प्रोस्टेट कैंसर पुरुषों को होता है। प्रोस्टेट कैंसर के लक्षणों का पता अगर शुरुआत में ही चल जाए तो इसके इलाज में आसानी होती है। प्रोस्टेट एक ग्रंथि है जो कि पेशाब की नली के ऊपरी भाग के चारों तरफ होती है। यह ग्रंथि अखरोट के आकार जैसी होती है जिसका काम वीर्य में मौजूद एक द्रव पदार्थ का निर्माण करना है। प्रोस्टेट कैंसर 50 साल से अधिक उम्र के पुरूषों में होती है।
प्रोस्टेट कैंसर का खतरा किन पुरुषों को होता है?
55 साल से ज्यादा उम्र के पुरुष
अगर पिता या भाई को प्रोस्टेट कैंसर हुआ हो
अश्वेत पुरुषों को
मटन, घी या दूध का बहुत ज्यादा सेवन करने वाले पुरुषों को
प्रोस्टेट कैंसर के लक्षण
प्रोस्टेट कैंसर होने पर रात में पेशाब करने में दिक्कत होती है। रात में बार-बार पेशाब आता है और आदमी सामान्य अवस्था की तुलना में ज्यादा पेशाब करता है। उसे पेशाब करने में कठिनाई होती है और वह पेशाब को रोक नही सकता है। पेशाब रोकने में उसे बहुत तकलीफ होती है। पेशाब रुक-रुक कर आता है, जिसे कमजोर या टूटती मूत्रधारा कहते हैं। पेशाब करते वक्त पेशाब में रक्त निकलता है। वीर्य में भी रक्त निकलने की शिकायत होती है। शरीर में लगातार दर्द बना रहता है। कमर के निचले हिस्से या कूल्हे या जांघों के ऊपरी हिस्से में भी जकड़न भी रहती है।
प्रोस्टेट कैंसर के कारण
प्रोस्टेट होने के असली कारणों का पता अभी तक नहीं चल पाया है लेकिन कुछ कारण हैं जो इस कैंसर के के लिए जोखिम कारक हैं। धूम्रपान, मोटापा, सेक्स के दौरान वायरस का संक्रमण या फिर शारीरिक शिथिलता यानी की व्यायाम न करना प्रोस्टेट कैंसर का कारण हो सकता है। कभी-कभी असुरक्षित तरीके से पुरूषों की नसबंदी भी प्रोस्टेट कैंसर का कारण बनता है। यदि परिवार में किसी को पहले भी प्रोस्टेट कैंसर हुआ है तो भी इस कैंसर के होने का जोखिम बना रहता है। ज्यादा वसायुक्त मांस खाना भी प्रोस्टेट कैंसर का कारण बन सकता है। जिन पुरूषों की प्रजनन क्षमता कम होती है उनको भी प्रोस्टेट कैंसर होने का खतरा होता है। लिंग गुणसूत्रों में गडबडी के कारण भी प्रोस्टेट कैंसर हो सकता है।
जांच
इसका पता लगाने के लिए व्यक्ति को रक्त की जांच व यूरीनरी सिस्टम का अल्ट्रासाउंड करवाना चाहिए। यदि इन जांचों में कोई कमी पायी जाती है, तो यूरोलॉजिस्ट से संपर्क करें। प्रोस्टेट कैंसर की जांच के लिए डॉक्टर प्रोस्टेट स्पेसिफिक एंटीजन (पीएसए) का टेस्ट करवा सकते हैं। यह शरीर का एक रसायन होता है, जिसका स्तर ज्यादा हो तो प्रोस्टेट कैंसर की संभावना ज्यादा होती है।
इलाज
