इरेक्टाइल डिस्फंक्शन ऐसी बीमारी है जिससे न सिर्फ यौन क्षमता में कमी आ जाती है बल्कि यह नपुंसकता का भी कारण बन सकता है। यह बीमारी रक्त वाहिनियों या तंत्रिकाओं अथवा दोनों की कार्यप्रणालियों में गड़बड़ी आ जाने से उत्पन्न होती है। पुरुष जननांग की रक्त वाहिनियों में वसा जम जाने पर जननांग में रक्त प्रवाह समुचित रूप से नहीं हो पाता है जिसके कारण यौन संबंध के दौरान पुरुष लिंग में पर्याप्त कड़ापन नहीं आ पाता है। मधुमेह और उच्च रक्त दाब तथा इन रोगों की दवाईयों के सेवन, मानसिक तनाव, पर्यावरण प्रदूषण, मेरू रज्जू (स्पाइनल कार्ड) में चोट अथवा उससे संबंधित बीमारियों, हार्मोन संबंधी एवं आनुवांशिक विकारों के अलावा अधिक शराब एवं वसा युक्त भोजन के सेवन तथा धूम्रपान से कई पुरुषों में 'इरेक्टाइल डिस्फंक्शन' की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
मधुमेह तथा उच्च रक्त चाप के मरीजों को यह समस्या अधिक होती है। मधुमेह के अधिक बढ़ जाने से रक्त नलिकायें सिकुड़ जाती हैं। अधिक रक्त चाप के मरीजों के अलावा धूम्रपान करने वालों एवं शराब तथा अधिक वसा युक्त भोजन करने वालों की रक्त नलिकायें कोलेस्ट्राॅल जम जाने के कारण संकरी हो जाती हैं और इन दोनों बीमारियों में पुरुष यौनांग की रक्त वाहिनियां प्रभावित हो सकती हैं और यह समस्या उत्पन्न हो सकती है।
'इरेक्टाइल डिस्फंक्शन' का एक अन्य कारण स्नायु तंत्र में गड़बड़ी आ जाना है। इस कारण पुरुष जननांग की रक्त वाहिकाओं को समय पर फैलने का संकेत नहीं मिल पाता है जिससे उनमें रक्त का तेज बहाव नहीं हो पाता है। इस समस्या के अनेक मामलों में मनोवैज्ञानिक कारण भी होते हैं जिसका पता मरीजों से बातचीत करके लगाया जाता है जबकि इस समस्या के शारीरिक कारणों का पता लगाने के लिये डाॅप्लर विधि में हार्मोनों की संख्या का पता लगाने संबंधी रक्त परीक्षण एवं रिजिस्कैन विधि का इस्तेमाल किया जाता है। इसके इलाज के तौर पर वियाग्रा जैसी यौन उत्तेजना को बढ़ाने वाली दवाइयों का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन वियाग्रा केवल उन्हीं मरीजों के लिए कारगर है जिनमें यह बीमारी गंभीर नहीं होती है और इनके इलाज के लिये शल्य क्रिया करने की जरूरत नहीं पड़ती। वियाग्रा मुख्य तौर पर पुरुष जननांग में पाये जाने वाले पी.डी.ई.- 5 नामक एंजाइम को रोकती है जिससे यौन उत्तेजना के दौरान जननांग में साइक्लिक जी एम पी नामक रसायन अधिक मात्रा में बरकरार रहता है और जननांग में रक्त पूर्ति बढ़ जाती है।
जिन लोगों की समस्या का समाधान इस दवा से नहीं हो पाता है उनके लिये शल्य चिकित्सा ही एकमात्र विकल्प है। इस समस्या के कुछ मामलों में 'वैक्यूम' इरेक्शन डिवाइस के जरिये इलाज किया जा सकता है। यह समस्या के निदान का एक यांत्रिक तरीका है। यह तरीका पंप की कार्यप्रणाली पर आधारित है। इसके तहत पुरुष यौनांग के ऊपर सिलिंडरनुमा यंत्र रखा जाता है। सबसे पहले प्लास्टिक ट्यूब की मदद से हवा का दबाव बनाया जाता है और फिर हावा खींच ली जाती है। इससे निर्वात (शून्य) पैदा हो जाता है और खाली जगह को भरने के लिए रक्त वाहिनियों से रक्त आकर यौनांग में भर जाता है जिससे उसमें कड़ापन आ जाता है और पुरुष सक्षमता के साथ यौन क्रिया कर पाता है। सबसे कठिन मामलों में पुरुष जननांग में 'प्रोस्थेटिक' यंत्र का प्रत्यारोपण करके नपुंसकता का स्थायी हल किया जा सकता है। यह सिलिकन का बना लचीला कमानीनुमा अथवा हवा से फूलने वाला हो सकता है। ये शल्य चिकित्सा प्रणालियां विश्व भर में लोकप्रिय हैं और केवल अमरीका में हर साल करीब 25 हजार मरीज इसका लाभ उठाते हैं।
इसके अलावा सेल्फ इंजेक्शन थेरपी के जरिये भी मरीज इस समस्या से अस्थायी तौर पर निजात पा सकता है। इसके तहत मरीज को जननांग में स्वयं इंजेक्शन लगाना होता है। इससे जननांग में 30 से 45 मिनट तक कड़ापन बना रहता है।
लेकिन अक्सर 'इरेक्टाइल डिस्फंक्शन' के ज्यादातर मरीजों को ठीक करने के लिये शल्य चिकित्सा की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इस बीमारी के इलाज के लिये यौन समस्या पैदा करने वाले कारणों का पता लगाकर उन्हें दूर करना ही पर्याप्त होता है।
'इरेक्टाइल डिस्फंक्शन' के इलाज के लिये 'हारमोन रिप्लेसमेंट थेरेपी' का भी इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन यह चिकित्सा तभी कारगर होती है जब मरीज के शरीर में टेस्टोस्टेराॅन नामक पुरुष हारमोन का स्तर कम होता है। ऐसे मरीजों को जरूरत के अनुसार बाहर से टेस्टोस्टेराॅन दिये जाते हैं।
जाहिर है कि पुरुष नपुंसकता के मुख्य कारण मानी जाने वाली बीमारी 'इरेक्टाइल डिस्फंक्शन' के मरीजों के लिये कई विकल्प मौजूद हैं, लेकिन किसी विकल्प को जल्दबाजी में अपनाने की बजाय मरीज को किसी सक्षम मनोवैज्ञानिक तथा योग्य यूरोलाॅजिस्ट से मिलकर तथा आवश्यक जांच कराकर अपनी बीमारी के सही कारणों का पता लगा लेना चाहिये ताकि सही विकल्प को ही अपनाया जा सके, अन्यथा लाभ के स्थान पर नुकसान हो सकता है।
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