कई दम्पत्तियों को स्वाभाविक रूप से गर्भ धारण करने में मुश्किल आती है। यहां तक कई परीक्षण के रिपोर्ट सामान्य होने के बाद वे स्वाभाविक रूप से गर्भ धारण में असमर्थ रहते हैं। पुरुषों में इनफर्टिलिटी उन प्रमुख कारकों में से एक है जो गर्भ धारण करने की कोशिश करने वाले दम्पत्तियों में अक्सर पायी जाती है। शुक्राणु की गुणवत्ता और उसकी मात्रा गर्भ धारण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और यह पुरुष प्रजनन क्षमता का एक निर्णायक कारक भी है। यदि स्खलित शुक्राणु कम हों या खराब गुणवत्ता के हों तो गर्भ धारण करने की संभावनाएं 10 गुना कम और कभी-कभी इससे भी कम हो जाती है।
मेल फैक्टर इनफर्टिलिटी का क्या कारण है?
मेल फैक्टर इनफर्टिलिटी असामान्य या खराब शुक्राणु के उत्पादन के कारण हो सकती है। पुरुषों में यह संभावना हो सकती है कि उनके शुक्राणु उत्पादन और विकास के साथ कोई समस्या नहीं हो, लेकिन फिर भी शुक्राणु की संरचना और स्खलन की समस्याएं स्वस्थ शुक्राणु को स्खलनशील तरल पदार्थ तक पहुंचने से रोकती हैं और आखिरकार शुक्राणु फैलोपियन ट्यूब तक नहीं पहुंच पाता जहां निषेचन हो सकता है। षुक्राणु की कम संख्या शुक्राणु वितरण की समस्या का सूचक हो सकते हैं।
आम तौर पर पुरुषों में बांझपन के लक्षण प्रमुख नहीं होते हैं और इसके कोई लक्षण नहीं होते हैं और रोगी को शिश्न के खड़ा होने, स्खलन या संभोग में कोई कठिनाई नहीं हो सकती है। यहां तक कि स्खलित वीर्य की गुणवत्ता और इसकी उपस्थिति नग्न आंखों से देखने पर सामान्य लगती है। शुक्राणुओं की गुणवत्ता की जांच केवल इनफर्टिलिटी के संभावित कारण को जानने के लिए किये जाने वाले चिकित्सा परीक्षण के माध्यम से की जा सकती है।
मेल इनफर्टिलिटी के लिए तीन प्राथमिक कारक (अधिक हो सकते हैं) हैं - ओलिगोज़ोस्पर्मिया (शुक्राणुओं की कम संख्या), टेराटोज़ोस्पर्मिया (शुक्राणुओं की असामान्य रूपरेखा) और स्पर्म ट्रांसपोर्ट डिसआर्डर। मेल फैक्टर इनफर्टिलिटी के करीब 20 प्रतिषत मामलों में स्पर्म ट्रांसपोर्ट डिसआर्डर ही जिम्मेदार होते हैं।
स्पर्म ट्रांसपोर्ट डिसआर्डर के कारण ज्यादातर पुरुषों में शुक्राणु के एकाग्रता में कमी आ जाती है और शुक्राणु महिला के पेट तक सुरक्षित रूप से पहुंचने में अक्षम होता है। 2015-2017 के बीच किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, यह देखा गया कि आईवीएफ प्रक्रिया कराने को इच्छुक दम्पत्तियों में, 40 प्रतिशत अंतर्निहित कारण पुरुष साथी में ही थे। प्रत्येक पांच पुरुषों में से एक पुरुष में स्पर्म ट्रांसपोर्ट की समस्या थी। सर्वेक्षण में उन पुरुषों को भी शामिल किया था जिन्होंनेे वेसेक्टॉमी करा ली थी लेकिन अब बच्चे पैदा करना चाहते थे।
शुक्राणु का उत्पादन वृषण में होता है और इसे परिपक्व होने में 72 दिन का समय लगता है। उसके बाद परिपक्व शुक्राणु गतिशीलता प्राप्त करने के लिए वृषण से अधिवृषण (एपिडिडमिस) में चला जाता है और 10 दिनों के बाद यह अगले संभोग में बाहर निकलने के लिए तैयार होता है। लेकिन ट्यूब में कुछ अवरोध होने पर स्खलित वीर्य में शुक्राणुओं की पूरी तरह से कमी हो सकती है।
शुक्राणु की गतिशीलता को क्या प्रभावित करता है?
