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आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की चुनौतियाँ

आंगनवाड़ी- यह नाम सुनते ही ज़हन में क्या बात आती है? खिचड़ी स्कूल! जर्जर भवन! या इंजेक्शन, टैबलेट मिलने का स्थान! अलग-अलग स्थानों एवं अलग-अलग व्यक्तियों के लिए आंगनवाड़ी का नाम अलग-अलग हो सकता है परंतु इसकी स्थापना बहुत ही खास उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हुई थी। छोटे बच्चों में भूख एवं कुपोषण की समस्या को दूर करने, महिलाओं एवं बच्चों में स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याओं को दूर करने एवं शालापूर्व शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा 2 अक्टूबर 1975 को बांसवाड़ा के गढ़ी नामक स्थान से समेकित बाल विकास सेवाओं (Integrated Child Development Services, ICDS) का शुभारंभ हुआ एवं यहीं से जन्म हुआ आंगनवाड़ी नामक संस्थान का। विगत् 45 वर्षों में आंगनवाड़ी के प्रारूप एवं उद्देश्यों में बदलाव आ गया है। आंगनवाड़ियाँ पहले से ज्यादा संगठित हुई हैं। योजनाओं की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है। आज आंगनवाड़ियों के माध्यम से बच्चों एवं महिलाओं के लिए निम्न प्रकार की सेवाओं एवं योजनाओं को क्रियान्वित किया जा रहा है-



  • शालापूर्व शिक्षा

  • पूरक पोषण योजना

  • पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा

  • टीकाकरण

  • स्वस्थ्य जांच एवं रेफरल सेवाएँ

  • विटामिन, आयरन एवं फॉलिक एसिड टैबलेट का वितरण

  • जल एवंस्वक्षता संबन्धित कार्यक्रम

  • महिला सशक्तिकरण के विभिन्न कार्यक्रम

  • किशोरियों के लिए कार्यक्रम

  • महिला स्वयं सहायता समूह कार्यक्रम इत्यादि।


उपरोक्त कार्यों के अलावा अन्य छोटे-बड़े कार्य भी आंगनवाड़ी के माध्यम से क्रियान्वित किए जातें हैं। इन कार्यों को क्रियान्वित करने के लिए एक आंगनवाड़ी में मुख्य रूप से 3 व्यक्तियों को नियुक्त किया गया है- आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, सहायिका, एवं आशा (ASHA) सहयोगिनी। इन 3 व्यक्तियों के अलावा ANM भी समयानुसार स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने के लिए केंद्र पर आती रहती हैं।कार्यकर्ता आंगनवाड़ी केंद्र पर होने वाली गतिविधियों को नेतृत्व प्रदान करती है। आंगनवाड़ी केंद्र पर होने वाली गतिविधियों के अलावा उन्हे पंचायत, ग्राम सभा, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर होने वाले कार्यक्रमों में भी भाग लेना पड़ता है। कार्य अत्यधिक होने के कारण इन्हें बहुत सारी चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है। आइये जरा हम संक्षेप में इनके चुनौतियों एवं समस्याओं पर नज़र डालें।


आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के सामने आने वाली महत्वपूर्ण चुनौतियाँएवं समस्याएँ निम्नलिखित हैं।


अत्यधिक कार्यभार- कार्यकर्ता के दिनचर्या को समझे तो उनके दैनिक कार्य का बड़ा समय  शालापूर्व शिक्षा की गतिविधियों, आंकड़ो के रखरखाव, समुदाय से संबंधित कार्यों एवं अन्य स्वास्थ्य कार्यक्रमों के लिए ASHA सहयोगिनीकी सहायता करने में जाता है।बहुत सारे ऐसे कार्य भी होते है जो आकस्मिक भी आते है, जिनको करना अत्यंत आवश्यक होता है।अत्यधिक कार्यभार,कार्य के अलग-अलग प्रारूप एवं कार्यों का समुचित प्रबंधन नहीं होने के कारण कार्यकर्ता को बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।यदि कार्य का विभाजन,कार्यों एवं समय का प्रबंधन करने का सतत् प्रशिक्षण दिया जाता है तो कार्यकर्ताओं का काम आसान होगा एवं चुनौतियाँ भी कम होंगी।


