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पुरुष भी होते हैं रजोनिवृत

क्या औरतों की तरह पुरुष भी रजोनिवृत होते हैं? आपको शायद विश्वास नहीं हो लेकिन यह सत्य है कि पुरुषों की यौन एवं प्रजनन क्षमता के ताउम्र कायम रहने के बारे में सदियों से कायम धारणा अब नवीनतम वैज्ञानिक शोधों और अध्ययनों से टूटने लगी है। वैज्ञानिकों का मानना है जिस तरह महिलायें जीवन के खास पड़ाव पर आकर रजोनिवृत होकर अपनी प्रजनन क्षमता खो देती हैं उसी तरह पुरुष एक खास अवस्था में रजोनिवृत होकर अपनी यौन इच्छा एवं प्रजनन क्षमता में गिरावट और अनेक शारीरिक एवं मानसिक परिवर्तनों से साक्षात्कार करते हैं। पुरुषों में रजोनिवृति को वैज्ञानिकों ने एंड्रोपाॅज नाम दिया है। हालांकि सभी पुरुषों को इस अवस्था से नहीं गुजरना पड़ता हैं लेकिन जिन्हें इस अवस्था से गुजरना पड़ता है उनकी समस्याओं के समाधान में हार्मोन रिप्लेसमेंट थिरेपी काफी कारगर साबित होती है। 
लाॅज एंजेल्स स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने अपने नवीनतम अध्ययनों में पाया कि सामान्य पुरुषों में मादा हार्मोन टेस्टोस्टेराॅन का स्तर 20 वर्ष की अवस्था में सबसे अधिक होता है और तीन वर्ष के बाद इसमें उतार आना आरंभ हो जाता है। इसके बाद शेष जीवन के दौरान हर वर्ष डेढ़ प्रतिशत के दर से गिरता है। यह गिरावट लगभग सभी पुरुषों में होती है। 50 वर्ष की अवस्था में रक्त में टेस्टोस्टेराॅन का स्तर सामान्य से आधा हो जाता है। 
नयी दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के यूरोलाॅजी एवं एंड्रोलाॅजी विशेषज्ञ डा. अजीत सक्सेना बताते हैं कि पुरुषों में रजोनिवृति के लक्षणों में सेक्स की इच्छा में कमी, लिंग में कड़ापन नहीं आने (इरेक्टाइल डिशफंक्शन), थकावट और आलस्य, अस्थि क्षय (ओस्टियोपोरोसिस) और  मांसपेशियों के वजन तथा उसकी ताकत में कमी जैसी समस्यायें प्रमुख हैं। रजोनिवृत पुरुषों में प्रकट होने वाले कई लक्षण रजोनिवृत (मीनोपाॅज) महिलाओं में भी उभरते हैं। मिसाल के तौर पर किसी काम में ध्यान नहीं लगा पाना, रुचियों में कमी, अनिद्रा, चिडचिड़पन और उदासी जैसे लक्षण रजोनिवृति के बाद महिलाओं और पुरुषों दोनों में प्रकट हो सकते हैं। 
अनेक अध्ययनों से पता चला है कि टेस्टोस्टेराॅन में गिरावट के कारण हृदय रोग और अस्थि क्षय जैसी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के खतरे भी अधिक हो जाते हैं।  
डा. अजीत सक्सेना बताते हैं कि पुरुष 40 से 55 वर्ष की उम्र के बीच महिलाओं के समान रजोनिवृति का अनुभव कर सकते हैं। महिलाओं में रजोनिवृति 40 और 50 साल की उम्र के बीच होती है। लेकिन पुरुषों में रजोनिवृति की शुरुआत और रजोनिवृति के बाद शारीरिक एवं मानसिक परिवर्तन की प्रक्रिया बहुत धीमी होती है। परिवर्तन की यह प्रक्रिया कई साल और यहां तक कि दशक में पूरी हो सकती है जबकि महिलाओं में ये परिवर्तन तेजी से और एकबारगी होते हैं। महिलाओं के विपरीत पुरुषों में रजोनिवृति शुरू होने पर रज स्राव के बंद होने जैसे किसी स्पष्ट लक्षण नहीं उभरते हैं। लेकिन दोनों में हार्मोन के स्तर में गिरावट होती है। रजोनिवृति होने पर महिलाओं में इस्ट्रोजेन जबकि पुरुषों में टेस्टोस्टेराॅन नामक हार्मोन में गिरावट आती है। स्वभाव, मानसिक तनाव, शराब सेवन, चोट, सर्जरी, दवाइयों के दुष्प्रभाव, मोटापा, और संक्रमण एंड्रोपाॅज के कारण बन सकते हैं। 
