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कमर दर्द स्पाइन की तपेदिक एवं रसौली का संकेत हो सकता है

आधुनिक समय में स्पाइन की तपेदिक (ट्यूबरकुलोसिस) एवं रसौली ट्यूमर)के प्रकोप में भयानक तेजी आ गयी है। कुछ साल पहले तक स्पाइन की तपेदिक बहुत कम लोगों को होती थी लेकिन अब इनके रोगियों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है । 
स्पाइन की तपेदिक 
आज स्पाइन की तपेदिक कमर दर्द एवं गर्दन दर्द की प्रमुख समस्या बन गयी है। कमर एवं गर्दन के सामान्य दर्द आराम करने पर ठीक हो जाते हैं लेकिन स्पाइन की तपेदिक के कारण उभरने वाले कमर एवं गर्दन के दर्द आम तौर पर आराम करने के बाद भी ठीक नहीं होते । इसके अलावा स्पाइन की  तपेदिक  होने पर रोगी को कमर दर्द के अलावा हाथ-पैर में झनझनाहट, सुन्नपन और कमजोरी आने, बैठे-बैठे अचानक उठने पर पैरों के सुन्न हो जाने, चलते-चलते अचानक गिर जाने, लगातार कब्ज, टट्टी और पेशाब में रूकावट आने या उनपर नियंत्रण नहीं रहने और लिखावट बदल जाने जैसी समस्यायें हो सकती हैं। इलाज नहीं कराने या इलाज में विलंब होने पर स्पाइन की हड्डी अंदर से गल जाती है और रोगी को लकवा (पारालाइसिस) मार देता है। 
स्पाइन की तपेदिक में मरीज को शाम के वक्त हल्का बुखार रह सकता है और वजन दिनोंदिन गिरता जाता है। इन लक्षणों वाले मरीजों में बीमारी का स्पष्ट तौर पर पता करने के लिये उनके रक्त का ई.एस.आर.परीक्षण, छाती का एक्स-रे, मांटुज जांच, स्पाइन की एक्स रे जांच और कैट स्कैन जैसे परीक्षण किये जाते हैं। इनसे यह पता चल जाता है कि हड्डी गली हुयी तो नहीं है या तपेदिक के कारण हड्डी के अंदर कोई संक्र्रमण तो नहीं रह गया है। 
आम लोगों में यह धारणा है कि फेफड़े की तपेदिक की तरह स्पाइन की तपेदिक भी छुआछुत की बीमारी है। लेकिन यह धारणा पूरी तरह से गलत है। दरअसल स्पाइन की तपेदिक क्लोज ट्यूबरकुलोसिस होती है अर्थात इसके कीटाणु दूसरे लोगों को संक्रमित नहीं कर सकते । 
स्पाइन की तपेदिक होने के कारणों में शरीर में संक्रमण का होना और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होना प्रमुख है। इसलिये हमें खांसी, जुकाम, बुखार जैसी बीमारियों को हल्के ढंग से नहीं लेना चाहिये क्योंकि ये बीमारियां धीरे-धीरे रोगों से बचाव करने की हमारे शरीर की शक्ति को कम करती हैं जिससे हमारा शरीर दूसरे रोगों से मुकाबला नहीं कर पाता और हम तपेदिक एवं अन्य बीमारियों से घिर सकते हैं। मधुमेह और कैंसर की दवाइयां शरीर की कोशिकाओं को मारती हैं जिससे भी शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति कम होती है।
स्पाइन की रसौली
स्पाइन की रसौली (ट्यूमर) रीढ़ अथवा स्पाइन के वर्टिब्रल बाॅडी या स्पाइनल कैनाल के अंदर के ड्यूरल मेम्ब्रेन में हो सकती है। कभी-कभी ड्यूरल मेम्बे्रन के अंदर भी ट्यूमर हो सकता है। स्पाइन में कैंसर युक्त अर्थात मेनिनजियोमा अैार कैंसर रहित अर्थात ग्लायोमा दोनों प्रकार के ट्यूमर हो सकते हैं।
