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नयी तकनीकों से मस्तिष्क सर्जरी हुई आसान

मौजूदा समय में न्यूरो सर्जरी का परिदृश्य पूरी तरह बदल गया है। आज माइक्रोस्कोप, त्रिआयामी इमेजिंग, इंटरवैंशनल एम आर आई, रोबोटिक सर्जरी, स्टीरियोटैक्सी, इंडोस्कोपी और रेडियो सर्जरी जैसी आधुनिक तकनीकों की मदद से मस्तिष्क की सर्जरी न केवल आसान, कष्ट रहित एवं कारगर बन गयी है, बल्कि इनकी बदौलत मरीजों के बेहतर इलाज की भी संभावना बढ़ गयी है। न्यूरो सर्जरी के क्षेत्रा में हाल में हासिल महत्वपूर्ण कामयाबियों की बदौलत मस्तिष्क के आॅपरेशन के लिए दिमाग पर नश्तर चलानेे की जरूरत समाप्त हो गयी है।
न्यूरो सर्जरी का नाम सुनते ही खोपड़ी को खोल कर की जाने वाली खौफनाक शल्य क्रिया का ख्याल आता है, लेकिन आज न्यूरोसर्जरी का परिदृश्य पूरी तरह बदल चुका है। आज न केवल न्यूरोसर्जरी का दायरा इस कदर व्यापक हो गया है कि अब न्यूरोसर्जरी में न केवल मस्तिष्क, बल्कि सम्पूर्ण नर्वस प्रणाली, स्पाइनल कार्ड और स्पाइनल काॅलम, शरीर के विभिन्न भागों जैसे हाथ, पैर, बांह से गुजरने वाली स्नायुओं तथा हृदय से मस्तिष्क तक जाने वाली रक्त धमनियों की जांच एवं उनकी चिकित्सा शामिल हो गयी है। अब न्यूरोसर्जरी की मदद से ब्रेन ट्यूमर, पिट्यूटरी ग्रंथि के ट्यूमर, मस्तिष्क में रक्तस्राव के अलावा रीढ़ (स्पाइन) की जन्मजात बीमारियों, उम्र बढ़ने तथा चोट लगने के कारण रीढ़ की होने वाली क्षति, गर्दन की स्नायुओं पर दबाव पड़ने से होने वाले दर्द, कमर दर्द, सियाटिका, कार्पल टनल सिंड्रोम, मिर्गी, स्ट्रोक, पार्किन्सन्स डिजिज तथा मस्तिष्क को रक्त की आपूर्ति करने वाली रक्त धमनियों में गड़बड़ियों का इलाज किया जाता है। 
आम तौर पर न्यूरोसर्जरी को आधुनिक विधा माना जाता है, लेकिन पुरातात्विक प्रमाणों से पता चलता है कि न्यूरोसर्जरी का आविर्भाव हजारों वर्ष पूर्व हुआ। इस बात के प्रमाण मिले हैं कि 10 हजार साल पहले खोपड़ी की सर्जरी की गयी थी। हालांकि अक्तूबर 1919 में न्यूरोसर्जरी को एक अलग चिकित्सकीय विभाग के रूप में मान्यता मिली, जब डा. हेर्वेरी कुशिंग ने अमेरिकन कालेज आॅफ सर्जन्स के सम्मेलन में अपने कार्य के बारे में व्याख्यान दिया। न्यूरोसर्जरी के क्षेत्रा में अग्रणी डा.कुशिंग अपने समय के जाने-माने सर्जन थे, जिन्होंने नयी विधियों एवं तकनीकों का विकास किया और इनकी बदौलत मस्तिष्क के ट्यूमर का इलाज सुरक्षित एवं कारगर बन गया। 
एक दशक बाद 10 अक्तूबर 1931 को कुशिंग के विचारों ने यथार्थ का रूप ग्रहण किया और हार्वे कुशिंग सोसायटी की स्थापना हुयी, जो बाद में अमरीकन एसोसिएशन्स आॅफ न्यूरोलाॅजिकल सर्जन्स के रूप में अस्तित्व में आया। बाद में बकायदा न्यूरोसर्जरी के शिक्षण एवं प्रशिक्षण तथा इस क्षेत्रा में अनुसंधान के लिये अलग से विभागों एवं संस्थाओं की स्थापना हुयी।
