पेट दर्द को कभी भी मामूली न समझें क्योंकि यह कई रोगों का कारण हो सकता है। दैनिक जीवन में बच्चों, बड़ों सभी को पेटदर्द की समस्या का सामना करना पड़ता है। ऐसे में बार-बार होने वाले पेट दर्द को सामान्य समझ कर गंभीरता से न लेने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
पेट में अल्सर
हमारे आमाशय में लगातार हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का निर्माण होता है जो आमाशय की मुलायम दीवारों को जला डालने में सक्षम होता है। आम तौर पर यहां बनने वाला गोंद जैसा लसलसा पदार्थ, जिसे 'म्यूकस' कहा जाता है, अम्ल के घातक प्रहारों से आमाशय की रक्षा करता है। इसमें अम्ल को अपने अंदर घोल कर निष्क्रिय बना डालने की अद्भुत क्षमता होती है। वहीं, यदि अम्ल के घातक हमलों से इस की परत नष्ट हो जाती है तो यह तुरंत अपना पुनर्निर्माण कर अम्ल के प्रहारों को रोकता है।
इस सामान्य प्रक्रिया के अलावा जब कोई व्यक्ति अधिक चाय, काॅफी, शराब, धूम्रपान, दर्द निवारक दवाएं, मिर्च-मसालों आदि का सेवन करता है तो उस में अम्ल की मात्रा सामान्य से कहीं अधिक बनने लगती है और म्यूकसरूपी रक्षक इन तीव्र हमलों से बच नहीं पाता है। फलस्वरूप, यहां की मुलायम दीवारें जल जाती हैं और ऐसा लंबे समय तक लगातार होता रहे तो आमाशय में 'घाव' बन जाते हैं जिसे चिकित्सीय भाषा में 'पेप्टिक अल्सर' कहते हैं।
इस प्रकार के रोगियों में सीने व पेट के मिलन स्थल पर 'जलन के साथ दर्द' होता है जो कंधों, पीठ और हाथ तक फैल जाता है। यदि घाव पेट यानी आमाशय में है तो दर्द भोजन के आधे से डेढ़ घंटे के भीतर शुरू हो जाता है और यदि घाव 'छोटी आंत' में है तो दर्द भोजन के 3 या 4 घंटे बाद होता है।
इस रोग का दर्द ज्यादातर मध्यरात्रि में होता है जिससे व्यक्ति की नींद उचट जाती है, क्योंकि उस समय पेट में भोजन न होने से वह खाली होता है जिससे अम्ल के दुष्प्रभाव को रोकने वाला कुछ नहीं होता। जब पेट में अम्ल अधिक मात्रा में बनता है तो दबाव बढ़ने से कई बार यह अम्ल छाती के बीचोंबीच भोजन नली को भी क्षति पहुंचाते हुए मुंह के रास्ते भी बाहर निकलता है। इस स्थिति को चिकित्सा विज्ञान में 'हार्ट बर्न' के नाम से जाना जाता है।
ऐसे रोगी को थोड़े समय के अंतराल पर दिन में 5-6 बार हल्का भोजन लेते रहना चाहिए। इसी प्रकार भोजन के डेढ़ घंटे बाद 1 कप ठंडा दूध पीते रहना चाहिए क्योंकि भोजन और दूध अम्ल को निष्क्रिय बनाते हैं।
आधी रात में दर्द होने पर 1 कप दूध व बिस्कुट या डबलरोटी लेने से राहत महसूस होती है। किसी भी दवा का सेवन अपने डाक्टर की सलाह पर ही करें। रोगी को मानसिक तनाव से बचना चाहिए और मिर्च-मसाले, शराब, सिगरेट, दर्द निवारक औषधियों से परहेज करना चाहिए।
पैंक्रियाटाइटिस
पैंक्रियाज मछलीनुमा अवयव है जो महत्त्वपूर्ण पाचक रस बनाता है। शराब का अधिक व लगातार सेवन करने और पित्ताशय की पथरी के लंबे समय तक कायम रहने पर यह खराब हो जाता है। इससे पेट में असहनीय दर्द, जी मिचला कर उलटियां, वजन में तेजी से गिरावट, अति अम्लता का प्रकोप आदि लक्षण प्रकट होते हैं जो स्थिति को बदतर बना देते हैं। इससे बचाव के लिए शराब का त्याग करना चाहिए और पाचन क्रिया को प्रोत्साहित करने वाली दवाओं का सेवन करना चाहिए।
