार प्रक्रिया को सार्वजनिक करने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे ताकि दुनिया भर के रोगियों को लाभ मिल सके। हमें उम्मीद है कि होम्योपैथिक दवाओं की प्रभावकारिता की अधिक पुष्टि करने के लिए हमारे उपचार का उपयोग कर इसी तरह के वैश्विक परीक्षण किये जाएंगे।''
डॉ. कुशल बनर्जी ने कहा, “ये शुरुआती निष्कर्ष हैं, लेकिन हम सभी डॉक्टरों को इन बीमारियों से पीड़ित रोगियों के लिए होम्योपैथिक उपचार पर विचार करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। होम्योपैथिक दवाएं अत्यधिक सुरक्षित होती हंै और किसी भी अन्य दवाओं के साथ कोई प्रतिकूल प्रतिक्रिया नहीं करती हंै। ये उपयोग करने के लिए सुरक्षित होती हैं। हमें प्रभावी परीक्षण करने के लिए इन क्षेत्रों के विशेषज्ञों के साथ मिलकर कार्य करने  और इन बीमारियों के लिए इलाज की प्रक्रिया को समझने के लिए अनुसंधान निकायों के साथ सहयोग करने में खुषी होगी।”
अतीत में होम्योपैथी को लेकर संदेह किए गए और होम्योपैथी की प्रभावविकता को लेकर जांचें की गई, लेकिन इसके वाबजूद होम्योपैथी दो सौ साल से कायम है और आगे बढ़ रहा है और भविश्य में भी आगे बढ़ता रहेगा। हाल में किये गये दो शोधों में दावा किया गया था कि होम्योपैथी की दवाइयों का कोई प्रभाव नहीं होता है लेकिन इन दावों में गंभीर खामी पाई गई। एक मामले में, जानबूझ कर कई होम्योपैथी परीक्षणों को समावेशन मानदंड के दायरे से बाहर रखा गया ताकि जो निश्कर्श निकले वह होम्योपैथी के खिलाफ हो और दूसरे मामले में, अध्ययन का इस तरह का तरीका अपनाया गया ताकि काफी परीक्षण अध्ययन के दायरे से बाहर हो जाएं। दूसरी तरफ उन समीक्षाओं पर ध्यान नहीं दिया गया जिनसे यह निश्कर्श निकला था कि होम्योपैथ से स्पश्ट तौर पर चिकित्सीय लाभ होता है। 
डॉ. कल्याण बनर्जी ने कहा, “होम्योपैथी को लेकर समाज में काफी पूर्वाग्रह मौजूद हैं। होम्योपैथ चिकित्सक के रूप में हमारे लिए जरूरी है कि हम उच्च गुणवत्ता वाले अधिक से अधिक षोध करें ताकि होम्योपैथ को लेकर जो समीक्षाएं हो उनके दायरे में इन षोधों को बाहर रखना मुष्किल हो जाए। हालाँकि, वर्तमान मुद्दा यह है कि शिक्षाविद 'साक्ष्य के अभाव' को 'अभाव के साक्ष्य' के जरिए आसानी से प्रतिस्थापित कर रहे हैं। साक्ष्य-आधारित चिकित्सा में सिखाया जाने वाला यह मूलभूत सिद्धांत है और इसे होम्योपैथी को छोड़कर हर अवधारणा पर लागू किया जाता है। दुर्भाग्य से, कई बार होम्योपैथी को लेकर भावनात्मक प्रतिक्रिया सामने आती है जो इन निष्कर्षों पर पहुंचने वाले त्रुटिपूर्ण अनुसंधान की सावधानीपूर्वक जांच पर आधारित नहीं होते हैं।''
डॉ. कल्याण बनर्जी क्लिनिक में डॉक्टर साक्ष्य-आधारित दृष्टिकोण को अपनाते हैं और चार दशकों में लाखों नुस्खों के नैदानिक अनुभव का उपयोग करके विशिष्ट बीमारियों के लिए विशिष्ट चिकित्सा और पोटेंसी संयोजन तक पहुंचे हैं। ये विशिष्ट उपचार की प्रक्रिया डॉक्टरों को साबित प्रभावी दवाओं को निर्धारित करने के लिए ठीक से प्रशिक्षित करने में मदद करते हैं। यदि किसी रोगी पर दवाओं का प्रभाव नहीं होता है, तो डॉक्टर को पता होता है कि उपचार की दूसरी पंक्ति शुरू करने की आवश्यकता है। इससे महत्वपूर्ण समय बच जाता है और डॉक्टर पारंपरिक होम्योपैथी की तुलना में कहीं अधिक प्रभावी ढंग से मामलों का आकलन करते हैं, जिससे बेहतर परिणाम प्राप्त होते हैं। डॉ. कल्याण बनर्जी क्लिनिक में, डॉक्टर हर दिन घातक रोगों से पीड़ित सैकड़ों रोगियों का होम्योपैथी से इलाज कर रहे हैं। यहां आॅर्गन फेल्योर, न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियां, कैंसर आदि जैसे मुश्किल मामलों का आम तौर पर इलाज किया जाता है। पारंपरिक चिकित्सक अक्सर यहां के परिणामों पर चकित होते हैं।


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