मैनिनजियोमा मेम्ब्रेन से होता है जबकि ग्लायोमा स्पाइनल कार्ड के अंदर होता हैं। स्पाइन के मेनिनजियोमा के लक्षण सामान्य कमर दर्द की तरह ही होता है। इसमें कमर दर्द बहुत धीरे-धीरे बढ़ता है और वर्षों तक चलता रहता है। एम.आर.आई. कराने पर ही इसका पता चलता हैं। इस ट्यूमर को आपरेशन से ही पूरा निकालना संभव होता है और इसके कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होते हैं जबकि ग्लायोमा का इलाज संभव नहीं है क्योंकि इसको काट कर निकालते समय स्पाइनल काॅर्ड अक्सर क्षतिग्रस्त हो जाती है जिससे मरीज को लकवा हो जाता है और वह आपरेशन के बाद भी चलने-फिरने लायक कम रहता है। कमर दर्द के 30 से 40 साल तक के ज्यादातर मरीजों में बिनाइन अर्थात नाॅन कैंसरस ट्यूमर का कारण तपेदिक या चोट की वजह से ही रक्त का थक्का बनना होता है। स्पाइन में नाॅन कैंसरस ट्यूमर आमतौर पर कैंसरस ट्यूमर में नहीं बदलते लेकिन नाॅन कैंसरस ट्यूमर में लगातार जलन या खुजलाहट होने से या बिना जांच किये उसमें सीधे-सीधे रेडियोथेरेपी देने से यह कैंसर ट्यूमर में बदल सकता है।
स्पाइन की तपेदिक और रसौली में कमर दर्द 
स्पाइन की तपेदिक एवं रसौली (ट्यूमर ) होने पर भी कमर दर्द की समस्या आम तौर पर हो सकती है। वैसे तो आज की तेज रफ्तार और तनाव भरी जिंदगी में कमर एवं गर्दन दर्द एक आम समस्या बन गयाी है। आज हर दूसरा-तीसरा आदमी कमर और गर्दन दर्द से पीड़ित है। हालांकि करीब 60 से 70 फीसदी मामलों में सरवाइकल के कारण एवं गर्दन दर्द और डिस्क की गड़बड़ी के कारण कमर दर्द की समस्या होती है। लेकिन सरवाइकल एवं लम्बर स्पांडुलाइटिस के अलावा कुछ अन्य बीमारियां भी कमर एवं गर्दन दर्द के कारण बन सकती हैं। इसके अलावा कीड़े के अंडे भी कमर दर्द का कारण बन सकते हैं। खाने-पीने के दौरान कीड़े के जो अंडे पेट में जाते हैं वे कभी-कभी रक्त के जरिये स्पाइनल काॅर्ड के अंदर जाकर दब जाते हैं और स्पाइनल काॅर्ड के ऊतकों के अंदर जाकर पनपते रहते हैं और ये कमर दर्द के कारण बनते हैं। इसे स्पाइनल सिस्टीसरकोसिस की बीमारी कहा जाता है।
कभी-कभी हड्डियों के आपस में जुड़ने जैसी पैदाइशी बीमारियां भी कमर दर्द का कारण बनती हंै। हालांकि 100 से 200 मरीजों में से एक को ही ऐसा होता है। इसे क्रेनियोवर्टिबल जैक्शन की एनामोली कहते हंै। आम तौर पर 25 से 30 साल तक इसके लक्षण नहीं उभरते हैं। लेकिन इसके बाद हल्का झटका या हल्की चोट लगने पर ये उभरकर सामने आ जाती है। इसका इलाज सिर्फ आपरेशन से ही संभव है। 
कमर दर्द दो साल के बच्चे से लेकर बूढ़ों को भी हो सकता है। बच्चों में कमर दर्द अक्सर पैदाइशी कारणों से होता है। हड्डी के ठीक से नहीं बनने या पूरी तरह नहीं बनने, टेढ़ी बनने या नर्व के ऊपर जोड़ पड़ने से बच्चों में कमर दर्द हो सकता है। गर्भावस्था के दौरान गलत दवाइयों के सेवन से भी बच्चे की पीठ में फोड़े हो सकते हैं जिसे मेनिन्गोमाइलोसिस कहा जाता है। इसमें आपरेशन के बाद बच्चे में कमर दर्द हमेशा के लिये रह जाता है। बच्चों में कमर दर्द का एक मुख्य कारण तपेदिक और गले में संक्रमण है। बच्चों में तपेदिक अधिक होने के कारण स्पाइन में भी तपेदिक हो जाती है। इसके अलावा बच्चों में रक्त कैंसर(ल्युकेमिया) भी बहुत सामान्य है। इससे भी बच्चों को कमर दर्द रह सकता है। कभी-कभी बच्चों के गिरने से उनकी स्पाइन टेढ़ी हो जाती है या स्पाइन की मांसपेशियां टूट जाती हैं। ये कमर दर्द के कारण बन सकते हैं। महिलाओं में कमर दर्द के मुख्य कारण पेल्विक इंफ्लामेंट्री डिजीज है अर्थात बच्चेदानी या अन्य प्रजनन अंगों में कोई छोटे संक्रमण के कारण नर्व में सनसनाहट होती रहती है और इसकी वजह से कमर दर्द होता है। कभी-कभी स्तन कैंसर के रोगियों में उसकी मेटास्टिसिस कमर में चली जाती है जिससे कमर दर्द होने लगता है। इसके अलावा महिलाओं में कमर दर्द के सामान्य कारण ओस्टियोपोरोसिस, पेल्विक कैविटी के अंदर संक्रमण, माहवारी में गड़बड़ी, बच्चेदानी के ऊपर सूजन आदि शामिल हैं। ऐसी स्थिति में महिला रोग विशेषज्ञ से जांच कराने तथा उसमें कोई खराबी नहीं आने पर एम.