दर्द को समझने के लिये दार्शनिकों, वैज्ञानिकों एवं चिंतकों ने कम दर्द नहीं सहा है लेकिन आज भी दर्द के रहस्य पर से पूरी तरह से पर्दा नहीं उठ सका है। दर्द क्या है, यह क्यों और कहां से उठता है और इस पर कैसे काबू पाया जा सकता है जैसे सवाल आज भी वैज्ञानिकों को परेशान किये हुये हैं। दर्द की पहेली के बारे में फ्रांस के मेडिकल मिशनरी डा. अल्बर्ट शेजर ने 1931 में लिखा था - दर्द मानव जाति के लिये मौत से भी अधिक भयावह दैवी विपत्ति है।
कहा जाता है कि दर्द को केवल वही जानता है जो इसे झेलता है। तभी तो मीरा ने गाया था.. मेरा दर्द न जाने कोय।...
दर्द कोई भी नहीं चाहता है लेकिन दर्द है कि होता ही है। आखिर दर्द है क्या घ् दर्द दरअसल शरीर के चेतावनी संकेत के रूप में काम करके आपकी रक्षा करता है। मिसाल के तौर पर आप अपना हाथ गर्म तवे पर रख दें तो दर्द कहेगा कि तवे पर से तत्काल हाथ हटा लें। दर्द न केवल शरीर को चोट से बचाता है बल्कि जख्म को जल्द ठीक होने में मदद करता है। दर्द होने के कारण आप आराम करने को मजबूर होते हैं और शरीर को आपके जख्म को ठीक करने में मदद मिलती है।
दर्द से राहत पाने के उपायों की तलाश पाषाण युग से ही अनवरत जारी है। प्राचीन काल के शिलालेखों से पता चला है कि उस समय दर्द से राहत के लिये दबाव, ताप, जल एवं धूप का इस्तेमाल किया जाता था। दर्द से तड़पते लोग जादूगरों, शैमनों और पुजारियों के पास जाते थे जो दर्द से राहत दिलाने के लिये जड़ी-बूटियों, जादू-टोने, झाड़-फूंक, मंत्रों और पूजा-पाठ एवं अनुष्ठानों का प्रयोग करते थे।
प्राचीन मानव दर्द को शैतान, बुराई और जादू-टोने से जोड़ते थे। युनानियों एवं रोमनों ने पहली बार संवेदना की अवधारणा विकसित की जिसके अनुसार दर्द की अनुभूति को पैदा करने में मस्तिष्क एवं स्नायु प्रणाली की भूमिका है। इस अवधारणा को मध्य काल और आगे चल कर पुनर्जागरण काल (1400 से 1500) में मान्यता मिली और इसके पक्ष में अनेक सबूत जुटाये गये। लियोनार्दो दा विंसी और उनके समय के अनेक सिद्धांतकारों ने यह माना कि दर्द एवं अन्य अनुभूतियों के लिये मस्तिष्क ही मुख्य रूप से जिम्मेदार है। लियोनार्दो दा विंसी ने ही इस धारणाा को विकसित किया कि स्पाइनल कार्ड ही मस्तिष्क तक विभिन्न अनुभूतियों को पहुंचाता है।
सत्तरहवीं एवं अठारहवीं शताब्दी में दर्द जैसी अनुभूतियों पर अध्ययन-अनुसंधान दुनियाभर के दार्शनिकों एवं वैज्ञानिकों के लिये रोचक विषय बना रहा। दर्द पर वैज्ञानिक अनुसंधान एवं दर्द की आधुनिक चिकित्सा की शुरूआत 1880 से हुयी। उन्नीसवीं शताब्दी में दर्द के विज्ञान के नये दायरे में आने से दर्द की कारगर चिकित्सा का मार्ग प्रशस्त हुआ। अध्ययनों एवं अनुसंधानों से चिकित्सकों एवं वैज्ञानिकों ने पाया कि अफीम, मार्फिन, कोडीन एवं कोकिन जैसी औषधियां दर्द से राहत दिलाने में कारगर हैं। इसके आधार पर ही आज की अत्यंत लोकप्रिय दर्दनिवारक औषधि एस्प्रीन के विकास का मार्ग खुला। पिछले एक दशक के दौरान हुये अनुसंधानों से वैज्ञानिकों ने पाया कि सभी तरह के दर्द एक समान नहीं होते हैं। मधुमक्खी के काटने का दर्द आथ्र्राइटिस के दर्द से अलग होता है। यही नहीं अलग-अलग व्यक्ति दर्द का अहसास अलग-अलग तरीके से करते हैं। पुरुषों की तुलना में महिलायें और वयस्कों की तुलना में बच्चे दर्द को भिन्न तरीके से महसूस करते हैं। कुछ लोगों को कोई खास दर्द अधिक महसूस होता है तो कुछ लोगांे को वही दर्द कम महसूस होता है। कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्हें जन्म से ही दर्द का अहसास नहीं होता है। ऐसे लोग एक विशिष्ट अवस्था से ग्रस्त होते हैं जिसे दर्द के प्रति जन्मजात असंवेदनशीलता अर्थात कंजेनिटल इनसेंसिटिविटी टू पेन कहा जाता है। ऐसे लोगों की स्नायु प्रणाली दर्द से संबंधित संकेतों को पकड़ या पहचान पाने में असमर्थ रहती है। यह अवस्था घातक साबित हो सकती है।