एंड्रोलाॅजी के कारण ये सब शारीरिक एवं मानसिक परिवर्तन व्यक्ति के जीवन के उस मोड़ पर होते हैं जब समाज में उनकी कार्य क्षमता पर प्रश्न उठने लगते हैं, उन्हें कार्यमुक्त होना पड़ता है और मानसिक रूप से सठियाया हुआ माना जाने लगता है। ऐसे में यह स्पष्ट तौर पर पता चल पाना मुश्किल होता है कि पुरुषों में दिमागी और शारीरिक तौर पर होने वाले परिवर्तन क्या रजोनिवृति (एंड्रपाॅज) के कारण ही हुये हैं। 
हालांकि उम्र बढ़ने के साथ लगभग सभी पुरुषों में टेस्टोस्टेराॅन के स्तर में गिरावट आती है लेकिन इस बात का पूर्वानुमान नही लगाया जा सकता है कि किसे और किस उम्र में रजोनिवृति जैसी अवस्थाओं या समस्याओं से गुजरना पड़ेगा। यही नहीं अलग-अलग लोगों में रजोनिवृति के लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं। 
अध्ययनों से पता चला है कि 30 साल की उम्र के बाद हर 10 साल में टेस्टोस्टेराॅन के स्तर में 10 प्रतिशत की गिरावट होती है। उसी समय सेक्स बाइंडिग हार्मोन ग्लोबुलिन (एस एच बी जी ) नामक शरीर में पाया जाने वाला एक और फैक्टर बढ़ने लगता है। यह बहुत अधिक टेस्टोस्टेराॅन को अपने साथ समाहित कर लेता है जिसके कारण शरीर में मौजूद टेस्टोस्टेराॅन के प्रभाव ऊतकों तक नहीं पहुंच पाते हैं। बचे हुये टेस्टोस्टेराॅन को जैव उपलब्ध टेस्टोस्टेराॅन कहा जाता है। 
डा. अजीत सक्सेना बताते हैं कि एंड्रोपाॅज का संबध जैव उपलब्ध टेस्टोस्टेराॅन के निम्न स्तर से है। हालांकि हर पुरुषों के जैव उपलब्घ टस्टोस्टेराॅन में गिरावट होती है लेकिन कुछ पुरुषों में यह गिरावट अन्य लोगों की तुलना में अधिक होती है। 
डा. सक्सेना बताते हैं कि एंड्रोपाॅज के कारण व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता पर असर पड़ता है। कई लोगों में खतरनाक स्तर तक टेस्टोस्टेराॅन में गिरावट होती है। एक अनुमान के अनुसार 50 साल की उम्र के 30 प्रतिशत पुरुषों को टेस्टोस्टेराॅन में इस कदर की गिरावट का सामना करना पड़ता हैं कि उन्हें स्वास्थ्य संबंधी खतरे उत्पन्न हो जाते हैं। 
टेस्टोस्टेराॅन नामक हार्मोन का पूरे शरीर पर असर पड़ता है। टेस्टेस्टेराॅन का निर्माण टेस्टिस और एड्रिनल ग्रंथि में होता है। यह हार्मोन प्रोटीन के निर्माण में सहायक होता है और सामान्य यौन व्यवहार एवं यौन क्षमता के लिये आवश्यक होता है। यह हार्मोन अस्थि मज्जा की रक्त कोशिकाओं, अस्थि निर्माण, लिपिड उपापचय, कार्बोहाइड्रेड मेटाबाॅलिज्म, लीवर फंक्शन और प्रोस्टेट ग्रंथि के विकास जैसी अनेक उपापचय गतिविधियों को प्रभावित करता है। शरीर में टेस्टोस्टेराॅन का स्तर कम हो जाने पर टेस्टोस्टेराॅन के प्रभाव में काम करने वाले अंगों की क्रियाशीलता कम हो जाती है जिससे शरीर में अनेक परिवर्तन आते हैं। 
एंड्रोपाॅज के कारण जीवन की गुणवत्ता एवं सेक्स और प्रजनन क्षमता प्रभावित होने के अलावा स्वास्थ्य संबंधी अनेक खामोश खतरे भी होते हैं जिनके बारे में पहले से पता लगाना मुश्किल होता है। इन खतरों में हृदय रोग और ओस्टियोपोरोसिस भी शामिल है। 


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