कान की देखभाल के प्रति लोग अक्सर लापरवाह होते हैं। कई लोग जाने-अनजाने कान के साथ छेड़खानी करते रहते हैं। लेकिन यह छेड़खानी महंगी पड़ सकती है। कान में वैक्स जमने, कान में संक्रमण होने तथा कान की हड्डी में अधिक वृद्धि होने जैसे कारणों से श्रवण संबंधी समस्यायें उत्पन्न हो सकती हैं। इन समस्याओं की अनदेखी कई बार स्थायी या अस्थायी बधिरता का कारण बन सकती है।
आंखें अगर हमारे जीवन में रौशनी और रंगों का संचार करती हैं तो कान जीवन में मधुरता घोलते हैं। अगर हमारे पास श्रवण क्षमता नहीं होती तो हमारे लिये ममता, प्यार और दुलार का क्या मतलब होता और हमें क्या पता होता कि सूरों का जादू क्या होता है।
कान श्रवण तंत्रा के रूप में काम करने वाले हमारे शरीर के महत्वपूर्ण अंग हैं। कान को तीन भागों में बांटा जा सकता है। बाह्य, मध्य और अंतःकर्ण। कोई भी आवाज सबसे पहले बाह्य कर्ण में जाती है जहां से वह मध्य कर्ण से गुजरते हुये अंदुरूनी कर्ण में प्रोसेस होकर मस्तिष्क को भेजी जाती है।
बताते हैं कि सुनाई में दिक्कत, बधिरता या श्रवण दोष कई कारणों से हो सकते हैं। इनमें कई ऐसे कारण हैं जो कान की देखभाल के प्रति लापरवाही से होते हंै। लेकिन कई कारण जन्मजात हो सकते हैं जिन्हें दूर करने के लिये शल्य क्रिया की भी जरूरत पड़ सकती है।
कान में बाह्य कर्ण में रूकावट के कारण हमारी श्रवण क्षमता प्रभावित हो सकती है। यह रूकावट अक्सर वैक्स जमने के कारण होती है। वैक्स का निर्माण कान के द्वारा कान की सफाई के लिये किया जाता है। यह अपने आप कान के बाहर आ जाता है। लेकिन कई बार इसे निकालने के लिये चिकित्सक की मदद भी लेनी पड़ सकती है। वैक्स को कभी भी अपने आप निकालने की कोशिश नहीं करनी चाहिये। कान में कभी भी रूई, ऊंगली अथवा कोई अन्य वस्तु नहीं डालनी चाहिये। ऐसा करने से वैक्स के कान के पर्दे (इयरड्रम) में चले जाने का खतरा होता है। इससे दर्द, संक्रमण एवं बधिरता होने की आशंका होती है।
कई बार देर तक तालाब में स्नान करने या तैरने के कारण स्विमिंग इयर्स नामक समस्या पैदा हो सकती है। यह बाह्य कर्ण की नली की मुलायम त्वचा में होने वाला दर्दनाक संक्रमण है। तैराकों को इस समस्या का अधिक सामना करना पड़ता है। अधिक समय तक पानी में रहने के कारण बैक्टीरिया एवं फंगस को पनपने का मौका मिलता है। बैक्टीरिया एवं फंगस के कारण पहले तो कान में खुजली होती है और बाद में कान की नली एवं ड्रेनेज की त्वचा पर सूजन होती है। इसके बाद तीव्र पीड़ा होती है। इसके इलाज के लिये एंटीबाॅयोटिक या कोर्टिकोस्टेराॅयड दिया जाता है।
कान की एक अन्य सामान्य समस्या ओटिटिस एक्सटर्ना है जिसमें कान की नली की त्वचा में सूजन आ जाती है। यह कान को खुजलाने अथवा एक्जीमा जैसे चर्म रोग होने पर होता है। इसके कारण दर्द हो सकता है और कान से पानी निकलता है।
गल्यू इयर (ओटिटिस मीडिया) बच्चों में होने वाली कान की अधिक सामान्य समस्या है। यह तब होती है जब कान और नाक को जोड़ने वाली नली (यूस्टिशियन ट्यूब) अवरूद्ध हो जाती है और हवा मध्य कर्ण में प्रवेश नहीं कर पाती है।