पित्ताशय की पथरी
लीवर से स्रावित होने वाले पाचक रस को 'पित्त' कहते हैं। इसमें पित्त अम्ल, पित्त लवण आदि मौजूद होते हैं। रक्त का वसीय घटक कोलैस्ट्रौल इसी पित्त अम्लों में घुला रहता है जिनका समीकरण 1ः20 से 1ः30 होता है। किसी भी कारण से जब यह सामान्य समीकरण अपने निश्चित अनुपात से नीचे गिरने लगता है तो यह रक्त का वसीय घटक कोलैस्ट्रॉल, ठोस अवस्था में आ कर पित्त की थैली में जमा हो जाता है और इसके चारों ओर कैल्शियम और रंगीन पित्त के चकत्ते घेरा डाल लेते हैं, जिसे पथरी कहा जाता है।
इस में रोगी को पेट में असहनीय दर्द उठता है जो पीछे पीठ व आगे गले तक भी जाता है और रोगी दर्द से कराह उठता है। पित्ताशय की पथरी 40 वर्ष की आयु से ऊपर की मोटी महिलाओं में अधिक होती है। सोनोग्राफी और सीटी स्कैन जैसी रोग निदान तकनीकों से रोग का पता लगाया जाता है। शल्यक्रिया द्वारा इस का पूर्ण उपचार संभव है। खून में कोलैस्ट्राॅल का स्तर और लिवर परीक्षण समय-समय पर करवाते रहना सबसे बेहतर है। पथरी रोग के लंबे समय तक अनियंत्रित रहने पर संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
कुछ सामान्य कारण
कभी-कभी मानसिक तनाव की स्थिति में आंतों की संकुचित होने की प्रक्रिया और पाचक रस के स्रावित होने की दर बढ़ जाती है जिसकी परिणाम स्वरूप दस्त होने लगता है। इस प्रकार के मल में अधिक मात्रा पानी की होती है।
कब्ज भी पेटदर्द का एक सामान्य कारण है। मल आंतों में कड़ा हो कर ऐंठन (मरोड़) उत्पन्न करता है। कब्ज से छुटकारा पाने के लिए पर्याप्त मात्रा में जल का सेवन करें और खूब सलाद खाएं। नियमित रूप से व्यायाम करना भी काफी लाभदायक होता है।
पार्टियों या बाजार में कुछ खाद्य व पेय पदार्थ संक्रमित हो जाते हैं जिनके सेवन से उलटी और दस्त शुरू हो जाती है। यह फूड पाॅयजनिंग पेट में मरोड़ भी पैदा करता है।
गरमी के दिनों में उलटी-दस्त और पेट में दर्द एक आम शिकायत रहती है। ओआरएस का सेवन उलटी-दस्त के कारण शरीर में हुई पानी की कमी को पूरा करता है।
परीक्षण
एसिडिटी या पेप्टिक अल्सर के निदान के लिए बेरियम मील एक्स-रे किया जाता है। इसके लिए बेरियम सल्फेट का घोल पिला कर एक्सरे लिया जाता है जिससे आमाशय और आंतें साफ दिखाई देती हैं और घाव स्पष्ट नजर आता है।
एंडोस्कोपी परीक्षण तकनीक द्वारा आमाशय या आंतों में घाव (पेप्टिक अल्सर) की जांच की जाती है। मुंह या नाक के रास्ते ट्यूब डाल कर इस यंत्र द्वारा इन अंगों को स्पष्ट देखा जा सकता है।
पैंक्रियाज की खास जांच के लिए 'ईआरसीपी' तकनीक वर्तमान समय में प्रयोग की जाती है जिससे इस अंग की भलीभांति जांच होती है।
रक्त परीक्षण जिसमें एमाइलेज स्तर, लाइपेज स्तर, कोलैस्ट्राॅल स्तर (लिपिड प्रोफाइल) आदि शामिल हैं, से विभिन्न पाचक अंगों की कार्यप्रणाली का स्तर ज्ञात होता है।
मल परीक्षण द्वारा भी इन अवयवों की कार्यप्रणाली के बारे में पता चलता है। कई बार मल में रक्तस्राव सिर्फ सूक्ष्मदर्शी से ही दिखता है।
इसलिए, पेटदर्द को सामान्य समझ कर अनदेखा न करें क्योंकि यह कई रोगों के कारणों का पिटारा हो सकता है। इसलिए इसका कारण जान कर उचित इलाज कराएं।
पेट दर्द को अनदेखा न करें
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