प्रकृति की जटिलतम संरचना माने जाने वाले मानव मस्तिष्क को एक समय अबूक्ष एवं अभेद्य माना जाता था। लेकिन आज इंडोस्कोपी की बदौलत मस्तिष्क के भीतर झांकना और उसके भीतर की गड़बड़ियों को ठीक करना संभव हो गया है। इंडोस्कोपी के विकास के बाद मस्तिष्क की सर्जरी में क्रांति सी आ गयी है। मस्तिष्क का आपरेशन एक समय जटिल एवं खतरों से भरा माना जाता था लेकिन इंडोस्कोपी की बदौलत मस्तिष्क की नाजुक एवं सूक्ष्मतम कोशिकाओं तक पहुंचना एवं उनका आपरेशन करना कष्टरहित, आसान और सुरक्षित हो गया है। न्यूरो सर्जरी की तकनीकों खास तौर पर इंडोस्कोपी के विकास के कारण अब खोपड़ी में बहुत छोटा सूराख करके ही अथवा मस्तिष्क को खोले बगैर बड़े से बड़े आपरेशन किये जा सकते हैं। इन तकनीकों के कारण अब मरीज को कम दर्द एवं कष्ट सहना पड़ता है और मरीज को आपरेशन के बाद कम दुष्प्रभाव झेलने पड़ते हैं। इंडोस्कोप बुनियादी तौर पर एक ऐसा उपकरण है जिससे शरीर के किसी भाग के भीतर प्रकाश भेजा जा सकता है। अगर इससे शक्तिशाली कैमरा एवं प्रकाश स्रोत जोड़ दिया जाये तो यह शरीर के भीतर की तस्वीरों को इससे जुड़े टेलीविजन माॅनीटर पर दिखा सकता है। इससे शल्य चिकित्सक बड़ा छेद किये बगैर शरीर के अंदर की गतिविधियों को साफ तौर पर देख सकता है। सर्जन इन तस्वीरों के आधार पर आधुनिकतम सूक्ष्म इंडोस्कोपी उपकरणों की मदद से जटिल से जटिल आपरेशन अत्यंत सफलतापूर्वक एवं किसी जोखिम के बगैर कर सकता है। इंडोस्कोप की मदद से नाक के रास्ते भी दिमाग के सेला एवं कोडेमा जैसे उन हिस्सों तक पहुंच कर आपरेशन करना संभव हो गया है जहां परम्परागत तरीके से पहुंचना न केवल कठिन बल्कि कई बार जानलेवा भी साबित होता था। नाक के रास्ते इंडोस्कोपी का मुख्य इस्तेमाल पीयूष ग्रंथि के ट्यूमर को निकालने में होता है लेकिन इससे दिमाग के पानी के रिसाव को भी बंद किया जा सकता है। इसके अलावा इससे क्लिवस जैसे मस्तिष्क के कुछ भागों की बायोप्सी भी की जा सकती है। इंडोस्कोपी तकनीक का इस्तेमाल प्रोलैक्टिनोमास, कुशिंग रोग, एक्रोमेगेली और एडेनोमास जैसे विभिन्न पीयूष ट्यूमरों को निकालने के लिये भी होता है। परम्परागत तरीके से पिट्यूटरी एडेनोमास को निकालने के लिये ऊपरी होठ के नीचे अथवा नाक के भीतर छेद करना पड़ता था। इसके कारण मरीज को आॅपरेशन के बाद नाक पर पट्टी लगाये रखनी पड़ती थी। इंडोस्कोप की मदद से सिर में पानी भर जाने की बीमारी हाइड्रोसेफलस का भी इलाज किया जा सकता है। इस बीमारी के कारण या तो बच्चे को असमय मौत अथवा ताउम्र शारीरिक एवं मानसिक विकलांगता का शिकार होना पड़ता है। लेकिन आज इंडोस्कोपी की बदौलत मस्तिष्क में अत्यंत छोटा छेद करके इसका इलाज संभव हो गया है।
मस्तिष्क के पानी को सेरिबरो स्पाइनल फ्ल्यूड (सी. एस. एफ.) कहते हैं। मस्तिष्क में बनने वाला यह पानी स्पाइन और मस्तिष्क में रोटेट करता है । जब सी. एस. एफ. के रास्ते में किसी तरह की रुकावट आ जाती है तब हाइड्रोसेफलस बन जाती है। हाइड्रोसेफलस के परम्परागत इलाज के तहत मस्तिष्क में एक सुराख करके एक नली डाल दी जाती है और इस नली के दूसरे हिस्से को त्वचा के अंदर ही अंदर लाकर पेट में डाल दिया जाता है। इससे मस्तिष्क में बना पानी पेट में जाने लगता है। आधुनिक इलाज में मस्तिष्क में जहां पैदाइशी रास्ता नहीं बना होता है वहां इंडोस्कोप के जरिये मस्तिष्क में एक छोटा सुराख करके वहां एक नली डालकर उस रास्ते को बना दिया जाता है या थर्डवेंट्रिक्लोस्टोमी कर दी जाती है अर्थात् पानी की थेैली का जो हिस्सा मस्तिष्क के बाहर चमक रहा होता है उसको फोड़ दिया जाता है ताकि सारा पानी मस्तिष्क की सतह पर आकर अवशोषित हो सके। इसमें दोबारा आॅपरेशन करने की जरुरत पड़ने की आशंका कम रहती है। वेंट्रिक्लोस्टोमी से मस्तिष्क के पानी की थैलियों को फोड़कर बनाया गया छेद बंद हो सकता है और उसमें पानी दोबारा भर सकता है लेकिन फिर भी 95 प्रतिशत मामलों में यह आपरेशन कारगर होता है और दोबारा आपरेशन करने की जरुरत नहीं पड़ती। शारीरिक एवं मानसिक विकलांगता एवं लकवा से लेकर दर्दनाक मौत का सबब बनने वाले ब्रेन हेमरेज का भी इंडोस्कोपी से इलाज संभव हो गया है। उच्च रक्त चाप के कारण कई बार मस्तिष्क के अंदर कोशिकायें फट जाती है जिससे दिमाग में भीतर ही भीतर रक्त स्राव होता है। यह अत्यंत गंभीर स्थिति होती है जिससे रोगी की मौत हो सकती है। अभी हाल तक बे्रन हैमरेज के ज्यादातर मरीज मौत के शिकार हो जाते थे लेकिन अब इंडोस्कोपी की मदद से छोटे से छोटे रक्त के थक्के का पता लगाकर उसे निकालना संभव हो गया है। इसके लिये मस्तिष्क में अत्यंत छोटा छेद करने की जरूरत होती है। इंडोस्कोपी आधारित कीहोल क्रानियोटोमी की मदद से दिमागी फोड़े, एन्युरिज्म एवं सिस्ट आदि का इलाज संभव हो गया है।
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