भारत में बुजुर्गों की बढ़ती आबादी, महामारी विज्ञान संक्रमण और प्रौद्योगिकी के उपयोग तीन ऐसी परिघटनाएं हैं जो भारत में स्वास्थ्य की स्थिति पर बहुत अधिक प्रभाव डालने वाली हंै लेकिन आज हमारा देश इन चुनौतियों का सामना करने के लिए पर्याप्त साधनों से लैस नहीं है।
आईआईएचएमआर विश्वविद्यालय के अध्यक्ष डाॅ. एस. डी. गुप्ता ने ने कहा, ''“भारत के सामने स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों का आयाम बहुत अधिक है। हालांकि भारत को जनसांख्यिकीय लाभांश 2060 तक मिलता रहेगा, लेकिन हमारे देश में बुजुर्गों की आबादी का भी विस्तार हो रहा है जिसके कारण जनसांख्यिकीय संक्रमण हो रहा है। आज, भारत की आबादी का 9 प्रतिशत हिस्सा 60 वर्ष से अधिक उम्र के बुजुर्गों का है। पिछली जनगणना में यह आंकड़ा 6 प्रतिशत था। कुछ वर्षों में इस आंकडे के 11 प्रतिषत तक पहुंच जाने की संभावना है और इस तरह से भारत में बुर्जुगों की संख्या 120 मिलियन हो जाएगी। यह बहुत बड़ी संख्या है, और नियमित निगरानी, रोग प्रबंधन तथा दवाइयों आदि के संदर्भ में इन बुजृर्गों की दीर्घकालिक स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों पर ध्यान देने की जरूरत होगी।''
उन्होंने कहा, ''भारतीय स्वास्थ्य सेवा पर प्रभाव डालने वाली दूसरी परिघटना महामारी विज्ञान संबंधी संक्रमण है। भारत के समक्ष जो रोग प्रोफाइल है वह 1980 की तुलना में 2020 में पूरी तरह से उलट है। चालीस साल पहले, भारत में कुल रोगों में से 75 प्रतिषत संचारी रोग थे जबकि षेश क्रोनिक एवं गैर संचारी रोग (एनसीडी) थे लेकिन आज कुल रोगों में से गैर संचारी रोगों को हिस्सा 65 प्रतिषत है और अगले पाँच वर्षों से भी कम समय में यह आंकड़ा बढ़कर 70 प्रतिशत होने वाला है। गैर संचारी रोगों के प्रबंधन के लिए दीर्घकालिक रोग एवं उपचार प्रबंधन की जरूरत पड़ती है साथ ही साथ स्वास्थ्य प्रदाताओं के साथ मरीजों के बीच अधिक से अधिक अंतर संबंध जरूरी है। भारत को गैर संचारी रोगों के बढ़ते बोझ तथा स्वास्थ्य सेवा की आपूर्ति की इस अनूठी जरूरत की चुनौती का सामना करना होगा।''
डाॅ. एस. डी. गुप्ता ने कहा, ''पिछले कुछ दशकों में, प्रौद्योगिकी एक बड़े पैमाने पर उभरी है। इसका प्रभाव केवल उपकरणों और चिकित्सा उपकरणों तक ही सीमित नहीं रहा है। स्वास्थ्य सेवा की पहुंच के साधन भी बदल गए हैं। मोबाइल टेक्नोलॉजी या ई-हेल्थ आज के समय के मुख्य पहलू हैं। एक क्षेत्र जिसमें प्रौद्योगिकी का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जा सकता है, वह है ग्रामीण क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच और उपलब्धता में सुधार। हमारे पास इस क्षेत्र में पहले से ही एक परियोजना चल रही है जिसे अपग्रेड किया जा सकता है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि 15 प्रतिषत भारतीय - लगभग 200 मिलियन लोग - किसी न किसी रूप में मानसिक बीमारी से पीड़ित हैं, और उनमें से कई ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं।”
यहां एकत्र छात्रों को संबोधित करते हुए, आईआईएचएमआर विश्वविद्यालय, जयपुर के अध्यक्ष डॉ. पंकज गुप्ता ने कहा, “स्वास्थ्य सेवा के छात्रों के लिए न केवल वर्तमान सर्वोत्तम तकनीकों, बल्कि आने वाली तकनीकों के बारे में भी ज्ञान प्राप्त करना महत्वपूर्ण है। लेकिन सिर्फ ज्ञान प्राप्त कर लेना ही काफी नहीं है। इसे अच्छी तरह से इस्तेमाल किया जाना चाहिए, विवेक पूर्वक इस्तेमाल किया जाना चाहिए, व्यवहार में लागू किया जाना चाहिए। ज्ञान से किसी व्यक्ति में बदलाव होना चाहिए। आज के स्वास्थ्य सेवा के छात्रों के लिए तीन महत्वपूर्ण मंत्र हैं, संपर्क (कनेक्शन), सेवा (निस्वार्थ सेवा) और संबंध (विश्वास और सहयोग)।
प्रदन्या 2019 के पूर्व सम्मेलन के कार्यक्रमों के दौरान स्वास्थ्य सेवा के विभिन्न पहलुओं पर कई तकनीकी सत्र भी आयोजित हुए। पारस हॉस्पिटल्स ग्रुप के निदेशक, डॉ. कपिल गर्ग ने भारत में अस्पताल क्षेत्र में विकास वाहक के रूप में निजी इक्विटी पर आयोजित सत्र को संबोधित करते हुए कहा, “पिछले 20 वर्षों में, निजी क्षेत्र ने तृतीयक देखभाल के क्षेत्र में काफी बड़े पैमाने पर प्रवेष किया है। इसके लिए बड़े बुनियादी ढांचे, प्रौद्योगिकी और रियल एस्टेट की आवश्यकता होती है, जिसके लिए निवेश की आवश्यकता होती है। यह वह जगह है जहां निजी इक्विटी देश के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के लिए विकास के चालक साबित हुई है। वर्ष 2000 के बाद से, 6 बिलियन अमरीकी डालर से अधिक निजी इक्विटी के रूप में भारतीय अस्पतालों के क्षेत्र में आ गए हैं। आज, भारत में कम से कम 800 से 1,000 बेड वाले कॉर्पोरेट अस्पतालों की 25 से अधिक श्रृंखलाएँ हैं। हालांकि, निवेशकों को अब भी जागरूक होने की जरूरत है क्योंकि यह क्षेत्र समेकन की ओर बढ़ रहा है और स्वास्थ्य सेवा के निजी प्रदाताओं पर सरकारी नियम कड़े हो रहे हैं।”
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