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बच्चे के जन्म पर भी पड़ता है मौसम का प्रभाव

शरद ऋतु में जन्म लेने वाले लोग वसंत ऋतु में जन्म लेने वालों की तुलना में अधिक लंबी जिंदगी जीते हैं और उन्हें बुढ़ापे में लंबी बीमारी होने की संभावना कम होती है।
उत्तरी जर्मन शहर रोसटौक स्थित मैक्स प्लान्क इंस्टीच्यूट फाॅर डर्मोग्राफिक रिसर्च के वैज्ञानिकों ने आस्ट्रिया, डेनमार्क और आस्ट्रेलिया में 10 लाख से अधिक लोगों के जनगणना संबंधी आंकड़ों का अध्ययन करने पर पाया कि किसी भी व्यक्ति के 50 वर्ष से अधिक जीने का संबंध उसके जन्म के महीने पर निर्भर करता है। इन वैज्ञानिकों के अनुसार गर्भावस्था के दौरान मौसम और उस दौरान माता को होने वाले संक्रमणों का भी नवजात शिशु के स्वास्थ्य और उसके जीवनकाल पर प्रभाव रहता है। 
इस अध्ययन में शामिल गैब्रिल डौब्लहैमर के अनुसार वसंत ऋतु में संतान पैदा करने वाली महिला अपने गर्भावस्था का अंतिम चरण जाड़े के मौसम में बिताती है और इस कारण वह गर्मी के मौसम की तुलना में कम विटामिन ले पाती है। जब वह बच्चे को स्तनपान कराना बंद करके सामान्य भोजन देना शुरू करती है तब गर्मी का मौसम होता है और इसलिए उस समय बच्चे को पाचन तंत्रा के संक्रमण एवं रोग होने की अधिक आशंका होती है। दूसरी तरफ शरद ऋतु में जन्म लेने वाले बच्चे वसंत ऋतु में जन्म लेने वाले बच्चों की तुलना में अधिक वजन के होते हैं। जन्म के समय कम वजन होने का संबंध बाद में होने वाले उच्च रक्तचाप, अधिक कोलेस्ट्राल, मोटापा और फेफड़े की क्रियाशीलता में कमी से होता है।
आस्ट्रिया में शरद ऋतु (अक्तूबर-दिसंबर) में जन्म लेने वाले बच्चे वसंत ऋतु (अप्रैल-जून) में जन्म लेने वाले बच्चों की तुलना में सात महीने ज्यादा जीते हैं। डेनमार्क में शरद ऋतु में जन्म लेने वाले बच्चे वसंत ऋतु में जन्म लेने वाले बच्चों की तुलना में चार महीने ज्यादा जीते हैं। दक्षिणी गोलार्द्ध में भी यही स्थिति है। आस्ट्रेलिया में भी शरद ऋतु में जन्म लेने वाले बच्चे वसंत ऋतु में जन्म लेने वाले बच्चों की तुलना में चार महीने अधिक जीते हैं। 
यह अध्ययन 20वीं शताब्दी के आरंभ में जन्म लेने वाले लोगों के जन्म प्रमाण पत्रों और जनगणना आंकड़ों के आधार पर किया गया। डौब्लहैमर का कहना है कि इस अध्ययन के दौरान हालांकि साल के सभी महीनों में पोषण में सुधार किया गया लेकिन इसके बावजूद उन पर जन्म के समय मौसम के प्रभाव का असर रहा।
एक अन्य अध्ययन में डौब्लहैमर ने अमरीका में 1970 और 1980 के दौरान जन्में तीन हजार जुड़वा बच्चों का विश्लेषण करने पर पाया कि वसंत और गर्मी में जन्म लेने वाले बच्चों का वजन शरद ऋतु में जन्म लेने वाले बच्चों की तुलना में कम था।


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