अत्यधिक रिकार्ड का रखरखाव:आंगनवाड़ी कार्यकर्ता को कुल 15-17 प्रकार के रजिस्टरों एवं फार्मों (विभिन्न राज्यों में संख्या कम या ज्यादा हो सकती है) का रख-रखाव सुनिश्चित करना पड़ता है। ये रजिस्टर कुछ इस प्रकार से हैं- सर्वे रजिस्टर, टीकाकरण रजिस्टर, एएनसी रजिस्टर, रेफरलरजिस्टर, डायरीएवं विजिट बुक,स्वयं सहायत समूह रजिस्टर, अभिभावक मीटिंग रजिस्टर,PMMVY का फार्म, ग्रोथ मोनिट्रिंग रजिस्टर आदि।इन रजिस्टरों का रख रखाव चुनौतीपूर्ण हो जाता है, खासकर उन कार्यकर्ताओं के लिए जो ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं है (जो 20-25 साल पुरानी हैं) एवं उनका पर्याप्त क्षमतावर्धन भी नही हुआ है। इस डिजिटलीकरण के दौर में मोबाइल एप्लिकेशन बेस्ड रेकॉर्ड रखने की पदत्ति को अपनाया जाए एवं सभी कार्यकर्ताओं का सतत् क्षमतावर्धन किया जाए तो आंकड़ो का रखरखाव आसान होगा एवं रजिस्टरों की संख्या में कमी आएगी।


अपर्याप्त मानदेय: हम अभी तक कार्यकर्ताओं के कार्यभार की चर्चा कर चुके हैं। आइए हम उनके काम के बदले उन्हें मिलने वाले मानदेय पर भी बात करते हैं। अपर्याप्त मानदेय आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं कीएक बहुत बड़ी समस्या है। लगभग सारी कार्यकर्ताएं अधिक मानदेय के लिए शिकायत करती पायी जातीं हैं। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता को मानद् कार्यकर्ता के रूप में समझा जाता है इसलिए उन्हें मानदेय दिया जाता हैना की न्यूनतम दैनिक मजदूरी या मासिक वेतन। एक कार्यकर्ता को 3000 से 7000 रुपये (अलग अलग राज्यों में अलग मानदेय दिया जाता है जो कम या ज्यादा हो सकता है)के बीच में मानदेय दिया जाता है जो किसी भी सरकारी कार्यों को करने वाले कर्मचारी से बहुत हीं कम है। वहीं सहायिका एवं आशा सहयोगिनी को 1000 से 2000 रुपये के बीच मानदेय दिया जाता है। उनके कार्यभार को देखते हुए यह धनराशि बहुत ही कम है। कई कार्यकर्ता तो ऐसी भी है जो स्वयं गरीबी रेखा से नीचे की श्रेणी में आती हैं, इस स्थिति में उनके जीवन यापन के लिए इतना मानदेय पर्याप्त नहीं है। कार्यकर्ता के लिए दिन में न्यूनतम 6 घंटे कार्य करने का प्रावधान है अतः पूरे दिन का समय देने के बदले मानदेय कम से कम इतना तो अवश्य होकी वो परिवार के आय में अपना योगदान दे पाएँ जिससे स्वयं एवं परिवार का जीवनयापन आसान हो पाये। कुछ राज्यों ने सर्राहनिय रूप से मानदेय थोड़ा बढ़ाया है परंतु वो भी अपर्याप्त है।