स्पाइनल कार्ड एवं नर्व शरीर के विभिन्न अंगों और मस्तिष्क के बीच दर्द की अनुभूति संवाहन करते हैं। हमारी त्वचा के नीचे अवस्थित रिसेप्टर नर्व कोशिकायें ठंडा, गर्म, नरम, कठोर एवं दर्द की अनुभूतियों को ग्रहण करता है। हमारे शरीर में हजारों की संख्या में रिसेप्टर नर्व कोशिकायें होती हैं। अलग-अलग कोशिकायें अलग-अलग अनुभूतियों को ग्रहण करती हैं। ज्यादातर कोशिकायें दर्द की अनुभूतियों को ग्रहण करती हैं जबकि कुछ ही कोशिकायें सुखद अनुभूतियों को ग्रहण करती हैं। जब शरीर के किसी अंग में गड़बड़ी होती है या चोट लगती है तो ये कोशिकायें नर्व के जरिये अपने संदेश स्पाइनल कार्ड को भेजती है और फिर स्पाइनल कार्ड के जरिये संदेश मस्तिष्क तक पहुंचता है।
दर्द निवारक दवाईयां इन संदेशों को मस्तिष्क तक आने से रोकती हैं और मरीज को दर्द से राहत मिलती है। कई बार दर्द यू हीं हो सकती है। मिसाल के तौर पर मामूली सिर दर्द। लेकिन कई बार दर्द ऐसा गहरा एवं स्थायी होता है कि यह दर्दनिवारक दवाईयों से भी नहीं जाता है। यह इस बात का संकेत होता है कि कोई गंभीर समस्या है। लंबे समय तक रहने वाले तेज दर्द कैंसर, गठिया, कमर दर्द, मधुमेह, माइग्रेन तथा स्नायु रोगों जैसी गंभीर बीमारियों से हो सकता है।
आज दर्द से राहत दिलाने के लिये अनेक दवाइयों, उपायों और तकनीकों का विकास हो चुका है। दर्द से राहत के लिये डाक्टरी पर्चे के बगैर मिलने वाली दवाइयों में तीन श्रेणियों की दवाइयां प्रमुख है। ये हैं - एस्प्रीन, एसिटामिनोफेन और आईब्रुफेन। ये सभी दर्दनिवारक दवाइयां प्रोस्टाग्लैंडिन्स नामक रसायन उत्सर्जित करती हैं। शरीर इस रसायन का उत्सर्जन तब करता है जब कोशिकायें जख्मी होती हैं। यह माना जाता है कि प्रोस्टाग्लैंडिन्स दर्द, जलन, सूजन आदि में काफी राहत प्रदान करता है। इस तरह की समस्यायें आम तौर पर ऊतक के क्षतिग्रस्त होने पर होती है। जब गंभीर चोट, सर्जरी अथवा गंभीर बीमारी के कारण दर्द बहुत तेज होता है तो तेज एवं अधिक असरकारक दवाइयों की जरूरत होती है। ऐसी दवाइयों को नाॅनस्टेराॅयडल एंटी-इंफलेमेट्री ड्रग्स (एन.एस.ए.डी.) कहा जाता है। ये दवाइयां भी प्रोस्टाग्लैंडिन्स रसायन का उत्पादन करती हैं।
आज भी यह देखने के लिये किसी तकनीक का विकास नहीं हो पाया है कि किसी व्यक्ति को कितना दर्द हो रहा है। किसी भी जांच या परीक्षण, किसी भी इमेजिंग उपकरण और अन्य तरह के यंत्र से दर्द की तीव्रता एवं जगह का सही-सही निर्धारण नहीं किया जा सकता है। इसलिये अक्सर चिकित्सक को दर्द के बारे में जानने के लिये मरीज की खुद की व्याख्या पर ही निर्भर रहना पड़ता है। आज ऐसे अनेक तकनीकों का विकास हुआ है जिससे दर्द के कारणों का पता लगाया जा सकता है। इन तकनीकों में इलेक्ट्रोमायोग्राफी (ई.एम.जी.), नर्व कंडक्शन स्डटी एवं इवोक्ड पोटेंशियल स्डटी, मैग्नेटिक रिजोनेंस इमेजिंग (एम.आर.आई.) और एक्स- रे आदि प्रमुख हैं।
ये दर्द कहां से उठता है... जो जिगर के पार होता है...
~ ~
SEARCH
LATEST
6-latest-65px
POPULAR-desc:Trending now:
-
- Vinod Kumar मस्तिष्क में खून की नसों का गुच्छा बन जाने की स्थिति अत्यंत खतरनाक साबित होती है। यह अक्सर मस्तिष्क रक्त स्राव का कारण बनती ह...
-
विनोद कुमार, हेल्थ रिपोर्टर वैक्सीन की दोनों डोज लगी थी लेकिन कोरोना से बच नहीं पाए। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक...
-
INDIAN DOCTORS FOR PEACE AND DEVELOPMENT An international seminar was organised by the Indian Doctors for Peace and Development (IDPD) at ...
-
अत्यधिक प्रतीक्षित इंडो इंटरनेशनल फैशन कार्निवल एंड अवार्ड्स सीजन 2: मिस, मिसेज और मिस्टर स्टार यूनिवर्स ने एक शानदार लोगो लॉन्च इवेंट के सा...
-
The woman in the picture with a smile is Salwa Hussein !! She is a woman without a heart in her body. She is a rare case in the world, as...
Featured Post
Air Pollution Fuels Alarming Rise in Childhood Asthma Cases (On World Asthma Day - 6 May)
- Vinod Kumar, Health Journalist In a month, 3-4 kids, aged 6-10, report symptoms like frequent coughing, breathlessness during play, dis...