आर.आई. कराने पर पता चल जाता है कि किस नर्व के ऊपर दबाव है या कौन सी नर्व कमर दर्द का कारण बन रही है। ऐसे में नर्व को दबाने वाली हड्डी के हिस्से को काट कर निकाल देने से कमर दर्द ठीक हो जाता है। 
वृद्धावस्था में होने वाले कमर दर्द में हड्डी के मुड़ने या बढ़ने से नसों पर  दबाव पड़ने लगता है। लेकिन बढ़ी हुयी हड्डी को काट कर निकाल देने पर कमर दर्द ठीक हो जाता है। कमर दर्द के वास्तविक कारणों का पता कैट स्कैन या एम.आर.आई. से ही लगता है।
स्पाइन की तपेदिक एवं रसौली का उपचार 
स्पाइन की तपेदिक एवं रसौली होने की पुष्टि के लिये बायोप्सी आवश्यक हो जाती है ताकि यह पता चल जाये कि ट्यूमर कैंसर का तो नहीं है क्योंकि कैंसर के ट्यूमर का आपरेशन करने से कोई फायदा नहीं होता है। हालांकि आम लोगों में यह धारणा कि स्पाइन का किसी भी तरह का आपरेशन सुरक्षित नहीं है अब गलत साबित हो चुकी है। कुछ सालों से स्पाइन सर्जरी अब माइक्रोस्कोप की मदद से किया जाने लगा है। इसमें लेजर का भी इस्तेमाल होने लगा है जिससे स्पाइनल काॅर्ड को क्षति पहुंचाये बगैर स्पाइन का आपरेशन करना संभव हो गया है। आजकल तपेदिक, इंट्राड्यूरल ट्यूमर, एक्स्ट्राड्यूरल ट्यूमर, मेनिनजियोमा, न्यूरोफाइब्रोमा, वर्टिब्रल बाडी ट्यूमर, सिस्टीसरकोसिस आदि के आपरेशन 95 से 98 प्रतिशत तक सुरक्षित साबित हो रहे हैं। इनके दोबारा होने की संभावना भी नहीं होती है। स्पाइन में मेनिनजियोमा, तपेदिक या न्यूरोफाइब्रोमा के ट्यूमर होने पर आपरेशन से उसे शत-प्रतिशत तक निकाला जाता है, लेकिन ग्लायोमा ट्यूमर चूंकि कैंसर का ट्यूमर होता है और उसकी जडं़े अंदर बहुत गहराई तक होती है इसलिये इसे पूरा नहीं निकाला जाता है और बचे हुये भाग को रेडियोथेरेपी या कीमोथेरेपी से नष्ट किया जाता है। रेडियोथेरेपी ग्लायोमा और मेटास्टेसिस ट्यूमर में दिया जाता है अर्थात यह सिर्फ मेंलिग्नेंट ट्यूमर या लिम्फोमा में दिया जाता है। बिनाइन ट्यूमर में रेडियोथेरेपी देने पर उसमें कैंसर बनने का खतरा रहता है। इसलिये किसी भी ट्यूमर की पूरी जांच किये बगैर रेडियोथेरेपी देने से उसके कैंसर में तब्दील होने का खतरा रहता है। इसलिये किसी भी ट्यूमर की पूरी जांच किये बगैर रेडियोथेरेपी नहीं दी जाती है।
कुछ मामलों में स्पाइन के आपरेशन के दौरान खून की कोई नाड़ी बंद हो सकती है या स्पाइनल काॅर्ड क्षतिग्रस्त हो सकता है। खून की नाड़ी को तो खोला जा सकता है लेकिन स्पाइनल काॅर्ड में हुयी क्षति को ठीक नहीं किया जा सकता है क्योंकि मस्तिष्क और स्पाइन की कोशिकाओं में पुनर्जीवित होने की शक्ति नहीं होती है। इसलिये स्पाइन की कोशिकाओं के क्षतिग्रस्त होने की स्थिति में उसके आस-पास वाली कोशिकाओं को फिजियोथेरेपी की मदद से अधिक काम करने का प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि वे ज्यादा से ज्यादा काम कर सकें। 


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