आज न्यूरोसर्जरी के क्षेत्रा में हुये परिवर्तनों से आॅपरेशन थियेटर का भी दृश्य बदल गया है। आज न्यूरोसर्जरी के क्षेत्रा में विशिष्ट योग्यता एवं प्रशिक्षण की मांग बढ़ गयी है। इसमें जैक आॅफ आॅल ट्रेड्स और बट मास्टर्स आॅफ वन की धारणा तेजी से लोकप्रिय हो रही है। पहले मस्तिष्क के सभी तरह के आॅपरेशन एक ही न्यूरोसर्जन करते थे, लेकिन अब न्यूरोसर्जरी के विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञता का महत्व बढ़ गया है। अब अलग-अलग तरह के आॅपरेशन के लिये अलग-अलग विशेषज्ञता एवं प्रशिक्षण प्राप्त न्यूरोसर्जन को महत्व दिया जाने लगा है। मिसाल के तौर पर मस्तिष्क के ट्यूमर का आॅपरेशन अलग सर्जन करते हैं तो स्पाइन की समस्याओं के लिये अन्य सर्जन होते हैं। 
इसके अलावा अब आॅपरेशन के दौरान न्यूरोसर्जन, अस्थि शल्य चिकित्सक, न्यूरोलाॅजिस्ट, फिजिशियन एवं प्लास्टिक सर्जन की मौजूदगी जरूरत हो गयी है, ताकि आॅपरेशन के दौरान उत्पन्न किसी भी जटिलता को तत्काल दूर किया जा सके। इससे जटिल बीमारियों का इलाज एवं आॅपरेशन कारगर बन गया है। 
हालांकि न्यूरोसर्जरी मुख्य तौर पर शल्य क्रियाओं का क्षेत्रा है, लेकिन अनेक न्यूरो समस्याओं से पीड़ित मरीजों का इलाज अब आॅपरेशन के बगैर ही अथवा चीरा लगाकर (मिनिमली इंवैसिव) विकल्पों की मदद से भी होने लगा है। आज माइक्रोस्कोप, मस्तिष्क की त्रिआयामी इमेजिंग (3-डी बे्रन इमेजिंग), इंटरवैंशनल एम आर आई, रोबोटिक सर्जरी, स्टीरियोटैक्सी, इंडोस्कोपी और रेडियोसर्जरी जैसी आधुनिक तकनीकों की मदद से न्यूरोसर्जरी न केवल आसान एवं कारगर हो गयी है, बल्कि इनकी बदौलत मरीजों का बेहतर तरीके से इलाज करने वाले न्यूरोसर्जनों की क्षमता भी बढ़ गयी है। हाल के दिनों में न्यूरोसर्जरी के क्षेत्रा में हासिल महत्वपूर्ण कामयाबियों की बदौलत मस्तिष्क के आॅपरेशन के लिये दिमाग पर नश्तर चलाने की जरूरत काफी हद तक समाप्त हो गयी है। 
इंटरवेंशनल एम आर आई 
इंटरवेंशनल एम आर आई की मदद से अब आॅपरेशन के दौरान ही एम आर आई करना संभव हो गया है। इस तकनीक को इंटरवैंशनल मैगनेटिक रिजोनेंस इमेजिंग कहा जाता है। इंटरवैंशनल एम आर आई की बदौलत सर्जन अब आॅपरेशन थियेटर में ही यह देख सकता है कि वे आॅपरेशन के दौरान क्या कर रहे हैं और आॅपरेशन किस हद तक सम्पन्न हो रहा है। 
परम्परागत एम आर आई में पीछे से बंद सुरंग की तरह का चैम्बर होता है, जिसमें दो विशाल चुम्बक के बीच मरीज को लिटाया जाता है और एक इमेज लेने के लिये चार मिनट या अधिक देर तक मरीज को बिना हिले-डुले एक ही अवस्था में रहना पड़ता है। लेकिन इंटरवंैशनल एम आर आई में दो चुम्बकों के बीच जगह होती है जिसमें मरीज हिल-डुल सकता है, बैठ सकता है या खड़ा हो सकता है। इससे यह फायदा है कि मरीज को खड़ा कर या बिठा कर इमेज लिया जा सकता है। 
डा. राजेन्द्र प्रसाद बताते हैं कि अक्सर देखा गया है कि मरीज बैठने या खड़ा होने पर कमर में दर्द महसूस करने लगता है, लेकिन उसके लेटते ही दर्द गायब हो जाता है। इंटरवैंशनल एम.आर.आई से मरीज के लेटने, बैठने अथवा खड़ा होने पर रीढ़ में आने वाले फर्क का पता लगाना संभव हो गया है। 