वृद्धावस्था में प्रोस्टेट कैंसर होने की ज्यादा संभावना होती है। यदि प्रोस्टेट कैंसर का पता स्टेज-1 और स्टेज-2 में चल जाए तो इसका बेहतर इलाज रैडिकल प्रोस्टेक्टमी नामक ऑपरेशन से होता है। लेकिन, यदि प्रोस्टेट कैंसर का पता स्टेज-3 व स्टेज-4 में चलता है तो इसका उपचार हार्मोनल थेरेपी से किया जाता है। गौरतलब है कि प्रोस्टेट कैंसर की कोशिकाओं को टेस्टोस्टेरान नामक हार्मोन से खुराक मिलती है। इसलिए पीड़ित पुरुष के टेस्टिकल्स को निकाल देने से इस कैंसर को नियंत्रित किया जा सकता है।
बचाव
खान-पान और दिनचर्या में बदलाव करके प्रोस्टेट कैंसर की संभावना को कम किया जा सकता है। ज्यादा चर्बी वाले मांस को खाने से परहेज करें। धूम्रपान और तंबाकू का सेवन करने से बचें। यदि आपको प्रोस्टेट कैंसर की आशंका दिखे तो चिकित्सक से संपर्क जरूर करें।
प्रोस्टेट कैंसर से बचने के लिए सही जीवन शैली अपनाएं
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जब बढ़ने लगे प्रोस्टेट ग्रंथि
प्रजनन, यौन क्रिया और मूत्र त्याग में मुख्य भूमिका निभाने वाली प्रोस्टेट ग्रंथि के आकार में उम्र बढने के साथ सामान्य तौर पर वृद्धि होती है लेकिन यह वृद्धि मूत्र त्याग में कठिनाई समेत अनेक समस्याओं का कारण बन जाती है। इसका आरंभिक अवस्था में इलाज नहीं होने पर गुर्दे में खराबी आ सकती है। चिकित्सकीय भाषा में इस स्थिति को बिनायन प्रोस्टेटिक हाइपरलैसिया अथवा बिनायन प्रोस्टेटिक हाइपरट्रोफी (बी. पी. एच.) कहा जाता है।
किसी व्यक्ति के जीवनकाल में प्रोस्टेट ग्रंथि विकास के दो चरणों से गुजरती है। इसके विकास का पहला चरण किशोरावस्था के आरंभ में होता है। इस दौरान इस ग्रंथि का आकार दोगुना हो जाता है। करीब 25 वर्ष की उम्र से प्रोस्टेट ग्रंथि दोबारा बढ़ने लगती है। दूसरे दौर का यही विकास बाद में बिनायन प्रोस्टेटिक हाइपरट्रोफी (बी.पी.एच.) का कारण बन जाता है। आम तौर पर 45 वर्ष की उम्र से पहले बिनायन प्रोस्टेटिक हाइपरट्रोफी (बी.पी.एच.) के कोई लक्षण नहीं प्रकट होते हैं। लेकिन 60 साल की उम्र के 50 प्रतिशत से अधिक लोगों को तथा 70 एवं 80 साल के 90 प्रतिशत से अधिक लोगों को बिनायन प्रोस्टेटिक हाइपरट्रोफी (बी.पी.एच.) के कोई न कोई लक्षण प्रकट होते हैं।
प्रोस्टेट ग्रंथि के आकार में बढ़ोतरी होने पर इसके चारों ओर के ऊतकों की परत इसे फैलने से रोकती है। इससे प्रोस्टेट ग्रंथि का मूत्रमार्ग (यूरेथ्रा) पर दबाव पड़ता है।
अनेक लोग प्रोस्टेट की समस्याओं को छिपाते हैं। लेकिन यह समस्या उम्र के साथ सिर के बालों के सफेद होने की तरह सामान्य एवं स्वभाविक है। इसलिये प्रोस्टेट ग्रंथि की समस्याओं को छिपाने के बजाय इसका जल्द से जल्द इलाज कराना चाहिये।
पुरुषों के शरीर में ताउम्र नर हार्मोन टेस्टोस्टेरोन और कुछ मात्रा में मादा हार्मोन बनते हैं। उम्र बढ़ने के साथ रक्त में टेस्टोस्टेरोन हार्मोन का स्तर घटने लगता है और इस्ट्रोजेन हार्मोन का अधिक निर्माण होता है। प्रोस्टेट ग्रंथि में इस्ट्रोजेन की अधिक मात्रा हो जाने के कारण बी.पी.एच. की उत्पत्ति होती है इससे कोशिकाओं का विकास करने वाले पदार्थों की गतिविधियां बढ़ जाती है।