खराब शुक्राणु निकलने के मूल कारण हैं:
— उल्टा स्खलन (रेट्रोग्रेड इजाकुलेशन) - संभोग के दौरान पुरुष्ज्ञ का मूत्राशय बंद नहीं हो पाता है और जिसके कारण वीर्य लिंग से निकलने के बजाय मूत्राशय में वापस चला जाता है। ऐसा तंत्रिका तंत्र की बीमारी, दवा या पहले की गयी सर्जरी के कारण हो सकता है।
— असफल वैसेक्टाॅमी रिवर्सल - अभी तक करीब 50 प्रतिशत वैसेक्टाॅमी रिसर्वल प्रक्रियाएं असफल रही हैं। वैसेक्टाॅमी रिसर्वल के बाद एंटी-स्पर्म एंटीबॉडी विकसित होती है, जो गर्भ धारण में बाधा पहुंचाती है।
— अवरोध - इस प्रणाली में शुक्राणु उत्पादन, शुक्राणु का निकलना और स्टोरेज डक्ट्स शामिल हैं जो पुरुष वृषण में स्थित होती हैं और शुक्राणु को जमा रखती हैं और मूत्रमार्ग में ले जाती हैं। सर्जरी, संक्रमण और अनुवांशिक बीमारी शुक्राणु की डिलीवरी कोे रोक सकती है। कुछ पुरुषों में जन्म से ही डक्ट्स अवरुद्ध होती है या ट्युब नहीं होती है। इसलिए लिंग के नीचे की ओर मूत्रमार्ग के मुंह से भी खराब शुक्राणु निकल सकते हैं।
— इरेक्टाइल डिसफंक्शन: समयपूर्व स्खलन और इरेक्टाइल डिसफंक्शन जैसी यौन समस्याएं गर्भ धारण करने में बाधा पहुंचा सकती हैं। दम्पत्ति साइकोलाॅजिकल काउंसलिंग के लिए जा सकते हैं और वे उन अंतर्निहित कारणों को हल करने में मदद कर सकते हैं जो इरेक्शन और संभोग को मुश्किल बनाते हैं और रोकते हैं।
स्पर्म ट्रांसपोर्ट डिसआर्डर का वर्गीकरण
शुक्राणु को वृषण से मूत्र मार्ग में ले जाने वाली विभिन्न नलिकाओं में अवरोध स्पर्म की गतिशीलता के लिए समस्या पैदा कर सकता है। शुक्राणु गतिशीलता में उत्पन्न होने वाली समस्याओं की श्रेणियों को जन्मजात विकारों (कंजेनाइटल डिसआर्डर), अधिग्रहीत विकारों (एक्वायर्ड डिसआर्डर) और कार्यात्मक बाधाओं (फंक्शनल आब्सट्रक्शन) की श्रेणियों के तहत वर्गीकृत किया जा सकता है।
— जन्मजात विकार (कंजेनाइटल डिसआर्डर) - यह जन्म से ही होने वाला विकार है जिसमें शुक्राणु नलिकाओं की असामान्य वृद्धि और संकुचन शामिल है और इसमें सेमिनल वेसिकल्स (जो शुक्राणु को स्टोर करता है) अनुपस्थित होता है जो वास डिफरेंस से वीर्य और उसके घटक को मूत्रमार्ग के माध्यम से बाहर निकालता है।
— अर्जित विकार (एक्वायर्ड कंडीषन) - यह प्रजनन प्रणाली की अंतर्निहित बीमारी या संक्रमण के कारण होता है। इसमें शुक्राणु की गतिशीलता नलिकाओं में सूजन के कारण पैदा हुए स्कार के द्वारा प्रभावित हो सकती है जिससे शुक्राणु को निकलने के लिए जगह कम हो जाती है। यदि कोई मरीज हर्निया की मरम्मत जैसी पेट की सर्जरी कराता है, तो यह संभव है कि रोगी की शुक्राणु की गतिशीलता प्रभावित होगी।
— कार्यात्मक बाधा (फंक्शनल आब्सट्रक्शन) - तंत्रिका तंत्र से संबंधित कुछ विकार भी शुक्राणुओं की गतिशीलता को बाधित कर सकते हैं। दुर्घटनाओं या सर्जरी के कारण रीढ़ की हड्डी (मांसपेशियों की गति को प्रभावित करने) को चोट पहुंचने जैसी तंत्रिका की क्षति जैसी स्थितियां भी शुक्राणुओं को परिवहन करने की नलिकाओं की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती हैं। ऐसा पाया गया है कि अवसाद रोधी दवाइयां भी तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती हैं।
सहायक प्रजनन तकनीक किस प्रकार सहायक हो सकती हैं?
इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) और इंट्रासाइटोप्लाजमिक स्पर्म इंजेक्शन (आईसीएसआई) के द्वारा शुक्राणु की पुनः प्राप्ति (स्पर्म रिट्रिवल) के लिए कई तकनीकें मौजूद हैं जिनमें परक्युटेनियस एपिडिडमल स्पर्म एस्पिरेशन, माइक्रोसर्जिकल एपिडिडमल स्पर्म एस्पिरेशन, टेस्टिकुलर स्पर्म एस्पिरेशन, और ओपन टेस्टिकुलर स्पर्म एक्सट्रैक्शन शामिल हैं। उचित रोगी का चयन करने पर सभी तकनीकों के अच्छे नतीजे आते हैं। चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति के साथ ही, आईवीएफ तकनीकें और अधिक परिष्कृत हो गई हैं। सर्जिकल स्पर्म रिट्रिवल का इस्तेमाल अब आईवीएफ और आईवीएफ-आईसीएसआई के दौरान आवश्यक शुक्राणु प्रदान करने के लिए एक तकनीक के रूप में किया जा रहा है।
टेस्टिकुलर स्पर्म रिट्रिवल एस्पिरेशन तकनीकों में सबसे नयी और सबसे विकसित तकनीक है। ये तकनीकें न सिर्फ आईसीएसआई और आईवीएफ के क्षेत्र में क्रांति ला रही हैं, बल्कि इन तकनीक ने यह भी दिखाया है कि अंडे के निषेचन के लिए, शुक्राणु का परिपक्व होना और अधिवृषण के माध्यम से पारित होना अनिवार्य नहीं है। यह तकनीक एपिडिडमिस में अवरोध वाले मरीजों के लिए बेहद फायदेमंद है, अवरोध चाहे वेसेक्टॉमी जैसी पूर्व में की गयी सर्जरी, संक्रमण या किसी भी जन्मजात कारणों से हो।
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