गर्भाशय के फाइब्रॉएड से पीड़ित महिला मरीजों के लिए एक अच्छी खबर है। नोवा स्पेषियलिटी हॉस्पीटल ने न्यूनतम इनवेसिव शल्य प्रक्रिया ''नॉन- डिसेंट वेजाइनल हिस्टेरेक्टॉमी (एनडीवीएच)'' की शुरूआत की है। इस नई प्रक्रिया में पेट में कोई चीरा लगाये बगैर ही फाइब्रॉएड के साथ गर्भाशय को योनि के माध्यम से निकाल दिया जाता है।
38 वर्षीय काजल अग्रवाल (बदला हुआ नाम) स्त्री रोग संबंधित समस्याओं से पीड़ित थी। जांच करने पर उनके गर्भाशय में फाइब्रॉएड पाया गया। चिकित्सकां ने फाइब्रॉएड को निकालने के लिए सर्जरी कराने की सलाह दी।
लेकिन पेट में एक बड़ा चीरा लगाकर या लेप्रोस्कोपी से गर्भाशय को निकालने जैसी परंपरागता प्रक्रियाओं की बजाय, काजल ने नॉन- डिसेंट वेजाइनल हिस्टेरेक्टॉमी (एनडीवीएच) कराया। नॉन- डिसेंट वेजाइनल हिस्टेरेक्टॉमी (एनडीवीएच) न्यूनतम इनवेसिव सर्जरी की एक अत्याधुनिक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के 24 घंटे बाद वह दोबारा सामान्य जिंदगी जीने लगी।
नई दिल्ली स्थित नोवा स्पेषियलिटी हॉस्पीटल के प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग की वरिश्ठ कंसल्टेंट डॉ. षीतल अग्रवाल ने कहा, ''इस प्रक्रिया के तहत एड्रेनालाईन को खारे पानी के साथ मिलाकर योनि के माध्यम से गर्भाषय के चारां ओर इंजेक्ट कर दिया जाता है, जो ऊतकों को आराम पहुंचाता है और अधिक जगह बनाता है। यह प्रक्रिया हाइड्रो-डिसेक्षन कहलाती है। इसके बाद सरल शल्य चिकित्सा उपकरणों की मदद से योनि के माध्यम से फाइब्रॉएड और गर्भाशय को निकाल दिया जाता है। पूरी प्रक्रिया में लगभग 30 मिनट का समय लगता है।
एनडीवीएच प्रक्रिया में रक्तस्राव नहीं के बराबर होता है। ओपन सर्जरी जैसे पारंपरिक तरीकों में, बड़े चीरे लगाने के कारण काफी अधिक रक्त की हानि होती है और रोगियों को सामान्य होने में अधिक समय लगता है। यहां तक कि लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में भी छोटा चीरा लगाया जाता है और कुछ रक्त की हानि होती है, लेकिन यह प्रक्रिया महंगी है और जटिलतायें होने का खतरा रहता है। डॉ. षीतल ने कहा, ''पेट को फुलाने के लिए इस्तेमाल किया गया विषाक्त कार्बन डाइऑक्साइड करीब साढ़े तीन घंटे तक शरीर में रहता है। यह दिल पर दबाव डाल सकता है और समस्याएं पैदा कर सकता है।
इस प्रक्रिया के दौरान चूंकि पेट में चीरा नहीं लगाया जाता है, इसलिए सर्जरी के बाद पेट पर कोई निषान भी नहीं रहता और रोगी की तेजी से स्वास्थ्य लाभ करता है। गर्भाशय के फाइब्रॉएड और सिस्ट से पीड़ित महिलाओं को इस प्रक्रिया से काफी फायदा होता है। उन्हें अस्पताल में कम दिनों तक रहना पड़ता है। डॉ. षीतल ने कहा, ''एनडीवीएच काफी प्रभावी साबित हो रही है। इस प्रक्रिया में कम समय तक अस्पताल में रहने के कारण हिस्टेरेक्टॉमी का खर्च 30 प्रतिशत तक कम हो जाता है।''
डॉ. शीतल ने कहा, ''इस प्रक्रिया में हम अंडाषय को बचा सकते हैं जबकि अन्य प्रक्रियाआें में अंडाषय नष्ट हो जाता है। इस प्रक्रिया से हर महिला को फायदा नहीं हो सकता है। यह प्रक्रिया उन महिलाओं के लिए लाभदायक है जिनका सामान्य प्रसव हुआ हो।
करीब एक महीने पहले इस प्रक्रिया को शुरु करने के बाद, अस्पताल में अब तक 40 रोगियों पर यह प्रक्रिया की गयी है।
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