उन्नत बीएमटी प्रक्रियाओं से रक्त से संबंधित बीमारियों का होगा कारगर इलाज

हेमेटोलॉजी और स्टेम सेल प्रत्यारोपण के क्षेत्र में हुई प्रगति के कारण, अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण (बीएमटी) लाइलाज और संभावित घातक बीमारियों के लिए सबसे अच्छे इलाज के रूप में उभर रहा है।
एक्यूट ल्यूकेमिया, मल्टीपल मायलोमा, अप्लास्टिक एनीमिया, थैलेसीमिया मेजर, सिकल सेल रोग और कई अन्य प्रकार के कैंसर जैसी घातक मानी जाने वाली रक्त से संबंधित ऐसी बीमारियों का अब बीएमटी से सफलतापूर्वक इलाज किया जा सकता है, जिसमें कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी जैसी पारंपरिक चिकित्सा कारगर साबित नहीं होती है।
मैक्स सुपर स्पेशलिटी हाॅस्पिटल, पटपड़गंज और वैशाली के हेमेटोलाॅजी, ब्लड कैंसर और बोन मैरो ट्रांसप्लांट विभाग के निदेशक डाॅ. प्रवास चंद्र मिश्रा ने कहा, ''अस्थि मज्जा हड्डियों के अंदर नरम फैटी ऊतक होता है जो रक्त कोशिकाओं में फैलता है। बीएमटी प्रक्रिया को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है - एलोजेनिक (जिसमें ऊतक मैच करने वाला कोई डोनर हो) और ऑटोलॉगस (जिसमें स्टेम सेल उसी के शरीर से लिया जाता है)। परंपरागत बीएमटी के दौरान क्षतिग्रस्त या नष्ट हुई अस्थि मज्जा को स्वस्थ लोगों की अस्थि मज्जा और प्रमुख सहायक कारकों से बदलने की आवश्यकता होती है। लेकिन इसके लिए मरीज की कोषिकाओं का दाता की कोशिकाओं से मैच करना जरूरी होता है। लेकिन हाल ही में हुई प्रगति के कारण, हेप्लो- आईडेंटिकल प्रत्यारोपण प्रक्रिया से ऐसे मरीजों का सफलता पूर्वक इलाज किया जा सकता है जिसमें दाता का ऊतक 50 प्रतिषत तक मेल खाता है या आधा आईडेंटिकल होता है। इस प्रक्रिया ने अत्यंत आवष्यक बीएमटी का इंतजार कर रहे कई रोगियों के वेटिंग पीरियड को लगभग समाप्त कर दिया है।'' 
हाल के वर्षों में, हेमटोलॉजी और स्टेम सेल प्रत्यारोपण के क्षेत्र में अभूतपूर्व सफलताएं मिली हैं। हाल की नवीनतम उपलब्धि हैप्लो आईडेंटिकल ट्रांसप्लांटेशन तकनीक है जिसने अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण की तत्काल आवश्यकता वाले लोगों के प्रतीक्षा समय को समाप्त कर दिया है।
उन्होंने कहा, “इसी तरह का एक मामला श्री आयुष्मान का है जिनमें 30 साल की उम्र में रक्त कैंसर का पता चला था और उनका कई तकनीक से इलाज किया गया था। लेकिन समय के साथ उनकी स्थिति बिगड़ती चली गई और इन उपचारों से कोई फायदा नहीं हुआ। तब उन्हें स्टेम सेल प्रत्यारोपण के क्षेत्र में हुई प्रगति के बारे में पता चला। जीवन और मृत्यु के बीच जूझ़ते हुए, वे मैक्स हाॅस्पिटल पटपड़गंज आए, जहां उन्हें एक्यूट माइकोलाइड ल्यूकेमिया का पता चला। कई अस्पतालों ने कोषिका के मिलान नहीं होने के कारण अस्थि मज्जा उपचार से इनकार कर दिया। लेकिन हेप्लो आईडेंटिकल स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन का नया विकल्प उनके लिए सबसे उपयुक्त साबित हुआ क्योंकि इसमें केवल आधी कोषिकाओं के मैच करने की जरूरत होती है और इससे चमत्कारिक परिणाम हासिल होते हैं। उनके पिता और बहन का  हैप्लाॅयड मैच के लिए परीक्षण किया गया और उम्र के कारक के कारण उनकी बहन का दाता के रूप में चयन किया गया। इलाज के एक साल बाद वह पहले की तरह ही सामान्य जीवन जी रहे हैं।”