गर्भावस्था में गलत दवाइयां खाने का भी परिणाम है हाइड्रोसेफलस 

मस्तिष्क में पानी भर जाने की बीमारी हाइड्रोसेफलस बच्चों में बहुत सामान्य है। हालांकि यह बड़े लोगों को भी होती है। बच्चों में यह आमतौर पर पैदाइशी होती है जबकि बड़ों में मस्तिष्क के ट्यूमर, तपेदिक, कीड़े की बीमारी और गर्भावस्था में उल्टी—सीधी दवाइयों के सेवन जैसे कारणों  से होती है। हाइड्रोसेफलस दो तरह की होती है -  आंतरिक और बाह्य। दोनों ही तरह की हाइड्रोसेफलस मस्तिष्क में पानी भरने की वजह से होती है। मस्तिष्क के पानी को सेरिबरो स्पाइनल फ्ल्यूड (सी. एस. एफ) कहते हैं। मस्तिष्क में बनने वाला यह पानी स्पाइन और मस्तिष्क में रोटेट करता है । जब सी. एस. एफ. के रास्ते में किसी तरह की रुकावट आ जाती है तब हाइड्रोसेफलस बन जाती है। वैसे तो प्रत्येक मनुष्य के मस्तिष्क में दिन भर में करीब पांच लीटर पानी बनता है लेकिन सारा पानी मस्तिष्क में ही अवशोषित हो जाता है । परन्तु हाइड्रोसेफलस के मरीज के सिर में पानी तो बनता रहता है लेकिन अवशोषित नहीं हो पाता है और मस्तिष्क में ही जमा रह जाता है। 
हमारे मस्तिष्क में पानी की चार थैलियां होती है। जब मस्तिष्क का पानी थैलियों के अंदर जमा होता है तब उसे आंतरिक हाइड्रोसेफलस कहते हैं। यह एक्विडक्टोस्टिनोसिस की वजह से होता हैै । हमारे मस्तिष्क के अंदर तीसरे और चैथे वेंट्रिकल के बीच में एक जोड़ होता है जिसे एक्विडक्टी कहते हैं। एक्विडक्टी के छोटी रह जाने या पैदाइशी तौर पर नहीं बनने की स्थिति  एक्विडक्टास्टिनोसिस कहलाती है। बाह्¬य हाइड्रोसेफलस में मस्तिष्क की सतह के ऊपर और पानी की थैलियों में भी अर्थात सिर के क्रेेनियल कैविटी के अंदर चारों तरफ पानी जमा हो जाता हैै। इसमें मस्तिष्क से पानी बाहर निकलने का रास्ता ही बंद हो जाता है। हमारे देश में यह बीमारी सबसे अधिक पैदाइशी कारणों से होती है। लेकिन हमारे यहां मस्तिष्क की तपेदिक के कारण होने वाली हाइड्रोसेफलस का प्रकोप भी बहुत अधिक है। तपेदिक से पीड़ित व्यक्ति का इलाज नहीं होने पर तपेदिक मस्तिष्क तक पहुंच जाती है जिससे मस्तिष्क में पानी के बहने के रास्ते के अंदर तपेदिक के कीटाणु जमा हो जाता है और वहां हाइड्रोसेफलस हो जाता है। इसमें मरीज को पहले तपेदिक की मेनिंनजाइटिस होती है और यह मेनिंनजाइटिस बाद में हाइड्रोसेफलस बन जाती है। आजकल कीड़े की बीमारी के कारण हाइड्रोसेफलस होना सामान्य बात हो गयी है। कीड़े के अंडे शरीर में खून के रास्ते घूमते हुये जब मस्तिष्क के चौथे वेंट्रिकल में पहुंच जाता है तब यह मस्तिष्क से पानी निकलने के रास्ते में रुकावट पैदा कर देता है जिससे हाइड्रोसेफलस हो जाता है। हाइड्रोसेफलस हाने का एक मुख्य