फच्स डिस्ट्रोफी आंख के काॅनिया की बीमारी है जो कॉर्निया कोशिकाओं की सबसे अंदरूनी परत में डिजेनरेटिव परिवर्तन के कारण होती है। कॉर्निया में कोषिका परत, एन्डोथेलियम कॉर्निया में तरल पदार्थ की उचित मात्रा को बनाए रखती हैै और इसे साफ और स्पष्ट रखती है और बीमारी को बढ़ने से रोकती है। ऐसा जमा हुए अतिरिक्त तरल पदार्थ को बाहर निकालने में परत के असमर्थ होने के कारण होता है जिससे कॉर्निया में सूजन हो जाती है और उससे दृष्टि प्रभावित होती है। धीरे-धीरे यह स्थिति बढ़ती जाती है और दोनों आंखों को प्रभावित करती है। इससे आंखों में धुंधलापन, अस्पष्ट दिखना और नजर में कमी आ जाती है।
फच्स डिस्ट्रॉफी का कारण क्या है?
इस विकार से पीड़ित लोग जब सुबह उठते हैं तो आम तौर पर उनकी दृश्टि धुंधली होती है और दिन में धीरे- धीरे और खराब होती जाती है। आनुवांशिक आधार पर यह बीमारी काफी जटिल होती है और परिवार के सदस्यों के आधार पर इसकी गंभीरता और डिग्री में अंतर होता है। हालांकि ऐसे 50 प्रतिशत मामलों में ही आनुवांशिक कारणों का योगदान होता है। हालांकि इडियोपैथिक मामलों में आम तौर पर लक्षण 40-50 साल की आयु के आसपास प्रकट होते हैं लेकिन अब यहां तक कि 30 साल की उम्र के लोगांे में भी इसके लक्षण प्रकट हो रहे हैं। कई अध्ययनों के अनुसार यह भी पाया गया है कि पुरुशों की तुलना में महिलाओं में यह बीमारी होने की संभावना दोगुनी होती है। धूम्रपान और मधुमेह जैसे जोखिम कारक भी इस स्थिति को बढ़ाने के लिए जाने जाते हैं।
इसके लक्षण क्या हैं?
शुरुआती चरणों में धुंधली या अस्पष्ट दृष्टि और साथ ही प्रकाश और चमक के प्रति संवेदनशीलता होती है और मद्धिम या चमकीली रोषनी में दृष्टि कम होती जाती है। इस स्थिति के बढ़ने पर आंखों में तेज दर्द, रात में देखने में कठिनाई, खराब दृष्टि और आंखों में कुछ कणों की उपस्थिति का अहसास जैसे लक्षण होते हैं। कई रोगी को प्रकाश के चारों ओर रंगीन प्रभामंडल दिखने लगता है।
यह कॉर्निया को किस प्रकार प्रभावित करता है?
कॉर्निया आंख का अगला हिस्सा है जिसमें तीन मुख्य परतें शामिल होती हैं -
— एपिथेलियम - यह धूल, गंदगी और बैक्टीरिया जैसे बाहरी कणों से कॉर्निया को बचाने के लिए बैरियर के रूप में कार्य करती है।
— स्ट्रोमा - यह कॉर्नियल मोटाई का 90 प्रतिषत तक होती है और यह मध्यम परत है जिसमें कोलाजन और अन्य संरचनात्मक सामग्री शामिल होती है। यह परत कॉर्निया को गुंबद-आकार और ताकत प्रदान करती है।
— एंडोथेलियम - यह कॉर्निया में तरल पदार्थ के उचित संतुलन को बनाये रखने के लिए डीसेमेट झिल्ली पर स्थित एकल परत है।
प्रारंभ में तरल पदार्थ केवल नींद के दौरान ही बन सकता है और सुबह में दृश्टि धुंधली हो सकती है और जैसे - जैसे दिन गुजरता है दृश्टि बेहतर होती जाती है। यह इस डिसआर्डर का पहला चरण है और बाद में यदि स्थिति और खराब हो जाती है तो छोटे फफोले बन सकते हैं। दूसरे चरण के दौरान, फफोले बड़े हो जाते हैं और फट जाते हैं जिससे आंखों में दर्द होने लगता है, कॉर्निया के आकार में परिवर्तन होने लगता है जिससे दृष्टि से संबंधित अन्य समस्याएं होने लगती है। जब कॉर्निया में सूजन आ जाती है और कॉर्निया के सामने फफोले बन जाते हैं तो उस स्थिति को बुलस केराटोपैथी कहा जाता है।
आंख की बायो- माइक्रोस्कापिक परीक्षण से किसी भी प्रकार की असामान्यता का पता चल जाता है और नेत्र रोग विशेषज्ञ काॅर्निया की मोटाई को मापने के लिए पैचिमेट्री टेस्ट, काॅर्निया के पिछले हिस्से को लाइनिंग देने वाली कोशिकाओं की पतली परत को देखने के लिए स्पेकुलर माइक्रोस्कोपिक टेस्ट के साथ- साथ विजुअल एक्विटी टेस्ट जैसे कुछ अतिरिक्त परीक्षण कराने का भी सुझाव दे सकते हंै।
उपचार के विकल्प क्या हैं?