इसके अलावा प्रोस्टेट ग्रंथि में टेस्टोस्टेरोन से डिहाइड्रोट्स टेस्टेरोन (डी.टी.एच.) नामक पदार्थ निकलता है जो प्रोस्टेट ग्रंथि के आकार में वृद्धि पर नियंत्रण लगाने में मदद करता है। ज्यादातर जीव उम्र बढ़ने के साथ डी.टी.एच. के उत्पादन की क्षमता खोते हैं। हालांकि रक्त में टेस्टोस्टेरोन के स्तर में गिरावट के बावजूद बुजुर्ग लोग प्रोस्टेट ग्रंथि में डी.एच.टी. की अधिक मात्रा संग्रहित करने में सक्षम होते हैं। जिन लोगों के शरीर में डी.एच.टी. का निर्माण नहीं होता है उन्हें बी.पी.एच. की समस्या नहीं होती है।
मूत्रमार्ग में रूकावट की तीव्रता अथवा लक्षण प्रोस्टेट ग्रंथि के आकार पर निर्भर नहीं करते हैं। जिन लोगों की प्रोस्टेट ग्रंथि काफी बड़ी होती है उन्हें कम दिक्क्त होती है जबकि कुछ लोगों को प्रोस्टेट ग्रंथि में कम वृद्धि होने के बावजूद अधिक दिक्कत होती है। कुछ लोगों को इस समस्या का आभास अचानक उस समय होता है जब वे मूत्रत्याग करने में पूरी तरह असमर्थ हो जाते हैं। यह स्थिति एलर्जी अथवा ठंड से बचाव की दवाई लेने पर और तीव्र हो जाती है।
इस समस्या की जांच के लिये डिजिटल रेक्टल परीक्षण किया जाता है। इससे चिकित्सक को प्रोस्टेट ग्रंथि के आकार की सामान्य जानकारी मिल जाती है। इसकी अधिक पुष्टि के लिये प्रोस्टेट स्पेसिफिक एंटीजन रक्त परीक्षण किया जाता है। इस परीक्षण से इस बात का भी पता चल जाता है कि मरीज की प्रोस्टेट ग्रंथि में कैंसर है या नहीं।
प्रोस्टेट ग्रंथि में वृद्धि के कारण मरीज पूरा मूत्र नहीं निकाल पाता और मसाने में कुछ मूत्र रह जाता है जिसके शीघ्र संक्रमित हो जाने का खतरा रहता है। मसाने में बचे मूत्र के संक्रमित हो जाने का असर गुर्दे पर पड़ता हैं ऐसी अवस्था में मरीज का आपरेशन के जरिये जल्द से जल्द इलाज किया जाना आवश्यक होता है। मसाने में बचे मूत्र का गुर्दे पर दबाव पड़ता है जिससे गुर्दे फूलने लगते हैं और इलाज नहीं होने पर कुछ समय बाद गुर्दे काम करना बंद कर सकते हैं।
एक समय प्रोस्टेट ग्रंथि की इस समस्या को दूर करने के लिये आपरेशन का सहारा लेना पड़ता था जिसमें काफी चीर-फाड़ करनी पड़ती थी। लेकिन पिछले 25 वर्षों के बाद में टीयूआर-पी (ट्रांस यूरेथ्रल रिसेक्शन आफ प्रोस्टेट) नामक तकनीक की मदद से यह आपरेशन होने लगा जिसमें मूत्र नली के जरिये औजार डालकर बिजली की मदद से प्रोस्टेट ग्रंथि को काट कर बाहर निकाल दिया जाता है। इसके अलावा आजकल ट्रांस यूरेथ्रल इंसिजन आफ द प्रोस्टेट (टी.यू.आई.पी.) नामक सर्जरी का भी इस्तेमाल होता है लेकिन ये दोनों तकनीकें भी दुष्प्रभावों से युक्त है और इनकी अनेक सीमायें हैं।
