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 टेलीविजन से बढ़ती नेत्र समस्यायें

टेलीविजन का बच्चों में मानसिक एवं स्नायु समस्यायें ही नहीं, आंखों की समस्यायें भी तेजी से बढ़ रही है। राष्ट्रीय नेत्र अंधता निवारण सोसायटी की ओर से किये गये सर्वेक्षण में करीब 25 प्रतिशत बच्चों को विभिन्न नेत्र समस्याओं एवं दृष्टि दोषों से ग्रस्त पाया गया। वर्तनांक (रिफ्रेक्टिव) दोष सबसे सामान्य नेत्र समस्या है और नेत्र दोषों से ग्रस्त करीब 60 प्रतिशत मरीजों मेें यही दोष पाया गया।
नेत्र विशेषज्ञों का कहना है कि टेलीविजन जैसे इलेक्ट्राॅनिक माध्यमों के अंधाधुंध इस्तेमाल के कारण पर शहरी लोगों खासकर बच्चों में आंखों में खिंचाव (स्ट्रेन) एवं आंख दर्द की समस्यायें तेजी से बढ़ रही हैं। पिछले कुछ वर्षों में आंखों में स्ट्रेन से ग्रस्त लोगों की संख्या कई गुणा अधिक हो गयी है।
लगातार टेलीविजन देखने और कम्प्यूटर पर काम करने से आंखों में स्ट्रेन एवं थकावट की समस्याएं उत्पन्न होती हैं। हालांकि इस बारे में कोई सर्वेक्षण नहीं हुआ है, लेकिन गांवों की तुलना में शहरों में मायोपिया जैसे दृष्टि दोषों की समस्या अधिक पायी गयी है। इसका एक बड़ा कारण शहरों में टेलीविजन एवं कम्प्यूटरों का अंधाधुंध इस्तेमाल है।
नेत्र विशेषज्ञों के अनुसार बच्चों को अधिक मायोपिया होने का मुख्य कारण यह है कि शहरी बच्चे मनोरंजन के लिये टेलीविजन एवं वीडियो गेमों जैसे दृश्य माध्यमों पर अधिक निर्भर रहते हैं, जिसके कारण आंखों पर अधिक जोर पड़ता है।
आज के समय में खासतौर पर शहरों में बच्चों पर एक तरफ तो पढ़ाई का बोझ बढ़ा है, दूसरी तरफ खेल-कूद जैसे मनबहलाव के परम्परागत तौर-तरीकों का स्थान टेलीविजन, वीडियो गेमों एवं कम्प्यूटरों ने ले लिया है। आंखों पर बहुत अधिक जोर डालने वाले मनोरंजन के आधुनिक तौर तरीकों, पढ़ाई तथा निकट से किये जाने वाले अन्य कार्यों की वजह से आंखों से जुड़ी सिलियरी कोशिकाओं में खिंचाव पैदा होता है। टेलीविजन, वीडियो एवं कम्प्यूटर जैसी पास रखी वस्तुओं को देखने के लिये सिलियरी कोशिकाओं को सिकुड़ना पड़ता है ताकि नेत्रा लेंस का पावर बढ़ जाये और निकट की वस्तुयें दिखाई पड़े। इन कोशिकाओं में बार-बार बहुत अधिक खिंचाव होने पर आंखों के रंजित पटल (कोराॅइड) में फैलाव होता है और नेत्र गोलक बड़ा हो जाता है जिससे मायोपिया उत्पन्न होती है।
लगातार देर तक टेलीविजन देखने और कम्प्यूटर पर देर तक काम करने या गेम खेलने से आंखों में खिंचाव एवं विकृति पैदा होती है। इससे आंखें कमजोर एवं रुग्न होती हैं जिसके कारण बार-बार नेत्रा संक्रमण, आंखों से पानी आने तथा सिर दर्द की समस्याएं उत्पन्न होती हैं। ये समस्याएं अंततः मायोपिया पैदा करती हैं या मायोपिया को और बढ़ाती हैं।
नेत्र विशेषज्ञों का कहना है कि किताब पढ़ने की तुलना में टेलीविजन देखने पर और कारणों से भी आंखों पर दुष्प्रभाव पड़ता है। किताबों में छपे अक्षर स्थिर होते हैं जबकि टेलीविजन स्क्रीन पर उभरने वाले दृश्य गतिशील होते हैं। यही नहीं टेलीविजन पर स्थिर दिखने वाले दृश्यों में भी गतिशीलता होती है। यह गतिशीलता ''पिक्सेल्स'' नामक बिन्दुओं में निहित होती है। टेलीविजन के पिछले हिस्से में लगे 'इलेक्ट्राॅन गन' से टेलीविजन स्क्रीन की पिछली सतह पर बहुत तीव्र गति से इलेक्ट्राॅनों की बौछार होती है। जिस बिन्दु पर इलेक्ट्राॅन पड़ते हैं वह बिन्दु बहुत कम क्षण के लिये चमक उठता है। हमारी आंखें इस झिलमिलाहट को पकड़ नहीं पातीं क्योंकि इसकी गति बहुत तेज होती है, लेकिन इस अप्रत्यक्ष झिलमिलाहट के कारण हमारी आंखों पर खिंचाव आ सकता है और आंखें खराब हो सकती हैं। टेलीविजन एवं कम्प्यूटर स्क्रीन से आंखों को एक और खतरा विकिरण के कारण होता है। टेलीविजन एवं कम्प्यूटरों से एक्स पराबैंगनी एवं अवरक्त (इन्फ्रा) किरणों का उत्सर्जन होता है।
नयी दिल्ली के सेंटर फाॅर आई केयर के निदेशक डा. विशाल ग्रोवर की सलाह है कि बच्चों को टेलीविजन के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए जरुरी है बच्चों सीमित तौर पर टेलीविजन देखने दिया जाये। इसके अलावा उन्हें बहुत पास से टेलीविजन नहीं देखने दिया जाये। बच्चों को टेलीविजन स्क्रीन के आकार से कम से कम सात गुना अधिक दूरी अथवा टेलीविजन से तकरीबन तीन मीटर दूर से ही टेलीविजन देखने देना चाहिये। बड़े पर्दे वाले टेलीविजन देखने से आंखों को तुलनात्मक रुप से आराम रहता है लेकिन छोटे कमरे में बड़े पर्दे वाले टेलीविजन ठीक नहीं हैं। काफी लंबे समय तक एकटक होकर टेलीविजन नहीं देखना चाहिए। थोड़ी देर टेलीविजन देखने के बाद आंखों को आराम देना चाहिये। बच्चे आम तौर पर फर्श पर बैठ कर अथवा बिस्तर पर लेट कर टेलीविजन देखते हैं। इससे आंखों के साथ गर्दन में खिंचाव की समस्या आ सकती है। यह कोशिश करनी चाहिए कि टेलीविजन एवं देखने वाले एक ही उंचाई पर हों।


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