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घुटना प्रत्यारोपण में कारगर है किक टेक्नोलॉजी 

62 वर्शीय सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी श्रीमती षालिनी षर्मा (बदला हुआ नाम) को सीढ़ियां चढ़ने- उतरने में घुटने में काफी दर्द होता था जिसके कारण उन्होंने सुबह की सैर पर जाना बंद कर दिया। ओस्टियोआर्थराइटिस के कारण उन्हें अब अपने रोजमर्रे के सामान्य कार्य करने में भी परेषानी आ रही थी और उनका चलना- फिरना काफी मुष्किल हो रहा था। उन्होंने कई प्रकार के वैकल्पिक उपचार कराये लेकिन उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ। फिर उन्हें टोटल नी रिप्लेसमेंट सर्जरी कराने की सलाह दी गयी क्योंकि घुटने में हुई क्षति की भरपाई करने और दर्द मुक्त जिंदगी के लिए यही एकमात्र समाधान था। 
श्रीमती षर्मा नोवा आर्थोपेडिक एंड स्पाइन हॉस्पिटल (एनओएसएच) के प्रसिद्ध आर्थोपेडिक सर्जन एवं चिकित्सा निदेषक डॉ. ़हर्षवर्धन हेगड़े से मिलीं। डॉ. हेगड़े ने बताया, ''हमने ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी को करने के लिए मिनीमली इन्वैसिव कम्प्यूटर नैविगेषन ''किक'' टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया। यह कम्प्यूटर पर आधारित तकनीक है जो सर्जन को सही ढंग से नी रिप्लेसमेंट करने में सक्षम बनाता है। इसमें अस्पताल में बहुत कम समय तक भर्ती रहने की आवश्यकता होती है, और संक्रमण या जटिलताओं के होने का खतरा कम होता है।''
इसके अलावा उन्होंने पिन लेस नेविगेशन के बारे में बताया कि इसके तहत कंप्यूटर इंफ्रा रेड किरणों का इस्तेमाल कर रोगी की शारीरिक रचना को दर्षाता है और शल्य ब्लू प्रिंट उपलब्ध कराता है। यह हर रोगी की षारीरिक रचना के अनुसार नये इम्प्लांट को सही ढंग से फिट करने के लिए सही स्थिति का फैसला करने में सर्जन को मदद करता है। यह वैसी त्रुटियों और क्षति की भी पहचान कर सकता है जिसका पता आम तौर पर नहीं चल पाता और यह आसपास के ऊतक और लिगामेंंट की क्षति को रोकने में मदद करता है। यह इम्प्लांट अधिक समय तक कारगर रहता है और रोगी की जल्द रिकवरी हो जाती है। 
एनओएसएच ने श्रीमती शर्मा जैसे कई लोगों में उनके घुटने के जोड़ों में गतिषीलता और लचीलापन को आष्चर्यजनक रूप से बढ़ाकर उन्हें उनकी पुरानी तेज रफ्तार जिंदगी में वापस लाने में मदद की है। यहां देष में सबसे अधिक अनुभवी आर्थोपेडिक सर्जनों की सबसे बड़ी टीम है जिनके पास ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी में सुरक्षा और सफलता दर का रिकार्ड है। 
दर्दनिवारक दवाओं के इस्तेमाल, फिजियोथेरेपी या जीवन षैली में परिवर्तन करने से अस्थायी रूप से तो दर्द से राहत मिलती है लेकिन इससे मुख्य कारण का इलाज नहीं हो पाता। घुटने के क्षतिग्रस्त होन, घिसने तथा उस पर दबाव पड़ते रहने के कारण उसकी स्थिति में गिरावट आती जाती है जिससे घुटने और आसपास के उतकों में स्थायी क्षति आ जाती है इसके कारण दीर्घकालिक समाधान पर भी प्रभाव पड़ता है। 


 


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