आजकल मरीज को लेजर आधारित तकनीक की मदद से प्रोस्टेट की समस्या से छुटकारा दिलाना संभव हो गया है। इस तकनीक में होलमियम लेजर का इस्तेमाल होता है। इस तकनीक में होलमियम लेजर की मदद से प्रोस्टेट ग्रंथि की सभी अवरोधक ऊतकों को वाष्पित कर दिया जाता है जिससे मूत्र नली की रुकावट दूर हो जाती है। लेजर मशीन से आपरेशन करने पर रक्त की हानि नहीं के बराबर होती है, रोगी को बहुत कम कष्ट होता है और उसे एक या दो दिन अस्पताल में रहने की जरुरत पड़ती है। लेजर आपरेशन के तत्काल बाद मरीज सामान्य काम-काज करने में सक्षम हो जाता है। यह तकनीक गंभीर मरीजों के अनूकूल है।
लेजर तकनीक का इस्तेमाल प्रोस्टेट ग्रंथि में वृद्धि के अलावा मूत्र थैली के कैंसर, मूत्र नली के सिकुड़ने, बाहरी जननांगों की रसौली एवं पथरी जैसी समस्याओं के इलाज के अलावा खतना (सरकमसिशन) के लिये भी हो सकता है। प्रोस्टेट ग्रंथि की समस्याओं के इलाज के लिये लेजर तकनीक के अलावा रेडियो तरंगों का भी इस्तेमाल होने लगा है। आजकल इन समस्याओं के इलाज के लिये रोटो रिसेक्शन नामक अत्याधुनिक तकनीक का विकास हुआ है।
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एक्यूट प्रोस्टेटाइटिस का क्या है इलाज और बचाव
प्रोस्टेट ग्रंथि में होने वाले संक्रमण अथवा सूजन को प्रोस्टेटाइटिस कहा जाता है। जब यह प्रोस्टेटाइटिस किसी बैक्टीरिया के कारण होता है तो उसे बैक्टीरियल प्रोस्टेटाइटिस कहते हैं। एक्यूट प्रोस्टेटाइटिस एक ऐसी बीमारी है, जो कम समय में ही अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर देती है। क्रॉनिक बैक्टीरियल प्रोस्टेटाइटिस एक ऐसा रोग है, जो तीन महीने या उससे भी अधिक समय तक रह सकता है।
एक्यूट प्रोस्टेटाइटिस पुरुषों में होने वाला रोग है, जिसमें प्रोस्टेट में अचानक काफी सूजन हो जाती है। प्रोस्टेट ग्रंथि शरीर में ब्लैडर के सामने अखरोट के आकार का एक हिस्सा होता है। यह मलाशय के सामने स्थित होता है। पुरुष वीर्य के स्खलन में 70 प्रतिशत द्रव प्रोस्टेट ही प्रदान करता है। स्खलन के समय प्रोस्टेट में होने वाला संकुचन वीर्य को वापस ब्लैडर में जाने से रोकता है। एक्यूट प्रोस्टेटाइटिस आम तौर पर उसी बैक्टीरिया के कारण होता है, जो मूत्र मार्ग में संक्रमण और यौन संचारित रोगों में पाया जाता है। बैक्टीरिया प्रोस्टेट में रक्त के माध्यम से पहुंच सकता है। इसके साथ बायोप्सी के कारण भी यह मानव शरीर में प्रवेश कर सकता है। यह बैक्टीरिया पुरुषों के शरीर के अन्य हिस्सों, जैसे जननमूत्रीय ग्रथि (जेनाइटोयूरिनरी ट्रैक्ट) को भी प्रभावित कर सकता है।
मूत्र ग्रंथि संबंधी कोई भी बैक्टीरियल संक्रमण (यूटीआई) के कारण प्रोस्टेट ग्रंथि में सूजन आ सकती है। यौन संचारित रोग जैसे क्लेमाइडिया और गोनोरेहा भी एक्यूट बैक्टीरियल प्रोस्टेटाइटिस का कारण बन सकता है।
इसके अलावा अन्य कारण जो प्रोस्टेट बैक्टीरियल प्रोस्टेटाइटिस का कारण बन सकते हैं -
