योनि और गर्भाशय ग्रीवा में संक्रमण महिलाओं की आम समस्या है। हालांकि इसकी व्यापक पैमाने पर अनदेखी की जाती है लेकिन यह संक्रमण महिलाओं में नपुंसकता एवं बाह्य (कृत्रिम) गर्भाधान का कारण बन सकता है। अमरीका के नेशनल इन्स्टीच्यूट आफ हेल्थ की ओर से 13 हजार 500 महिलाओं पर किये एक एक अध्ययन से पता चला कि योनि संक्रमणों से ग्रस्त महिलाओं के कम वजन के बच्चे जनने की आशंका 40 प्रतिशत अधिक होती है।
भारत में किये गये अध्ययनों से निष्कर्ष निकला है कि करीब 95 प्रतिशत महिलायें अपने जीवन काल में कभी न कभी इन संक्रमणों से अवश्य ग्रस्त होती हैं। हमारे देश में महिलायें लज्जा एवं अज्ञानता के कारण इन संक्रमणों से गंभीर रूप से ग्रस्त होने के बावजूद भी चिकित्सकों के पास इलाज कराने नहीं आती है।
इन संक्रमणों से सबसे अधिक शिकार 18 साल से अधिक उम्र की शादी शुदा एवं यौन सक्रिय महिलायें होती हैं। नयी दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डा.मधु राय के अनुसार पोषक तत्वों की कमी तथा रोग प्रतिरक्षण क्षमता में कमी के कारण होने वाले रोगों तथा मधुमेह से ग्रस्त महिलायें इस तरह के संक्रमणों की सबसे अधिक शिकार होती हैं।
अमरीका के नेशनल वेजाइनिटिस एसोसिएशन के अनुसार अमरीका में हर साल एक करोड़ से अधिक महिलायें योनि संक्रमणों का इलाज कराने के लिये चिकित्सकों के पास पहुंचती हैं। इन संक्रमणों का इतना व्यापक प्रकोप होने के बावजूद महिलाओं में इन संक्रमणों को लेकर भयानक पैमाने पर अज्ञानता एवं अजागरुकता बरकरार है। इन संक्रमणों के लिये गोनोकोकस, सिफलिस, हरपिज, क्लेमिडिया, ट्राइकोमोनास और कैंडिडा जैसे कई तरह के जीवाणु एवं विषाणु जिम्मेदार हैं। आंतरिक अंगों की साफ-सफाई के प्रति लापरवाही बरतने से इन जीवाणुओं एवं विषाणुओं के संक्रमण की आशंका बढ़ती है।
इन संक्रमणों के लिये कई दवाइयां उपलब्ध हैं लेकिन हाल के एक अध्ययन से पता चला है कि एजिथ्रोमाइसिन, सेकनिडाजोल और फ्लुकोनाजोल नामक तीन दवाइयों की एक दिन की विशेष खुराक का सेवन करने से इन संक्रमणों का शत-प्रतिशत इलाज हो सकता है। इन तीनों दवाइयों की एक दिन की खुराक को 95 से 100 प्रतिशत मामलों में कारगर पाया गया है। यह भी पाया गया है कि एजिथ्रोमाइसिन, सेकनिडाजोल और फ्लुकोनाजोल नामक तीनों दवाइयों की खुराक पूरी तरह कारगर तभी हो पाती है जब योनि संक्रमण से ग्रस्त महिला के पति भी इस खुराक का सेवन करें।
नयी दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. नैनी कोहली के अनुसार इन योनि संक्रमणों में सबसे आम एवं व्यापक रोग ल्युकोरिया है जिसे श्वेत प्रदर, योनि स्राव, योनि विसर्जन एवं पानी पड़ना जैसे नामों से भी पुकारा जाता है। हालांकि योनि स्वाभाविक रूप से तरल होती है। यह तरलता सहवास के समय सुरक्षा प्रदान करती है। कई सामान्य शारीरिक एवं मानसिक क्रियायें योनि की नमी में वृद्धि कर सकती हैं। मासिक धर्म शुरू होने से पहले, मासिक धर्म के बीच में और मासिक धर्म के अंत में, डिम्ब ग्रंथि से डिंब छूटने के दिन, गर्भावस्था के दिनों में और यौन उत्तेजना के क्षणों में नमी या स्राव में वृद्धि हो जाती है। इसके अलावा वयःसंधि काल में रजोधर्म शुरू होने से पहले लड़कियां इस प्रकार की अतिरिक्त स्निग्धता प्राकृतिक रूप से अनुभव करती हैं। कब्ज और बार-बार योनि को डूश करने से भी योनि स्राव बढ़ जाता है। सामान्य स्थितियों में योनि से होने वाला स्राव बिल्कुल साफ या दुधिया रंग का होता है। इसमें दुर्गंध नहीं होती है। दूसरी तरफ अगर योनि से हमेशा ही स्राव होता रहे, उसका रंग हरा, पीला अथवा दही के समान हो, योनि में खुजली या सूजन हो तो यह ल्यूकोरिया के लक्षण हैं।
ल्यूकोरिया एक संक्रामक बीमारी है। यह गोनोकोकस, सिफलिस, हरपिज, क्लेमाइडिया, ट्राइकोमोनास, कैंडिडा तथा अन्य बैक्टीरियल, वायरल और सूक्ष्म जीवाणुओं (माइक्रो आरगेनिज्म) से होती है। यह बीमारी किसी भी उम्र की महिला को हो सकती है लेकिन रजोनिवृति के बाद शरीर में इस्ट्रोजेन हार्मोन की कमी हो जाने से इसके संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है। गर्भ निरोधक गोलियों का सेवन करने वाली तथा मधुमेह से पीड़ित महिलाओं में भी इसके संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा यौन रोग से पीड़ित पुरुष के साथ शारीरिक संबंध बनाने पर भी यह रोग महिला को हो सकता है। योनि की सफाई न रखने वाली महिलाएं भी इस रोग से पीड़ित हो सकती हैं। छोटी बच्चियों में पिनवर्म के योनि में चले जाने पर भी योनि में खुजली और स्राव जैसे लक्षण प्रकट हो सकते हैं।
तकरीबन सभी यौन रोगों में ल्यूकोरिया के लक्षण पाए जाते हैं। गर्भाशय ग्रीवा (सरविक्स) की सूजन, मांस के बढ़ने से बना पाॅलिप और सतही छीजन (सरवाइकल इरोजन) जैसी अन्य बीमारियां भी ल्यूकोरिया का कारण बन सकती हैं। कुछ महिलाओं को काॅपर टी या गर्भनिरोधक जेली के इस्तेमाल से भी योनि से स्राव आने लगता है।
ल्यूकोरिया से बचने के लिए जननांगों की साफ-सफाई पर ध्यान देना जरूरी है। प्रतिदिन स्नान करना और स्नान करते समय साबुन से जननांगों की सफाई करना आवश्यक है। मासिक-धर्म के दिनों में जननांगों की सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए और स्राव को सोखने के लिए सेनिटरी नैपकिन, टैम्पून या साफ कपड़ा इस्तेमाल करना चाहिए। सूती जांघिया पहनना तथा खुले और आरामदेह कपड़े पहनना भी स्वास्थ्य के लिए हितकर होता है। इसके इलाज के तौर पर एजिथ्रोमाइसिन, सेकनिडाजोल और फ्लुकोनाजोल नामक तीनों दवाइयों की एक दिन की खुराक का सेवन कारगर होता है। हालांकि इसके सेवन से पूर्व स्त्री रोग विशेषज्ञ से परामर्श कर लेना बेहतर रहता है।
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