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छोटे होते हैं हाइपर एक्टिव बच्चों के दिमाग

  • by @ हेल्थ स्पेक्ट्रम
  • at November 24, 2019 -
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अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिव डिसआर्डर से ग्रस्त बच्चों का दिमाग सामान्य बच्चों के दिमाग की तुलना में थोड़ा छोटा और अपरिपक्व होता है जिसके कारण मस्तिष्क के विभिन्न क्षेत्रों के बीच सिग्नल के आदान-प्रदान में व्यवधान आता है।
ये बच्चे एकाग्रता में कमी के शिकार होते हैं। अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिव डिसआर्डर से ग्रस्त बच्चों में छोटे दिमाग पाए जाने की बात पहले के अध्ययनों में भी साबित हो चुकी है। लेकिन इस विषय पर हाल में अमरीका के नेशनल इंस्टीच्यूट आॅफ मेंटल हेल्थ द्वारा किए गए अध्ययन में यह भी पाया गया कि इस रोग के इलाज के तौर पर मस्तिष्क को उत्तेजित करने के लिए दी जाने वाली रिटालिन दवा मस्तिष्क के किसी भी तरह के संकुचन या हृास के लिए जिम्मेदार नहीं है।
इसके उलट इस दवा का उत्पादन करने वाली नोवार्टिस कंपनी का दावा है कि इस दवा के सेवन से मस्तिष्क में परिपक्वता आती है और इसके क्रियाकलाप में भी बढ़ोत्तरी होती है।
न्यूयार्क यूनिवर्सिटी स्कूल आॅफ मेडिसीन के रेडियोलाॅजिस्ट जेवियर कैस्टेलानोस का कहना है कि इस अध्ययन से यह साबित होता है कि यह दवा बच्चों में उसके मस्तिष्क के आकार में कमी के लिए जिम्मेदार नहीं है, बल्कि यह मस्तिष्क में परिपक्वता लाती है।
अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि यह बीमारी जीवन के आरंभिक समय में मस्तिष्क में चोट लगने या आनुवांशिक कारणों से होती है और यह पीढ़ी दर पीढ़ी हो सकती है। एक अनुमान के अनुसार अमेरिका में तीन से पांच प्रतिशत बच्चे अटेंशन डेफिसिट डिसआर्डर से ग्रस्त हैं। लड़कियों की तुलना में लड़कों में यह बीमारी तीन गुना अधिक होती है। हालांकि बच्चों में ध्यान केन्द्रित करने, अपनी जिम्मेदारियों को समझने और हाइपरएक्टिव इंपल्सिव बिहेवियर को मापने का कोई पैमाना नहीं है।
अमेरिकन मेडिकल एसोसियेशन के साप्ताहिक जर्नल में प्रकाशित इस नवीनतम अध्ययन की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस डिसआर्डर से ग्रस्त बच्चों का दिमाग सामान्य बच्चों की तुलना में तीन प्रतिशत छोटा होता है। इस अध्ययन के तहत एक दशक में तकरीबन 300 बच्चों के मस्तिष्क की एम.आर.आई. करने पर पाया गया कि मस्तिष्क के आकार का इस बीमारी की गंभीरता से गहरा संबंध है जो उम्र बढ़ने के साथ भी निरंतर बना रहता है। हालांकि इस बीमारी से ग्रस्त बच्चे के मस्तिष्क का विकास सही ढंग से होता है लेकिन उनमें परिपक्वता कम आती है।
कैस्टेलानोस का कहना है कि मस्तिष्क के आकार में कमी का सबसे अधिक प्रभाव सेरेबेलम और सफेद द्रव्य की मात्रा में कमी का पड़ता है। सेरेबेलम शारीरिक क्रियाकलापों को नियंत्रित करने में सहायता करता है। इसके अलावा यह मस्तिष्क के विभिन्न क्षेत्रों के बीच सूचना का आदान-प्रदान करने का भी कार्य करता है। मस्तिष्क के चारों खंडों में पाया जाने वाला सफेद द्रव्य मस्तिष्क के बिजली के तारों के बीच चालकता में वृद्धि करता है। इसमें पाये जाने वाले फाइबर न्यूराॅनों को मस्तिष्क के विभिन्न क्षेत्रों के बीच संबंध को बनाए रखने में सहायता करते है।
इस बीमारी से ग्रस्त बच्चे आम तौर पर अपने हमउम्र सामान्य बच्चों की तुलना में कम परिपक्व होते है और इसके लिए सफेद द्रव्य का कम परिपक्व होना जिम्मेदार होता है। कैस्टेलानोस के अनुसार ऐसे बच्चे जब तक दवाईयों का सेवन करते रहते हैं उनके बर्ताव में सुधार रहता है लेकिन अभी तक इस बात का सबूत नहीं मिल पाया है कि जब वे दवाईयां लेना बंद कर देते हैं तो उनका बर्ताव कैसा रहता है।


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