उपकोश यानी एपिडिडायमिस में सूजन। यह वह नलिका होती है जो अंडकोशों को वास डेफरंस से जोड़ती है।
मूत्रमार्गशोथ यानी मूत्रमार्ग में किसी कारण से सूजन आ जाना
गुदा और अंडकोष के बीच का हिस्से में चोट लगना
एक्यूट प्रोस्टेटाइटिस के लक्षण
— ठंड लगना
— बुखार
— तेज दर्द
— पेशाब में खून आना
— बार-बार पेशाब आना
— मूत्र में अत्यधिक दुर्गंध आना
— मूत्र धारा में कमी आना
— मूत्राशय खाली करने में कठिनाई
— पेशाब करना शुरू करने में कठिनाई होना
— स्खलन के दौरान दर्द
— वीर्य में रक्त का आना
— गुप्तांग, मलाशय, या अंडकोष में दर्द
इसके अलावा अन्य लक्षण हैं -
— पीठ के निचले हिस्से, जननांगों और गुदा के बीच क्षेत्र में, या अंडकोष में जांघ की हड्डी से ऊपर पेट में दर्द या खुजली।
— वीर्य स्खलन के दौरान दर्द होना अथवा वीर्य के साथ रक्त आना।
— मल त्याग के दौरान तेज दर्द होना
अगर प्रोस्टेटाइटिस के कारण होना वाला संक्रमण अंडकोष में अथवा उसके आसपास हो चुका है, तो आपको और अधिक परेशानी हो सकती है।
इस बीमारी के लंबे समय तक रहने पर मूत्राशय कैंसर होने की आशंका होती है। इसके साथ ही क्रॉनिक मूत्राशय रोग, मूत्रमार्ग में बाधा, बार-बार पथरी होना, रिफ्लक्स नेफ्रोपैथी और मूत्र मार्ग के संक्रमण की शिकायत भी हो सकती है।
प्रोस्टेट समस्याओं का इलाज
जब प्रोस्टेट में परेशानी में पुरुषों में सामान्य तौर पर दो रोग देखे जाते हैं। इनमें से पहला, प्रोस्टेटिक हाईपेथ्रोफी (बीपीएच) होता है और दूसरा प्रोस्टेट कैंसर हो सकता है। पहले प्रकार की बीमारी में प्रोस्टेट का आकार सामान्य से बड़ा हो जाता है, जिस कारण मूत्रमार्ग संकरा हो जाता है। और व्यक्ति को पेशाब करने में परेशानी ओर दर्द हो सकता है। वहीं दूसरी प्रकार की बीमारी यानी प्रोस्टेट कैसर में प्रोस्टेट ग्रंथि कैंसर ग्रस्त हो जाती है और अगर सही समय पर इसका इलाज न किया जाए, तो यह आसपास के अंगों को भी अपनी चपेट में ले लेती है।
प्रोस्टेट ग्रंथि में असामान्य बढ़ोत्तरी होने पर डॉक्टर 5-एआरआई (5 अल्फा-रेड्यूक्टेस इनहिबिटर्स) दवायें दे सकता है। ऐसा माना जाता है कि प्रोस्टेट ग्रंथि टेस्टोस्टेरोन में डिहाइड्रोटेस्टोस्टेरोन (डीएचटी) का स्राव करती है। यही स्राव प्रोस्टेट ग्रंथि के अधिक आकार का कारण होता है। 5-एआरआई दवायें प्रोस्टेट में डीएचटी का स्तर कम कर देती हैं, जिससे उनका आकार और बढ़ने से रुक जाता है।
दूसरी तरह की दवाओं में पुरुषों में पेशाब के समय होने वाले दर्द को कम करने के लिए अल्फा ब्लॉक्र्स दिये जाते हैं। ये दवायें यूरिनेरी ब्लैडर की मांसपेशियों को आराम पहुंचाती हैं, जिससे मूत्र, यूरिनेरी ब्लैडर से होता हुआ मूत्रमार्ग में आसानी से प्रवाहित हो जाता है। ये दवायें प्रोस्टेट के आकार में कोई परिवर्तन नहीं करतीं, बल्कि मूत्र में होने वाले दर्द को कम करने में मदद करती है।
