• शरीर के नीचले हिस्से से रक्त को हृदय तक पहुंचाने वाली बड़ी नली "इंफेरियर वेना कावा __(आईवीसी)" के निकट बड़े आकार के रिट्रोपेरिटोनियल स्क्वानोमा की सर्जरी
• असाधारण आकार वाले रिट्रोपेरिटोनियल स्क्वानोमा की माप 13 गुणा 9 गुणा 7 सेंमी
सर गंगा राम हॉस्पिटल के आईएमएएस (इंस्टीच्यूट ऑफ मिनिमल एक्सेस, मेटाबोलिक एंड बैरिएट्रिक सर्जरी) ने रोबोटिक असिस्टेड रिट्रोपेरिटोनियल स्क्वानोमा एक्सिजन की सफलता पूर्वक सर्जरी कीइस तरह की सर्जरी का यह दुनिया में पहला मामला है। सर गंगा राम हॉस्पिटल के इंस्टीच्यूट ऑफ मिनिमल एक्सेस, मेटाबोलिक एंड बैरिएट्रिक सर्जरी के अध्यक्ष डा. प्रवीण भाटिया ने सर्जरी के सफलतापूर्वक सम्पन्न होने की आज यहां घोषणा कहते हुये बताया कि रोबोटिक तकनीक का इस्तेमाल इसके – त्रिआयामी "3 डी" मैग्नीफिकेशन तथा प्रेसिजन के लिए कई प्रकार की सर्जरी की प्रक्रियाओं में किया जाता है, लेकिन भारत में और संभवतः विश्व में पहली बार इस रोबोटिक तकनीक का इस्तेमाल दाहिनी तरफ के ट्यूमर को रिसेक्ट करने के लिए किया गया है। रिट्रोपेरिटोनियल स्क्वानोमा का रिसेक्शन आम तौर पर एंटेरियर रिट्रोपेरिटोनियल विधि का इस्तेमाल करके किया जाता हैयह एक प्रकार का असामान्य ट्यूमर है जो 5 से 6 सेमी की व्यास से अधिक नहीं होता है। इस ट्यूमर की स्थिति में मरीज का इलाज करने के लिये ऑपरेशन ही मुख्य उपाय होता हैसर गंगा राम अस्पताल में की गयी इस सफल सर्जरी से पता चलता है कि रिट्रोपेरिटोनियल हिस्से में रोबोटिक रिसेक्शन संभव है। रोबोटिक सर्जरी करने पर परपंरागत ओपन सर्जरी की तलना में बहत कम एवं बहुत छोटे चीरे लगाने की जरूरत पड़ती है
सर गंगा राम हॉस्पिटल के इंस्टीच्यूट ऑफ मिनिमल एक्सेस, मेटाबोलिक एंड बैरिएट्रिक सर्जरी के अध्यक्ष डा. प्रवीण भाटिया कहते हैं, "ट्यूमर एक तरफ आईवीसी से और दूसरी तरफ दाहिने गुर्दे, अग्नाशय और छोटी आंत में फंस गया थाइस मुश्किल स्थिति में सर्जरी के दौरान कम रक्त की हानि, कम निशान, उच्च परिशुद्धता के साथ बहुत कम दर्द और सर्जरी के बाद मरीज के शीघ्र स्वस्थ्य होने के लिए रोबोटिक सर्जरी (दा विंची सी एचडी सर्जिकल सिस्टम) के इस्तेमाल के विकल्प को चुना गयाऐसे दुर्लभ मामले के कारण डा. प्रवीण भाटिया और डा. विवेक बिंदल को शिकागों के इलिनोइस विश्वविद्यालय के क्लिनिकल रोबोटिक सर्जरी असोसिएशन के सम्मेलन में इस मामले के अध्ययन को प्रस्तुत करने और इस अनूठी सर्जरी द्वारा प्राप्त अनुभव को साझा करने के लिए आमंत्रित किया गया हैमामले की रिपोर्ट : 45 वर्षीय महिला को दो साल से दाहिने पैर के निचले हिस्से के हाइपोहाइड्रोसिस के साथ पेट के दाहिने हिस्से में भारीपन की शिकायत थी। रिट्रोपेरिटोनियल गांठ दाहिने हाइपोकोंड्रियम और लंबर क्षेत्र
