सीने में जलन और आंखों में तूफान लिये आज हर दूसरा तीसरा आदमी मिल जायेगा, लेकिन हममें से बहुत कम लोगों ने चेहरे में भयानक जलन की असहनीय पीड़ा झेली है। चिकित्सा विज्ञान में इसे ट्राइजेमिनल न्यूरेल्जिया कहा जाता है।
ट्राइजेमिनल न्यूरेल्जिया अत्यंत तकलीफदेह बीमारी है जिसमें मरीज के चेहरे में भयानक जलन एवं भीषण पीड़ा होती है। कई बार यह पीड़ा एवं जलन इतनी अधिक बढ़ जाती है कि मरीज हंस या मुस्कुरा भी नहीं सकता। यहां तक कि हवा का झोंका लगने पर भी असहनीय जलन एवं पीड़ा होती है। खाना खाने या चबाने पर यह पीड़ा एवं जलन काफी अधिक हो जाती है। कई मामलों में मरीज चेहरे व दांत के दर्द के कारण दांत वाले डाॅक्टर के पास जाकर अपने सारे दांत निकलवा चुका होता है लेकिन यह बीमारी ठीक नहीं होती, क्योंकि यह बीमारी दिमाग की नस के कारण होती है।
इस बीमारी की शुरुआत खुद ब खुद होती है और आरंभ से ही मरीज को काफी तेज दर्द होता है। इसमें दर्द से ज्यादा जलन होती है। ऐसा लगता कि एक तरफ का चेहरा जल रहा है मानो किसी ने बिजली के करंट के झटके चेहरे पर लगा दिये हों।
यह बिना किसी कारण के होता है। पीड़ा एवं जलन का यह दौर आधे से 60 मिनट से अधिक नहीं रहता है लेकिन यह दौर इतना अधिक असहनीय होता है कि मरीज के लिये इसे बर्दाश्त करना मुश्किल होता है।
इस बीमारी में जलन एवं पीड़ा चेहरे के किसी एक हिस्से में होती है- या तो दायें या बायें हिस्से में। इसमें ज्यादातर मामलों में एक तरफ आंख एवं गाल में पीड़ा एवं जलन होती है। कई मामलों में यह बीमारी ट्यूमर के कारण होती है। हालांकि आम तौर पर यह ऐसे ट्यूमर के कारण होती है जो कैंसरजन्य नहीं होता है। इस कारण ट्यूमर को निकाल देने पर ट्राइजेमिनल न्यूरेल्जिया ठीक हो जाती है। एक अनुमान के अनुसार ट्राइजेमिनल न्यूरेल्जिया के तकरीबन पांच से आठ प्रतिशत मामलों में ट्यूमर पाये जाते हैं। लेकिन कई मामलों मंे ट्यूमर अथवा नस पर दबाव नहीं होने पर भी यह बीमारी होती है।
कई मामले में टेग्रेटाॅल नामक दवा लेने पर रोगी को काफी राहत मिलती है। लेकिन अगर इस दवाई से भी कोई फायदा नहीं हो तो आगे की जांच की जरूरत होती है। जांच के तौर पर मस्तिष्क की एम.आर.आई. करनी पड़ती है।
चेहरे में आने वाली पांचवी क्रेनियल नर्व नामक नस में इरिटेशन होने के कारण भी ट्राइजेमिनल न्यूरेल्जिया होती है। इसमें खून की एक नस पांच नंबर की नस से टकराती है और ट्राइजेमिनल न्यूरेल्जिया पैदा करती है। कई बार इस नर्व के अत्यधिक संवेदनशील होने के कारण भी यह बीमारी होती है लेकिन ऐसी स्थिति में एम.आर आई. में भी कारणों का पता नहीं चलता है। कई बार इस नर्व पर दबाव पड़ने से भी यह बीमारी होती है। ऐसी स्थिति में सिर के पीछे माइक्रोस्कोप की सहायता से माइक्रो वैस्कुलर डिकम्प्रेशन (एम.वी.डी.) नामक छोटा सा आॅपरेशन करते हैं। इस आॅपरेशन के तहत दोनों नसों के बीच में एक मांस का या टेफलान का टुकड़ा लगा दिया जाता है जिससे नसें आपस में नहीं टकराती हैं और ट्राइजेमिनल न्यूरेल्जिया ठीक हो जाता है।
इस रोग के मरीज को सबसे पहले टेग्रेटाॅल जैसी दवाइयां दी जाती हैं। इससे आराम नहीं मिलने पर चिकित्सक मरीज को ग्लिसराॅल इंजेक्शन देते हैं। नर्व में यह इंजेक्शन लगाकर नर्व को सुन्न कर दिया जाता है। जब इससे भी राहत नहीं मिले तो एक बार फिर एम.आर.आई. कराकर देखा जाता है।
इस रोग के इलाज के लिये राइजोटोमी नामक एक और तरीका अपनाया जाता है। इसके तहत पांचवी नर्व के संवेदी रेशों को काट दिया जाता है। इससे चेहरे में जलन एवं पीड़ा समाप्त हो जाती है लेकिन कई बार चेहरे उस खास हिस्से में हमेशा के लिये सुन्नपन आ सकता है। ऐसे में रोगी को भोजन के स्वाद का पता नहीं चलता है। लेकिन उसे पीड़ा एवं जलन से राहत मिल जाती है।
राइजोटोमी या तो सामान्य सर्जरी के जरिये या रेडियो फ्रीक्वेंसी तरंगों की मदद से की जा सकती है। आजकल इसके लिये गामा नाइफ का भी उपयोग किया जाने लगा है लेकिन अनेक मामलों में इसके परिणाम अच्छे नहीं आते हैं।
माइक्रोवैस्कुलर डिकम्प्रेशन अधिक कारगर तरीका है। इस विधि से इलाज करने पर चेहरे में सुन्नपन आने की आशंका कम रहती है। यही नहीं अगर सुन्नपन आ भी जाये तो धीरे-धीरे यह ठीक हो जाता है। माइक्रोवैस्कुलर डिकम्प्रेशन में 90.95 प्रतिशत मामलों में मरीज को पूरी राहत मिल जाती है। आपरेशन के बाद भी मरीज को मेजिटाॅल दवाइयां पहले जितनी खुराक में लेनी पड़ती है। लेकिन धीरे- धीरे दवाइयां बंद कर दी जाती है। इस दवा को अचानक बंद नहीं करना चाहिए वरना चेहरे में दर्द दोबारा आ सकता है।
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