सुरक्षित सर्जरी के लिए रोगी को बीपीएच के लक्षणों को कम करने की जरूरत होती है। कुछ गंभीर मामलों में प्रोस्टेट को निकालने की जरूरत पड़ सकती है। और वहीं कुछ अन्य मामलों में लिम्फ नोड्स को भी पूरा बाहर निकालना पड़ता है। इसके संभावित दुष्परिणामों में रक्त स्राव, संक्रमण, मूत्र-असंयम और नपुंसकता आदि शामिल हैं। सर्जरी की नयी रोबोटिक तकनीक द्वारा छोटे से चीरे से ही इलाज किया जा सकता है। कैंसर को उसकी शुरुआती अवस्यथा में क्रायोसर्जरी के जरिये ठीक किया जा सकता है। इसमें कैंसर कोशिकाओं को फ्रीज और विघटन के जरिये नष्ट कर दिया जाता है। इसके साथ ही कैंसर के लिए हार्मोन और रेडिएशन ट्रीटमेंट की भी जरूरत पड़ सकती है।
प्रोस्टेट ग्रंथि की लेजर आधारित रक्त विहीन चिकित्सा
हमारे देश में पुरुषों में प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ जाने की समस्या बहुत ही व्यापक है। भारत में तकरीबन 20 से 30 प्रतिशत लोग प्रोस्टेट की इस बीमारी से ग्रस्त हैं। इनमें से करीब 50से 60 प्रतिशत लोगों को आपरेशन कराने की जरुरत पड़ती है। आम तौर पर यह समस्या 40-50 साल की उम्र के बाद ही आरंभ होती है। 60 साल की उम्र वाले करीब 60 प्रतिशत लोग इस समस्या से ग्रस्त रहते हैं। लेकिन सभी लोगों में प्रोस्टेट की समस्या गंभीर रूप धारण नहीं करती है इसलिये सभी को आपरेशन की जरूरत नहीं पड़ती है।
मूत्र त्यागने में तकलीफ, बार-बार मूत्र आने, मूत्र की धार ठीक नहीं बनने, रात को मूत्र त्यागने के लिये कई बार उठने, मूत्र त्यागने के बाद भी मसाना खाली होने की तसल्ली नहीं होने जैसे लक्षण प्रोस्टेट ग्रंथि में वृद्धि (प्रोस्टेट इनलार्जमेंट) के संकेत हैं। गंभीर अवस्था में मूत्र के साथ खून भी आ सकते हैं। प्रोस्टेट ग्रंथि में वृद्धि मूत्र नली में रुकावट पैदा करता है जिससे मूत्र त्यागने में दिक्कत होती है और कई बार मूत्र आना ही बंद हो जाता है।
प्रोस्टेट की बीमारी उम्रदराज पुरुषों की आम समस्या है। प्रोस्टेट ग्रंथि में वृद्धि के कई कारण हंै। इसका मूल कारण संभवतः एंड्रोजेन्स के उत्पादन एवं उनकी गतिविधियां बदलना है। इस रोग के आरंभ में या तो कोई लक्षण नहीं प्रकट होते या मरीज को बहुत मामूली दिक्कत महसूस होती है। लेकिन जब यह गं्रथि इतनी बढ़ जाये कि यह मूत्र के बहाव में रूकावट डालने लगे तथा मूत्र नली पर दबाव पैदा करने लगे तब मरीज की तकलीफ बढ़नी शुरू हो जाती है।
प्रोस्टेट ग्रंथि में वृद्धि के कारण मरीज पूरा मूत्र नहीं निकाल पाता और मसाने में कुछ मूत्र रह जाता है जिसके शीघ्र संक्रमित हो जाने का खतरा रहता है। मसाने में बचे मूत्र के संक्रमित हो जाने का असर गुर्दे पर पड़ता हैं ऐसी अवस्था में मरीज का आपरेशन के जरिये जल्द से जल्द इलाज किया जाना आवश्यक है। मसाने में बचे मूत्र का गुर्दे पर दबाव पड़ता है जिससे गुर्दे फूलने लगते हैं और इलाज नहीं होने पर कुछ समय बाद गुर्दे काम करना बंद कर सकते हैं।