कारण मस्तिष्क में ट्यूमर का होना है क्योंकि मस्तिष्क का टयूमर सी एस एफ के बहने के रास्ते में रुकावट पैदा करता है। मस्तिष्क में पीछे की तरफ चौथे वेंट्रिकल में ट्यूमर होने; तीसरे वेंट्रिकल में ट्यूमर होन या लैटरल वेंट्रिकल में ट्यूमर होने पर मस्तिष्क में पानी इक्ट्टा होने लगता है। इसके अलावा कोरोएड प्लेक्सेस पेपिलोमा ट्यूमर के कारण भी हाइडोसेफलस हो सकती है। चूकि सी एस एफ कोरोएड प्लेक्सेस से ओज होकर निकलता है इसलिये काोरोएड प्लेक्सेस का ट्यूमर हो जाने पर उसमें से पानी अधिक मात्रा में निकलने लगता है.कोरोएड प्लेक्सेस में पानी लगातार रिसता रहता है लेकिन सिर पूरे पानी बहने के रास्ते में तपेदिक के कीटाणु जमा हो जाते हैं और वहां हाइड्रोसेफलस हो जाता है। इससे मरीज को पहले तपेदिक की मेनिंनजाइटिस होती है और यह मेनिंनजाइटिस बाद में हाइड्रोसेफलस बन जाता है। हाइड्रोसेफलस होने का मुख्य कारण मस्तिष्क में  ट्यमर है क्योंकि मस्तिष्क का ट्यूमर सी एस एफ के बहने के रास्ते में रुकावट पैदा करता है । मस्तिष्क में पीछे की तरफ चौथे वेंट्रिकल; तीसरे वेंट्रिकल या लैटरल वेंट्रिकल में ट्यूमर होने पर मस्तिष्क में पानी इक्ट्ठा होने लगता है। इसके अलावा कोरोएड प्लेक्सेस पेपिलोमा ट्यूमर के कारण भी हाइड्रोसेफलस हो सकती है। चूंकि  मस्तिष्क का पानी (सी. एस.एफ.) कोरोएड प्लेक्सेस  से  होकर बहता रहता है इसलिये कोरोएड प्लेक्सेस का ट्यूमर हो जाने पर उसमें से पानी अधिक मात्रा में निकलने लगता है। कोरोएड प्लेक्सेस में पानी लगातार रिसता रहता है लेकिन सिर पूरे पानी को अवशोषित नहीं कर पाता है और सिर में पानी जमा होने लगता है। यह हाइड्रोसेफलस न तो आंतरिक होता है और न ही बाहय। यह कोरोएड प्लेक्सेस पेपिलोमा के कारण होता है।
एक्विडक्टास्टिवोसिस नामक पैदाइशी नुख्श के कारण भी की तरफ एक गुब्बरा बन जाता है । इसके रोगी के मस्तिष्क में सी एस एफ जमा होकर हाइड्रोसेफलस पैदा कर देता है। मेंनिगोमाइलोसिस और हाइड्रोसेफलस 30 हजार में से तकरीबन एक दो बच्चों को होती है। हालांकि यह पैदाइशी है लेकिन दवाइयों के कारण भी यह हो सकती है। गर्भवती महिलायें अक्सर डाक्टर की सलाह के बगैर ही हारमोन की दवाइयों या एंटीबायोटिक दवाइयों का सेवन करने लगती हैं। हारमोन की दवाइयों से खून गाढ़ा हो जाता है जिसकी बजह से गर्भावस्था के दौरान ही या प्रसव के थोड़े दिन की भीतर ही महिला को सेरीब्रल थे्रोम्बोसिस हो सकती है। सेरीब्रल की मुख्य थ्रोम्बोसिस को वीनस थ्रोम्बोसिस कहते हैं। इस वीनस थ्रोम्बोसिस के कारण मस्तिष्क में पानी कर अवशोषण बहुत कम होता है और महिला को हाइड्रोसेफलस हो जाता है। यह भी देखा गया है कि गर्भावस्था के दौरान कुछ महिलायें बहुत ज्यादा तनाव में रहती है। खान-पान का उचित ध्यान नहीं रख्ती है। नमक का ज्यदा सेवन करती हैं और आराम भी नहीं करती जिसकी बजह से उनके पैरों में सूजन आ जाताी है और उनका रक्तचाप बहुत उंचा हो जाता है। इसके कारण खून की नस फट सकती है। और ब्रेन हैमरेज या मिर्गी होने की आशंका हो सकती है।