आंगनवाड़ी संबन्धित सामग्रियों कीअसमयआपूर्ति-


आंगनवाड़ी के विभिन्न गतिविधियों में प्रयोग होने वाली सामग्रियाँ जैसे की- पोषाहार, विटामिन, आयरन, फॉलिक एसिड एवं डीवोर्मिंग की टैबलेट, शिक्षण सामग्री,सूचना प्रदान करने हेतु सामग्रियाँ का समय पर केंद्र पर नहीं पहुँच पाने के कारण कार्यकर्ता को कार्यों को करने में विलंब होता है एवं उन्हे चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। सामग्रियों की आपूर्ति ऋंखला को दुरुस्त कर के सामग्रियों को नियत समय आंगनवाड़ी केंद्र पर पहुंचाया जा सकता है जिससे कार्य समय पर होंगे एवं कार्यकर्ता का काम भी आसान होगा।


बुनियादी ढांचे का अभाव-


यदि आंगनवाड़ी केंद्र को ध्यान से देखें तो हम पाते हैं कि अधिकांश केन्द्रों में-



  • भवन जर्जर हालत में हैं, लंबे समय से इसकी मरम्मत नही हुई है और ना रंग-रोगन का कार्य हुआ है।

  • कमरा छोटा है तथा शालापूर्व शिक्षा की गतिविधियों को करने केलिए स्थान पर्याप्त नही है।

  • बिजली एवं पंखा उपलब्ध नहीं है।

  • शौचालय एवं पानी उपलब्ध नहीं है।

  • समान इधर-उधर बिखरे पड़े रहते है एवं साफ-सफाई की कमी है।

  • उपकरण, फ़र्निचर, बैठने की व्यवस्था की कमी है।


उपरोक्त सभी ढांचागत सुविधाएं कार्यस्थल के वातावरण को कार्य करने योग्य बनातीहैं जिससे काम करना हीं आसान नही होता अपितु कार्य की उत्पादकता भी बढ़ती हैं। अतः बुनियादी ढांचे में बदलाव लाकर कार्यकर्ता की चुनौतियों को कम किया जा सकता है एवं केंद्र पर आने वाले बच्चों, अभिभावकों, महिलाओं एवं समुदाय के अन्य लोगों को केंद्र की ओर आकर्षित किया जा सकता है।


शालापूर्व शिक्षा संबन्धित प्रशिक्षण की कमी-


3-6 वर्ष के बच्चों को शालापूर्व शिक्षा प्रदान करना तथा बच्चों के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, रचनात्मक एवं भाषा विकास को सुनिश्चित करना आंगनवाड़ी (ICDS) का प्रमुख उद्देश्य हैं तथा इस कार्य का सारा उत्तरदायित्व कार्यकर्ता पर है। परंतु अत्यधिक कार्यभार होने एवं शालापूर्व शिक्षा के विभिन्न पहलुओं की कम समझ होने के कारण कार्यकर्ता शालापूर्व शिक्षा की गतिविधियों को पूरे समय नहीं करती या कर पातीं हैं। यदि शालापूर्व शिक्षाके पाठ्यक्रम में बदलाव लाकर, बुनियादी ढांचे (जैसे- खेलने की सामग्री,रंगीन पुस्तकें, ड्राइंग एवं पेंटिंग की सामग्री आदि) में परिवर्तन लाकर एवं कार्यकर्ताओं मेंसतत् प्रशिक्षण के माध्यम से पाठ्यक्रम की समझ बनाकर नियोजित तरीके से लागू किया जाए तो इससे कार्यकर्ता का काम भी आसान होगा एवं बच्चों का सर्वांगीण विकास भी सुनिश्चित किया जा सकेगा।


