टेलीविजन चैनलों को आज सामाजिक विकृतियां और सांस्कृतिक प्रदूषण फैलाने के लिये जिम्मेदार माना जा रहा है, लेकिन चिकित्सका विशेषज्ञों का कहना है कि टेलीविजन के कारण बच्चों में कई तरह बीमारियां तेजी से फैल रही है। चिकित्सकों के अनुसार ज्यादा टेलीविजन देखने के कारण बच्चे न केवल मिरगी, चिड़चिड़ापन, मोटापे, अनिद्रा और नेत्र समस्याओं के शिकार हो रहे हैं बल्कि उनके मानसिक स्तर में भी गिरावट आ रही है।
टेलीविजन से फैलती मिर्गी
स्नायु विशेषज्ञों के अनुसार अधिक टेलीविजन देखने के कारण बच्चे मिरगी के रोगी बनते जा रहे हैं। एक अध्ययन के अनुसार देश में लगभग 52 लाख मिरगी के रोगी हैं, जिनमें टेलीविजन प्रेरित रोगियों की संख्या तीन लाख है। इनमें अधिकतर बच्चे हैं। नयी दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ स्नायु विशेषज्ञ डा. एस.के.सोगानी के अनुसार लंबे समय तक काफी निकट से लगातार टेलीविजन देखने के कारण मिरगी हो सकती है। टेलीविजन देखते समय मस्तिष्क में प्रकाश संवेदी (फोटो सेनसिटिव) कोशिकाएं तेजी से प्रतिक्रिया करती हैं, जिससे मस्तिष्क के आणविक स्तर में असामान्य परिवर्तन होने लगता है, जिससे मस्तिष्क की ऊर्जा शक्ति अव्यवस्थित हो जाती है और मस्तिष्क से असामान्य तरल पदार्थ बहने लगात है, जो मिरगी का रूप ले लेता है। ऐसी मिरगी को साइकोमेटिव (मनोप्रेरित) मिरगी कहते हैं। मनोप्रेरित मिरगी की संभावना वयस्कों की अपेक्षा बच्चों में अधिक होती है, क्योंकि टेलीविजन कार्यक्रमों के प्रति एकाग्रता बच्चों में ज्यादा होती है। ऐसी मिरगी का पता आसानी से नहीं लगाया जा सकता है, क्योंकि इसमें मुंह से झाग नहीं निकलता। हालांकि इस प्रकार की मिरगी का इलाज संभव है, लेकिन लोग यह समझ नहीं पाते कि यह मिरगी है या बेहोशी। इसलिए आम तौर पर इसका इलाज नहीं करवाते।
मिरगी मस्तिष्क की एक प्रकार की अचेतना की अवस्था है, जिसमें व्यक्ति कुछ मिनट के लिए चेतनाशून्य हो जाता है। मस्तिष्क में लाखों कोशिकाएं होती हैं, जो व्यवस्थित रूप से कार्य करती हैं। ये कोशिकाएं न्यूरोंस कहलाती हैं और विद्युत धारा और रासायनिक वाहकों के माध्यम से कार्य करती हैं। मस्तिष्क में इन कोशिकाओं पर नियंत्रण करने और संतुलन बनाए रखने के लिए निरोधी कोशिकाएं होती हैं। जब कभी निरोधी कोशिकाएं अपना कार्य करने में असमर्थ हो जाती हैं, तो मस्तिष्क में कोशिकाओं की अनियंत्रित और अनियमित क्रिया शुरू हो जाती है। ऐसी ही प्रक्रिया मिरगी की होती है।
टेलीविजन से बढ़ती अपच एवं अनिद्रा की समस्यायें डा. गोविंद वल्लभ पंत अस्पताल के पूर्व मनोचिकित्सक डा. मनोरंजन सहाय के अनुसार टेलीविजन में एक प्रकार का आकर्षण होता है। इसके कारण जो बच्चे लगातार टेलीविजन देखते हैं, उन्हें धीरे-धीरे इसकी लत लग जाती है। आज दिन रात विभिन्न तरह के कार्यक्रमों का प्रसारण करने टेलीविजन चैनलों की बाढ़ आ जाने के कारण आज बच्चे पहले की तुलना में अधिक देर रात तक टेलीविजन देखते रहते हैं। इसका असर उनकी पढ़ाई पर भी पड़ता है। वे पढ़ाई करने की अपेक्षा टेलीविजन देखना ही ज्यादा पसंद करते हैं। इस तरह वे न सो पाते हैं और न ही पढ़ाई कर पाते हैं। इसका प्रभाव उन पर जैविक रूप से भी पड़ता है और इससे उनकी पाचन शक्ति और नींद प्रभावित होती है।
टेलीविजन के कारण मानसिक समस्यायें
डा. सहाय कहते हैं कि जब बच्चे माता-पिता की बात नहीं मानते हैं, तो घर में तनाव का माहौल बन जाता है, जिससे बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। इसके कारण वे चिड़चिड़े और जिद्दी हो जाते हैं। अपनी बात मनवाने के लिए वे उल्टी-सीधी हरकतें भी करने लगते हैं। इस तरह उनके व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है।
नयी दिल्ली स्थित बत्रा अस्पताल के मनोचिकित्सक डा. नीलम कुमार वोहरा का मानना है कि टेलीविजन पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रम पश्चिमी देशों की संस्कृति की नकल पर आधारित होते हैं। बच्चों को परिवार से मिलने वाली संस्कृति टेलीविजन पर दिखायी जाने वाली संस्कृति से भिन्न होती है। इसलिए बच्चे यह निर्णय नहीं कर पाते कि उन्हें कौन सी संस्कृति अपनानी है। टेलीविजन के कार्यक्रमों के आकर्षण और ग्लैमर से प्रभावित होकर बच्चे टेलीविजन चैनलों द्वारा परोसी जा रही अपसंस्कृति से प्रेरित हो जाते हैं।
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