में साफ दिखाई दे रहा थापेट की सीटी और एमआरआई से पता चला कि यह गांठ 12.2 गुणा 8.5 गुणा 8.2 सेंटीमीटर का था और इस गोलाकार आकृति में कैल्शिफिकेशन की फोसी के साथ घाव था जो नेक्रोसिस मीडियल से दाहिने गुर्दे और पार्श्व से आईवीसी तक था और दोनों की रिनल वाहिकाओं को अपनी जगह से हटा रहा था। उसमें लिम्फेडेनोपैथी नहीं था और सीरम एएफपी, बीटा-एचसीजी और एलडीएच सामान्य सीमा में थेमरीज के बायें पार्श्व हिस्से में दा विंची एसआई एचडी सर्जिकल प्रणाली एवं ट्रांस-पेरिटोनियल विधि का
मरीज के बायें पार्श्व हिस्से में दा विंची एसआई एचडी सर्जिकल प्रणाली एवं ट्रांस-पेरिटोनियल विधि का इस्तेमाल करते हुये ट्यूमर का रोबोटिक विच्छेदन किया गया। दा विंची सर्जिकल प्रणाली की मदद से छोटी सी जगह में भी नाजुक विच्छेदन किया जा सकता है। इस तरीके से आसपास के अंगों एवं महत्वपूर्ण धमनियों को नुकसान पहुंचाये बगैर ट्यूमर को पूरी तरह निकाल लिया गया। एक कैमरा आर्म पोर्ट के साथ रोबोटिक उपकरणों के आर्म का इस्तेमाल किया गया। नैदानिक लैपरोस्कोपी से पता चला कि ट्यूमर के दायें रेट्रोपेरिटोनियल हिस्से में एक बड़ी गांठ है और वह गांठ कोलोन पर एक तरफ दबा रहा था और इस कारण वहां सर्जरी संबंधी प्रक्रिया करने के लिये बहुत कम जगह बची थी। लेकिन रोबोटिक प्रक्रिया के जरिये आईवीसी, ड्यूडेनम, पैंक्रियाज के अगले सिरे और किडनी के दाहिने हिस्से से ट्यूमर के पूरे के पूरे हिस्से को अलग करके निकाल लिया गयापरिणाम
परिणाम ऑपरेशन में 240 मिनट का समय लगा तथा करीब 200 मिली लीटर रक्त का नुकसान हुआऑपरेशन के दौरान या ऑपरेशन के बाद कोई जटिलता नहीं हुयी और मरीज को ऑपरेशन के तीसरे दिन अस्पताल से छुट्टी दे दी गयीहिस्टोपैथोलॉजी रिपोर्ट से पता चला कि यह 13 गुना 9 गुना 7 सेंटीमीटर लंबा, कैंसर या रोग रहित स्क्वानोमा ट्यूमर था जो एक 1100 के लिये पॉजिटिव तथा एसएमए, सीडी 117 और सीडी 34 के लिये निगेटिव थानिष्कर्ष
निष्कर्ष आईएमएएस के कंसल्टेंट एवं टीम में शामिल डा. विवेक बिंदाल ने बताया, "रोबोटिक तकनीक के इस्तेमाल से रेट्रोऑपरिटोनियल ट्यूमरों को सुरक्षित एवं कारगर तरीके से निकाला जा सकता है तथा इसमें कम से कम चीरा लगाने की जरूरत पड़ती है। यह 3 डी दृष्टि, इंडोरिस्टेड उपकरणों, ट्रेमोर फिल्ट्रेशन एवं मोशन स्कैलिंग तकनीक के कारण संभव हुआ है।"
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