 अपर्याप्त पर्यवेक्षण एवं मार्गदर्शन-


कार्यकर्ताओं की चुनौतियों को कम करने एवं काम में गुणवत्ता लाने के लिए सतत् पर्यवेक्षण एवं उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।पर्यवेक्षकों को चाहिए की वो कार्यों का सही तरीके से निरीक्षण करें एवं कार्यकर्ता को उचित मार्गदर्शन दें एवं उन्हे प्रेरित करें न की उनके कार्यों में कमी निकालें। ऐसा प्रायः देखा गया है की पर्यवेक्षक आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के काम में कमी निकालतें है एवं सुधारने के लिए आदेशित करती/करतें है। यदि यही आदेश सहयोग एवं प्रेरणा में बदल जाता है तो काम में गुणवत्ता भी आएगी एवं कार्यकर्ताओं की चुनौतियाँ भी कम होंगी। कार्यकर्ताओं को पर्यवेक्षकोंके स्थान पर मेंटर की आवश्यकता है।


सामुदायिक भागीदारी की कमी-


‘आंगनवाड़ी गाँव एवं समुदाय की संपत्ति है न की सरकार की’- ऐसी भावना समुदाय में स्फुटित हो यह आवश्यक है। ऐसा देखा जाता है की गाँव के लोगों को आंगनवाड़ी केंद्र से बहुत ही कम मतलब होता है। असामाजिक तत्व आंगनवाड़ी की संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं। सामाजिक विकास की योजनाओं में समुदाय की भागीदारी कम होती और लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा नहीं लेते। आंगनवाड़ी संबन्धित समस्या के निवारण के लिए गाँव से लोग मदद के लिए नहीं आते। इन सब का प्रभाव कार्यकर्ता के काम पर भी पड़ता है एवं उनका काम अत्यंत चुनौतीपूर्ण हो जाता हैं। सामुदायिक सहभागिता कार्यक्रम चलाकरयदि लोगों को आंगनवाड़ी केंद्र से जोड़ा जाए तो सही अर्थ में विकास संभव हो पाएगा। यह आवश्यक है की आंगनवाड़ी को लेकर समुदाय में (खासकर महिलाओं में) अपनत्व की भावना विकसित की जाए एवं इसकी बागडोर उनके हाथ में दे दी जाय। इसके लिए हर आंगनवाड़ी पर विद्यालय प्रबंधन समिति की तरह आंगनवाड़ी प्रबंधन समिति की स्थापना होनी चाहिए।


आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ICDS एवं समुदाय को जोड़ने का कार्य करती है। ये लाभार्थियों के घर तक ICDS की सेवाएँ पहुँचाने में सक्रिय भूमिका निभाती हैं परंतु महिला एवं बाल विकास विभाग को चाहिए की वो कार्यकर्ता के मानदेय संबंधी समस्या को दूर करे एवं उनके कार्यों एवं जिम्मेदारियों के संबंध मे सतत् प्रशिक्षण के माध्यम से सटीक ज्ञान प्रदान करें ताकि इनकी चुनौतियाँ कम हो सकें एवं वो अपने काम को प्रभावी तरीके से कर पाएँ।


इस कार्य में गैर सरकारी संस्थान एवं कंपनियों के CSR की मदद ली जा सकती है। कुछ संस्थाओं ने कार्यकर्ताओं, अंगनवाड़ियों, एवं सामुदायिक भागीदारी को सुदृढ़ बनाया है, इस क्षेत्र में नवाचार किया है एवं ICDS की सेवाओं को अच्छे तरीके से धरातल पर उतारा है। परंतु यह बहुत ही सीमित क्षेत्र में है एवं इसका विस्तार सभी आंगनवाड़ी केन्द्रों तक होना आवश्यक है। महिला एवं बाल विकास विभाग को चाहिए की वो इन क्षेत्रों में होने वाले नवाचारों एवं अच्छे कार्यों को अपनाएं एवं नीतियों में बदलाव लाकर ICDS की कार्य प्रणाली को सुदृढ़ बनाए। जब तक की नीतियों में बदलाव नहीं लाया जाता एवं कार्यकर्ता में नेतृत्व क्षमता का विकास नहीं किया जाता तब तक ICDS की योजनाओं को प्रभावी तरीके से लाभार्थियों तक नहीं पहुंचाया जा सकता है।


 


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