प्रोस्टेट ग्रंथि मुत्राशय के नीचे मूत्रनली के साथ स्थित होती है। यह अखरोट के आकार की होती है। इसका काम संभोग के समय शुकाणुओं की वृद्धि और पोषण के लिये वीर्य में लसलसा तरल पदार्थ प्रदान करना है। युवावस्था के आरंभ में यह छोटे आकार की होती है लेकिन उम्र बढ़ने के साथ इसका आकार भी बढ़ता जाता है। 50 की उम्र पार करने के बाद ज्यादातर पुरुषों को कभी न कभी किसी न किसी रूप में प्रोस्टेट की समस्या का सामना करना पड़ सकता हैै।
एक समय प्रोस्टेट ग्रंथि की इस समस्या को दूर करने के लिये आपरेशन का सहारा लेना पड़ता था जिसमें काफी चीर-फाड़ करनी पड़ती थी। लेकिन पिछले 25 वर्षों के बाद में टीयूआर-पी (ट्रांस यूरेथरल रिसेक्शन आॅफ प्रोस्टेट) नामक तकनीक की मदद से यह आपरेशन होने लगा जिसमें मूत्र नली के जरिये औजार डालकर बिजली की मदद से प्रोस्टेट ग्रंथि को काट कर बाहर निकाल दिया जाता है। लेकिन इस पद्धति के इस्तेमाल के कारण भी बीमारी की जटिलता (20 प्रतिशत) एवं मौत (एक या दो प्रतिशत) मंे कमी नहीं आयी। टीयूआर-पी आपरेशन करने पर रक्तस्राव अधिक होता है जिसके कारण आपरेशन के बाद करीब 15—20 प्रतिशत मरीजों को एक या दो यूनिट रक्त चढ़ाने की जरूरत पड़ जाती है। इस तकनीक से रक्त की हानि अधिक होने से गंभीर तौर पर बीमार एवं कमजोर मरीजों का आपरेशन करना खतरे से खाली नहीं होता है। इसलिये इस तकनीक से ऐसे रोगियों का आपरेशन करना मुश्किल होता है। इसके अलावा करीब 80 प्रतिशत मरीजों को बाद में मूत्र पर नियंत्रण रख पाने में दिक्कत हो जाती है। आपरेशन के बाद मरीज को ज्यादा दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ता है। इन दुष्प्रभावों एवं दिक्कतों के मद्देनजर कारगर, कष्ट एवं दुष्प्रभाव रहित तथा सुरक्षित तकनीक की खोज के प्रयास के तहत लेजर आधारित तकनीक का विकास हुआ। इस तकनीक में एन डी याॅग लेजर का इस्तेमाल होता है। इस तकनीक में लेजर ऊर्जा की मदद से प्रोस्टेट ग्रंथि की सभी अवरोधक ऊतकों को वाष्पित कर दिया जाता है जिससे मूत्र नली की रुकावट दूर हो जाती है।
लेजर मशीन से आपरेशन करने पर रक्त की हानि नहीं के बराबर होती है, रोगी को बहुत कम कष्ट होता है, उसे एक या दो दिन अस्पताल में रहने की जरुरत पड़ती है और वह शीघ्र घर जा सकता है। लेजर आपरेशन के तत्काल बाद मरीज सामान्य काम-काज करने में सक्षम हो जाता है। यह तकनीक गंभीर मरीजों के अनूकूल है।
लेजर तकनीक से आपरेशन के कुछ फायदे बाद में भी नजर आते हैं। लेजर ऊर्जा के प्रभाव से नष्ट होने वाली कोशिकायें धीरे-धीरे पृथक हो जाती हैं तथा मूत्र नली का रास्ता और प्रशस्त हो जाता है।
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