– विनोद कुमार
पीलिया अपने आप में कोई बीमारी नहीं है, बल्कि यह किसी स्वास्थ्य समस्या का संकेत है। यह एक ऐसी चिकित्सकीय स्थिति है जो नवजात और वयस्क दोनों को प्रभावित करती है। इसमें आंखों, त्वचा और मूत्र में पीलापन आ जाता है। जब इनमें पीलापन नजर आए तब तत्काल जांच कराना और इसके समाधान के लिए उपाय करना जरूरी है। पीलिया के कई कारण हैं। यह लीवर में सूजन अथवा पित्त की नली में रूकावट के कारण हो सकता है। हम जो कुछ भी खाते हैं या पीते हैं वह हमारे उसे हमारे लीवर द्वारा प्रोसेस किया जाता और प्रोसेस किए जाने की इस प्रक्रिया के दौरान शरीर बेकार एवं विषाक्त पदार्थों को बाहर निकाल देता है। लेकिन कभी—कभी दूषित भोजन और पानी के कारण लीवर की कार्यप्रणाली बाधित होती है। इसके कारण रक्त में बिलीरूबिन नामक बेकार पदार्थ बनते हैं और जमा होते रहते हैं। इसके कारण मरीज की आंखों, त्वचा एवं मूत्र में पीलापन आता है और मरीज को कई अन्य समस्याएं हो सकती है। ये समस्याएं हैं —
— पेट में दर्द
— खुजली
— भूख में कमी
— वजन घटना
— पीला मल
— गहरे रंग का मूत्र
— बुखार
— थकान
— उल्टी
पीलिया रक्त में बिलीरुबिन की मात्रा में वृद्धि के कारण होता है। लीवर की कार्यप्रणाली के बाधित होने या उसमें खराबी आने पर शरीर में बिलीरुबिन की बहुत अधिक मात्रा जमा हो सकती है। यह शरीर का एक ऐसा रसायन है जो लीवर में लाल रक्त कोशिकाओं के टूटने के कारण बेकार पदार्थ के तौर पर बनता है। बिलीरुबिन का सामान्य मात्रा में स्राव होने पर समुचित मेटाबोलिज्म में मदद मिलती है लेकिन अगर इसका उत्पादन अधिक हो तो पीलिया हो सकता है।
सामान्य पित्त नली में रुकावट के कारण पीलिया हो सकता है। यदि सामान्य पित्त नली सिकुड़ जाए तोए तो बिलीरुबिन युक्त पित्त को बाहर धकेल दिया जा सकता है जिससे बाद में पीलिया हो सकता है। इस तरह की बाधा आमतौर पर तब होती है जब कोई व्यक्ति पित्त की पथरी, अग्नाशय के कैंसर या अग्नाशय में सूजन से पीड़ित होता है।
शिशुओं में पीलिया होने का कारण शारीरिक प्रणालियों का कमजोर होना या उसका विकसित होना है। कमजोर लीवर के कारण बच्चों में जन्म के तीन से चार दिन बाद पीलिया हो सकता है।
पीलिया के प्रकार
पीलिया के 3 विभिन्न प्रकार हैं। किस तरह का पीलिया है या इस बात पर निर्भर है कि किस जगह बिलीरुबिन की समस्या शुरू हुई।
प्री हेपेटिक जाँडिस — रक्त के लीवर में प्रवेश से पूर्व ही अगर उसमें कोई समस्या हो जाए तो प्री हेपेटिक जाँडिस होता है। अगर रक्त की किसी बीमारी या किसी समस्या के कारण काफी अधिक संख्या में लाल रक्त कोशिकाएं एक बार में ही मर जाती है तब रक्त से जितने बिलीरुबिन को निकाला जाता है उससे अधिक मात्रा में बिलीरुबिन बनता है।
हेप्टोसेलुलर जाँडिस — यह लीवर की एक समस्या के कारण पैदा होती है। अगर लीवर के उत्तक क्षतिग्रस्त हो जाएं और उसके कारण लीवर ठीक से काम नहीं करेगा और लीवर रक्त से बिलीरुबिन को सही तरीके से शरीर से बाहर नहीं निकाल सकेगा।
ऑब्सट्रक्टिव जाँडिस — जब पित्त की नलिकाएं अवरुद्ध या क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, तो ऑब्सट्रक्टिव पीलिया होता है। इसमें पित्त आंत में नहीं जा पाता है।
हेपाटोसेलुलर और ऑब्सट्रक्टिव पीलिया सबसे अधिक कैंसर के मरीजों में होती है।
पीलिया की जांच
