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स्टेम सेल से 130 लाइलाज बीमारियों का इलाज

हमारे देश में हर दिन जन्म लेने वाले 30 हजार बच्चों में से करीब 30 बच्चे जन्मजात बीमारियों से ग्रस्त होते हैं। इसके अलावा पांच वर्ष से कम उम्र के तकरीबन बीस लाख बच्चे अन्य बीमारियों से ग्रस्त होकर असामयिक मौत के ग्रास बन जाते हैं। हालांकि इनमें से ज्यादातर बच्चों स्टेम सेल आधारित चिकित्सा एवं अन्य आधुनिक चिकित्सा तकनीकों की मदद से काल ग्रस्त होने से बचाया जा सकता है, लेकिन दुर्भाग्य से भारत इन चिकित्सा तकनीकों के इस्तेमाल के मामले में काफी पीछे है।
दुनिया भर में हुये अध्ययनों एवं अनुसंधानों से पता चला है कि स्टेम सेल थिरेपी के जरिये 130 से अधिक आनुवांशिक एवं लाइलाज बीमारियों का इलाज हो सकता है। इसके अलावा इस समय स्टेम सेल आधारित चिकित्सा विधियों का विकास करने के लिये कम से कम 500 क्लिनिकल अध्ययन चल रहे है और स्टेम सेल अनुसंधान में भारतीय वैज्ञानिक भी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं लेकिन दुर्भाग्या से हमारे समाज में और यहां तक कि चिकित्सकों के बीच स्टेम सेल की उपयोगिता को लेकर पर्याप्त जागरूकता कायम नहीं हुयी है। 
प्रमुख स्त्री रोग विषेशज्ञ तथा यहां स्थित फीनिक्स हास्पीटल की निदेशक डा. उर्वशी सहगल कहती है, ''अब ज्यादा से ज्यादा माता-पिता अपने होने वाले बच्चे तथा अपने पूरे परिवार के स्वस्थ्य भविष्य के लिये गर्भनाल रक्त बैंकिंग का लाभ उठाने के लिये आगे आ रहे हैं। यही नहीं गर्भास्था के प्रति भी स्त्री रोग विशेषज्ञों का नजरिया भी धीरे-धीरे बदल रहा है तथा वे भी स्टेम सेल एवं रिजेनेरेटिव चिकित्सा के क्षेत्र में विकसित हो रही नयी तकनीकों से अवगत हो रहे हैं।
नयी दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ अस्थि शल्ष चिकित्सक डा. राजू वैश्य बताते हैं, आस्टियो आर्थराइटिस एवं जोड़ों में लगने वाली चोटों में ऑटोलोगोस कोंड्रोसाइट इम्लांटेशन (ए सी आई) एवं ऑटोलोगोस बोन इम्लांटेषन (ए बी आई) जैसी स्टेम सेल आधारित तकनीकें अत्यंत कारगर साबित हो रही है और अस्थि शल्य चिकित्सकों बीच ये तकनीकें अब तेजी से लोकप्रिय भी हो रही हैं। इन तकनीकों के कारण चीर-फाड़ नहीं करनी पड़ती है, इनका बहुत कम दुष्प्रभाव है, ये तकनीकें अधिक सुरक्षित एवं कारगर हैं। यही कारण है कि धीरे-धीरे ये तकनीकें परम्परात अस्थि षल्य चिकित्सा का स्थान ले रही हैं।''
इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ कास्मेटिक एवं प्लास्टिक सर्जन डा. अनूप धीर बताते हैं कि स्टेम सेल एवं रिजेनेरेटिव कोशिकाओं का इस्तेमाल कास्मेटिक एवं प्लास्टिक शल्य क्रियाओं खास तौर पर स्तर में उभार लाने तथा चेहरे पर निखार लाने के लिये की जाने वाली प्रक्रियाओं में भी इस्तेमाल होने लगा है। 
रिजेनेरेटिव चिकित्सा के क्षेत्र में हुये अनुसंधानों से यह साबित हो चुका है कि रक्त एवं रोग प्रतिरक्षण से संबंधित अनेक विकारों के अलावा सेरेब्रल पाल्सी, कुछ तरह के कैंसर, होडकिन्स रोग एवं अन्य आनुवाषिंक बीमारियों के इलाज में स्टेम सेल थिरेपी कारगर है। हालांकि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश भारत में स्टेम सेल को लेकर जागरूकता का भारी अभाव है। न केवल आम लोगों में बल्कि चिकित्सकों में भी स्टेम सेल थिरेपी के बारे में कम जागरूकता है।
भारत में स्टेम सेल थिरेपी एवं स्टेम सेल बैंकिंग की अवधारणा पांच साल से अधिक समय से स्थापित हो चुकी है और धीरे-धीरे लोग स्टेम सेल थिरेपी का लाभ उठाने के लिये आगे आ रहे हैं और चिकित्सा जगत में भी स्टेम सेल आधारित चिकित्सा को वैकल्पिक चिकित्सा के तौर पर देखा जाने लगा है। भारत में इस समय छह से अधिक गर्भनाल रक्त बैंक स्थापित हो चुके हैं और अब अधिक संख्या में गर्भवती महिलायें इसका लाभ उठाने के लिये आगे आ रही हैं। इस समय स्टेम सेल बैंकिंग क्षेत्र का 300 प्रतिशत से अधिक दर से विकास हो रहा है और यह स्पश्ट हो रहा है कि भारत धीरे-धीरे स्टेम सेल के क्षेत्र में हो रहे अंतर्राष्ट्रीय विकास दर को छू लेगा।   


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