आने वाले समय में आॅपरेशन थियेटर में खुले स्कैनर का इस्तेमाल आरंभ हो जायेगा। इसमें मरीज को आॅपरेशन के दौरान ही स्लाडर करके स्कैनर में ले जाया जायेगा और यह देखा जा सकेगा कि ट्यूमर निकालने जैसी शल्य क्रियायें पूरी तरह से सम्पन्न हो गयी या नहीं। इस स्कैनर के इस्तेमाल में लाने के लिये यह आवश्यक है कि आॅपरेशन के काम में आने वाले सभी औजार एवं उपकरण धातु के नहीं, बल्कि टाइटेनियम जैसे अधातु के बने हों। 
स्टीरियोटैक्सी सर्जरी 
फ्रैमलेस स्टीरियोटैक्सी के इस्तेमाल से शल्य क्रिया के दौरान किसी तरह की गलती होने की आशंका दूर हो गयी है। इसकी मदद से मस्तिष्क एवं उसके किसी भी हिस्से को  कोई नुकसान पहुंचाये बगैर मस्तिष्क के भीतर की किसी भी संरचना तक पहुंचा जा सकता है और उसकी खराबियों को दूर किया जा सकता है। कम्प्यूटरीकृत एक्सियल टोमोग्राफी (सी टी स्कैन) और न्यूक्लियर मैग्नेटिक रिजोनेंस इमेजिंग जैसी तकनीकों के विकास से सर्जन को स्टीरियोटैक्टिक सर्जरी की प्लानिंग में काफी मदद मिलने लगी है। इससे सर्जरी लगभग शत-प्रतिशत सही एवं कामयाब होने लगी है। 
रोबोटिक सर्जरी 
डा. राजेन्द्र प्रसाद बताते हैं कि मस्तिष्क की सर्जरी में अब रोबोट की मदद भी ली जाने लगी है। सर्जरी से सबंधित आंकड़े एवं जानकारियों  को आॅपरेशन थियेटर के कम्प्यूटर पर भेज दिया जाता है। यह कम्प्यूटर रोबोट को बताता है कि ट्यूमर कहां पर और कितनी गहराई में है। इसके बाद रोबोट के हाथ की मदद से सर्जरी की जाती है।


मस्तिष्क की इंडोस्कोपी 
इंडोस्कोपी की बदौलत मस्तिष्क के भीतर झांकना, मस्तिष्क की नाजुक एवं सूक्ष्मतम कोशिकाओं तक पहुंचना एवं उनका आॅपरेशन करना कष्टरहित, आसान और सुरक्षित हो गया है। इंडोस्कोपी के विकास के कारण अब खोपड़ी में बहुत छोटा सूराख करके ही अथवा मस्तिष्क को खोले बगैर बड़े से बड़े आॅपरेशन किये जा सकते हैं।  
माइक्रोडिस्क एक्टमी 
आधुनिक न्यूरो सर्जरी की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि माइक्रो डिस्क एक्टमी के रूप में सामने आयी है। इसमें माइक्रोस्कोप की मदद से डिस्क एक्टमी की जाती है। इसमें भी डेढ़ से दो इंच का चीरा लगाया जाता है। इसमें कैमरा युक्त स्कोप डालकर पिट्यूटरी या अन्य ट्यूमर को निकाला जा सकता है। इस आॅपरेशन के लिये मरीज को कई बार बेहोश भी नहीं करना पड़ता, बल्कि स्थानीय एनीस्थिसिया से भी आॅपरेशन हो सकता है और मरीज दूसरे ही दिन घर जा सकता है। 
गामा/एक्स नाइफ  
आज गामा नाइफ एवं एक्स नाइफ जैसी तकनीकों की मदद से मस्तिष्क मंे चीर-फाड़ किये बगैर ट्यूमर का सफाया किया जा सकता है। आधुनिक समय में लगभग हर तरह के ट्यूमर खास तौर पर कैंसर रहित अर्थात् बिनाइन ट्यूमर के कष्टरहित तथा कारगर इलाज के लिये गामा नाइफ का सफलता पूर्वक उपयोग हो रहा है। 


 


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