डॉक्टर मूत्र एवं रक्त परीक्षण कराने की सलाह देंगे ताकि बिलीरुबिन के स्तर का पता लगाया जा सके और लीवर की सेहत का आकलन किया जा सके। डॉक्टर अल्ट्रासाउंड कराने को भी कह सकते हैं। इससे लीवर या पैंक्रियाज मे किसी बीमारी या अवरोध का पता चल सकेगा। कुछ कुछ मामलों मेंए डॉक्टर लीवर रोग की पुष्टि करने के लिए लीवर की बायोप्सी कराने को कह सकते हैं।
पीलिया का उपचार
उपचार के विकल्प रोग के कारण पर निर्भर करते हैं। उदाहरण के लिए, हेपेटाइटिस ए होने पर आपको ज्यादा से ज्यादा आराम करने, बहुत अधिक तरल पदार्थ पीने और शराब से बचने को कहा जाएगा। अगर आप वैसी दवाइयां ले रहे हैं जिससे लीवर पर प्रभाव पडता है तो आपको उन दवाइयों का सेवन बंद करने को कहा जाएगा। हेपेटाइटिस बी और सी के लिए प्रभावी दवाएं भी उपलब्ध हैं।
अन्य कारणों के लिए, जैसे पित्त की पथरी, पित्त नली में अवरोध होने या अग्नाशय का कैंसर होने पर डॉक्टर सर्जरी का सुझाव दे सकते है।
पीलिया की रोकथाम
पीलिया का संबंध लीवर की कार्यप्रणाली से है। यह महत्वपूर्ण है कि रोगी संतुलित आहार बनाए रखकर, नियमित रूप से व्यायाम करके और अधिक मात्रा में शराब का सेवन नहीं करके लीवर को स्वस्थ बनाए रख सकता है।
पीलिया होने पर क्या करें
आराम करें — इस दौरान, रोगी को बिस्तर पर आराम करने की सलाह दी जाती है। पहले कुछ दिनों के लिए आपको तरल आहार का सेवन करने को कहा जाएगा। आमतौर पर, रोग के विभिन्न लक्षणों का इलाज करने के लिए कुछ दवाइयां दी जाती है लेकिन लीवर ठीक से काम करे इसके लिए जरूरी है कि आप खाने—पीने के मामले में डाक्टर के निर्देश का सख्ती से पालन करें।
भरपूर मात्रा में तरल लें — ज्यादातर बीमारी के समयए रोगी को कुछ भी ठोस चीजें खाने का मन नहीं करता है। ऐसे में, यह सलाह दी जाती है कि वह जितना हो सके उतना तरल का सेवन करें। खूब पानी पियें। यह न केवल आपको हाइड्रेटेड रखता है बल्कि शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में भी मदद करता है। दिन में काफी मात्रा में पानी पियें। साथ ही आप उसमें नींबू या पुदीना भी डाल सकते हैं। दिन भर पानी पीने से आपका इलेक्ट्रोलाइट संतुलन भी बना रहेगा और कमजोरी भी दूर होगी।
फल और सब्जी लें — पीलिया होने पर मरीज को सलाह दी जाती है कि पोषक तत्वों से भरपूर जूस लें। इस तरह की बीमारियों में हमारे पाचन तंत्र को कुछ आराम की आवश्यकता होती है, इसलिए, जटिल खाद्य पदार्थों से बचना फायदेमंद है। संतरे, जामुन, पपीता, सेब जैसे फलों में स्वस्थ पाचन एंजाइम और कुछ महत्वपूर्ण विटामिन जैसे सी, के और बी आदि मौजूद होते हैं। कच्चे केले, ब्रोकोली, गाजर का नियमित रूप से सेवन करने से विष को बाहर निकालने की लीवर की क्षमता बढाने में मदद मिल सकती है।
नारियल पानी — नारियल पानी में भरपूर मात्रा में पोषक तत्व होते हैं जो लिवर के लिए फायदेमंद होते हैं। यह एंटीऑक्सिडेंट का एक अच्छा स्रोत है जो शरीर की प्रणालियों को नुकसान पहुंचाने वाले मुक्त कणों से लड़ने में मदद करता है। यह न केवल आपकी प्रतिरक्षा को बढ़ाता है बल्कि पीलिया को दोबारा होने से भी रोकता है। यह हाइड्रेशन प्रदान करता है और एक उचित तरल संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
उपरोक्त सभी खाद्य पदार्थों को अपने आहार में शामिल करें और किसी भी प्रकार के शराब या जटिल खाद्य पदार्थों जैसे भारी क्रीम दूध या रेड मीट से बचें। पीलिया के दौरान कम—कम अंतराल पर हल्का आहार लेने की सलाह दी जाती है। जल्दी ठीक होने के लिए ढेर सारा पानी पिएं और भरपूर आराम करें।
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