लक्षणों की गंभीरता और डिग्री के आधार पर इसके उपचार में भी अंतर होता है। विशेष साल्ट सोल्युषन के इस्तेमाल के साथ आई ड्राॅप और मलहम से इलाज करने पर कॉर्निया से अतिरिक्त तरल पदार्थ को हटाने में मदद मिलती है। यह प्रारंभिक चरणों में लक्षणों से छुटकारा पाने के लिए सबसे अधिक कारगर होता है। यदि घाव में दर्द होता है, तो दर्द को कम करने के लिए घावों पर फ्लैप्स बनाने के लिए सर्जरी करने की आवश्यकता होती है।
एंडोथेलियल डिस्ट्रोफी और ओकुलर हाइपरटेंशन के मामले में, डॉक्टर इंट्राओकुलर प्रेशर (आईओपी) को कम करने के लिए ग्लूकोमा आई ड्राॅप लेने की सलाह देते हैं क्योंकि आंखों का अधिक दबाव कॉर्नियल एंडोथेलियम को नुकसान पहुंचा सकते हैं और स्थिति को और खराब कर सकते हैं।
एफडी के लिए एकमात्र इलाज कॉर्निया प्रत्यारोपण है।
पेनेट्रेटिंग केराटोप्लास्टी प्रत्यारोपण का एकमात्र विकल्प था जिसके तहत सर्जरी से क्षतिग्रस्त कॉर्निया को हटा दिया जाता था। इसमें रोगियों को इस बात का ध्यान रखने के लिए बहुत सावधान रहना पड़ता था कि घाव सालों तक भी नहीं फटे।
नेत्र विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति के साथ, लेजर एब्लेशन के विकास ने कॉर्निया प्रत्यारोपण तकनीकों में क्रांतिकारी बदलाव लाया है और रोगी की बेहतर दृष्टि के साथ जल्द रिकवरी होती है। डेसेमेट्स मेम्ब्रेन एंडोथेलियल केराटोप्लास्टी (डीएमईके) कॉर्निया की वास्तविक मोटाई के बीसवें हिस्से तक की सटीकता के साथ कॉर्निया के क्षतिग्रस्त एंडोथेलियम को प्रतिस्थापित करता है। इसके तहत ऊतक को एक छोटे चीरा के माध्यम से ध्यानपूर्वक हटा दिया जाता है, और प्रतिस्थापन दाता ऊतक को प्रतिस्थापित कर समतल कर दिया जाता है। टांके लगाने के बजाय, ऊतक को एक एयर बबल के साथ रखा जाता है जो घाव को तेजी से भरने में मदद करता है। इसके कारण कॉर्निया की सामने की सतह चिकनी रहती है और डीएमईके के साथ बरकरार रहती है जो आंख को बहुत मजबूती प्रदान करती है और आकस्मिक चोट के प्रति कम संवदेनशील बनाती है।
कॉर्नियल डिजेनरेशन का अब मिनिमली इंवैसिव प्रत्यारोपण से संभव है इलाज
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