कई बार मध्य कर्ण तरल से भर जाता है जो ग्लू की तरह सघन हो जाता है। इससे कान का पर्दा हिल नहीं पाता और श्रवण क्षमता घट जाती है। कई बच्चों में यह समस्या अपने आप दूर हो जाती है लेकिन अगर यह समस्या बनी रहे तो माइरिंगोटोमी नामक आॅपरेशन करने की जरूरत पड़ सकती है। इस आॅपरेशन के तहत ग्रोमिट नामक एक छोटा वेंटिलेशन ट्यूब को इयरड्रम में अस्थायी तौर पर प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। जिन बच्चों के माता-पिता धूम्रपान करते हैं अगर वे धूम्रपान बंद कर दें तो इससे बच्चे को फायदा हो सकता है।
मध्य कर्ण में संक्रमण श्रवण दोष पैदा करने वाला एक प्रमुख कारण है। हालांकि आरंभिक अवस्था में एंटीबायोटिक की मदद से इसका कारगर तरीके से इलाज हो सकता है। लेकिन कान के पर्दे में काफी लंबे समय तक संक्रमण रहने पर समस्या उत्पन्न हो सकती है। कान के पर्दे में लंबे समय तक संक्रमण रहने के कारण निर्जीव त्वचा जमा हो जाती हैं। इसके लिये एक आॅपरेशन की जरूरत पड़ सकती है। मृत त्वचा को नहीं हटाने पर श्रवण ह्रास भी हो सकता है।
कई बार कान के पर्दे में छेद होने पर आॅपरेशन करके श्रवण शक्ति बढ़ायी जा सकती है। कान के पर्दे में छेद अगर लंबे समय तक रहे तो कान की हड्डी गल सकती है। हड्डी के गलने की प्रक्रिया मस्तिष्क तक जा सकती है जिससे मस्तिष्क में मवाद बन सकता है। इसका आॅपरेशन की मदद से तत्काल इलाज होना चाहिये अन्यथा जान को खतरा हो सकता है।
ओटोस्क्लोरोसिस की समस्या से महिलायें अधिक प्रभावित होती हंै। यह समस्या 30 साल की उम्र से आरंभ होती है। यह कान की एक हड्डी में वृद्धि होने से उत्पन्न होती है और ध्वनि कंपन इसके जरिये नहीं जा पाती। ओटोस्क्लोरोसिस से ग्रस्त लोग धीरे-धीरे बधिरता के शिकार हो जाते हैं। इस समस्या से ग्रस्त लोगों के लिये श्रवण यंत्रा काफी मददगार साबित होते हैं। इस समस्या से ग्रस्त अनेक लोगों को स्टेपेडोटोमी नामक आॅपरेशन की जरूरत पड़ सकती है। इस आॅपरेशन की सफलता की दर बहुत अधिक है।
कई बार मम्प्स (कनफोड़े),गर्दनतोड़ बुखार (मेनिनजाइटिस), दिमागी बुखार (इंसेफेलाइटिस), चेचक (स्माॅल पाॅक्स), अंतःकर्ण में संक्रमण जैसे वायरल (विषाणुओं से होने वाले) संक्रमणों के कारण भीतरी कान का कोकलिया क्षतिग्रस्त हो जाता है। यह स्थिति वृद्धावस्था में काफी सामान्य है। जन्म के समय होने वाली आॅक्सीजन की कमी अथवा पीलिया होने के कारण भी यह स्थिति उत्पन्न हो सकती है। यह स्थिति बधिरता का कारण बन सकती है। ऐसे लोगों के लिये कोकलियर इंप्लांट वरदान के रूप में सामने आया है। कोकलियर इंप्लांट कान के अंदुरूनी भाग (कोकलिया) की जगह पर काम करने वाला यंत्रा है। कोकलियर इंप्लांट कान के क्षतिग्रस्त हिस्से का स्थान लेकर श्रवण संबंधी स्नायुओं को संवेदित करता है।
डा. संदीप सिंधु नई दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल मंे वरिष्ठ ई.एन.टी. चिकित्सक हैं। इससे पूर्व वह नयी दिल्ली के ही सफदरजंग अस्पताल एवं सर गंगाराम अस्पताल में काम कर चुके हैं।
महंगी पड़ सकती है कान की छेड़खानी
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