हाइड्रोसेफलस के परम्परागत इलाज के तहत मस्तिष्क में एक सुराख करके एक नली डाल दी जाती है और इस नली के दूसरे हिस्से को त्वचा के अंदर ही अंदर लाकर पेट में डाल दिया जाता है। इससे मस्तिष्क में बना पानी पेट में जाने लगता है। इस तरह मरीज के मस्तिष्क का पानी उसके ही शरीर में काम आ जाता है। और उसके शरीर में लवण, प्रोटीन या किसी अन्य चीज की कमी नहीं होती है। इस आपरेशन में अधिक से अधिक 35 मिनट का समय लगता है और यह आपरेशन बहुत सुरक्षित होता है। हालांकि यह इलाज स्थाई है लेकिन अगर बीच में कोई कचरा आ जाये या मस्तिष्क का कोई टुकड़ा आ जाये या नली में संक्रमण हो जाये तो नली बंद हो सकती है और इस नली को दोबारा चालू करने के लिये एक छोटा आपरेशन करना पड़ता है। लेकिन आधुनिक इलाज में यह नौबत ही नहीं आती। आधुनिक इलाज में मस्तिष्क में जहां पैदाइशी रास्ता नहीं बना होता है वहां इंडोस्कोप के जरिये मस्तिष्क में एक छोटा सुराख करके वहां एक नली डालकर उसे रास्ते को बना दिया है या थर्डवेंटिक्लोस्टोमी कर दी जाती है अर्थात् पानी की  थेैली का जो हिस्सा मस्तिष्क के बाहर चमक रहा होता है उसको फोड़ दिया जाता है ताकि सारा पानी मस्तिष्क की सतह पर आकर अवशोषित हो सके। इसमें दोबारा आपरेशन करने की की जरुरत पड़ने की आकांशा कम रहती है। वेंट्रिकलोस्टोमी से मस्तिष्क के पानी की थैलियों को फोड़कर बनाया गया छेद बंद हो सकता है और उसमें पानी दोबारा भर सकता है लेकिन फिर भी 95 प्रतिशत मामलों में यह आपरेशन कारगर होता है और दोाबारा आपरेशन करने की जरुरत नहीं पड़ती। कीड़े के अंडे को बाहर निकालने के लिये किये जाने वाले आपरेशन में मस्तिष्क में पीछे से चैथे वेंट्रिकल को खोलकर कीड़े के अंडों को बाहर निकाल लिया जाता  है। यह आपरेशन स्थाई होता है और न तो दोबारा आपरेशन करने की जरुरत नहीं होती न ही शंट डालने की जरुरत होती है। कोरेाएड प्लेक्ससे पेपिलोमा के ट्यूमर की वजह से होने वाले हाइड्रोसेफलस के आपरेशन में मस्तिष्क में दूरबीन लगाकर उस कोरोएड प्लेक्सेस को जला  दिया जाता है जिससे उसकी सी एस एफ बनाने वाली कोशिकायें खत्म हो जाती है और मरीज ठीक हो जाता है । गर्भावस्था के दौरान गलत दवाइयों के सेवन से होने वाले थ्रोम्बोसिस के इलाज के लिये रोगी को हीपेरिन का इंजेक्शन देकर थ्रोम्बस को गला दिया जाता है जिससे पानी का बहाव ठीक हो जाता है।