मध्य पूर्व के 32 वर्षीय कबीर (बदला हुआ नाम) को पिछले 3 वर्षों से कमर में तेज दर्द था। कबीर का पेशा ऐसा था जिसमें उसे घंटों कुर्सी पर बैठकर काम करना पड़ता था जिसके कारण उसे काफी परेशानी आ रही थी। दर्द होने पर वह अक्सर दर्द निवारक दवा ले लेता था। बाद में दवा के कम असर करने पर वह धीरे- धीरे दवा की खुराक बढ़ाने लगा। उसका दर्द हर दिन बढ़ रहा था और वह दर्दनाक जीवन जीने के लिए मजबूर हो गया था।
तीन महीने पहले से उसके बायें पैर में भी दर्द होने लगा जिसके कारण उसे चलने में परेशानी होने लगी। वह चल नहीं पा रहा था। उसे चलने में इतना दर्द होता था कि वह खुद को कुछ फीट तक भी घसीट कर ले जाता था। धीरे - धीरे दर्द कबीर के पैर के निचले हिस्से में भी फैल गया और उसका दोनों पैर लकवाग्रस्त हो गया। कबीर अपाहिज हो गया था।
उसने नोवा आर्थोपेडिक एंड स्पाइन हॉस्पिटल में चिकित्सकों से सलाह ली। समस्या का पता लगाने के लिए एमआरआई की गयी। रिपोर्ट से पता चला कि उसके स्पाइन का एक बड़ा डिस्क बाहर की ओर आ गया है और पैर के निचले हिस्से को नियंत्रित करने वाले नर्व को दबा रहा है।
नोवा आर्थोपेडिक एंड स्पाइन हॉस्पिटल के निदेशक डॉ. हर्षवर्द्धन हेगड़े के अनुसार, ''हमने इस मरीज का इलाज 'फ्यूजन प्रौद्योगिकी' से करने का फैसला किया। इस प्रकार भारत में यह सर्जरी पहली बार सफलतापूर्वक की गयी।''
लम्बर स्पाइन फ्यूजन सर्जरी की ऐसी तकनीक है जिसके तहत स्पाइन की एक या अधिक कशेरुकाओं (वर्टिब्री) को उनके अलगाव और अलाइनमेंट को बनाए रखने के लिए और एक दूसरे के खिलाफ जाने से उन्हें रोकने के लिए एक साथ जोड़़ (फ्यूज) दिया जाता है। ऐसा प्रभावित वर्टिब्री के बीच बोन ग्राफ्ट या बोन ग्राफ्ट सब्सटिच्यूट को रखकर किया जाता है।
डॉ. हेगड़े ने कहा, ''इस मामले में हमने पीक (पीईईके) से बने तीसरी पीढ़ी (नवीनतम) के विशेष जोड़ों का इस्तेमाल किया क्योंकि यह भार वहन करने वाले इम्प्लांट की जैव अनुकूलता को बढ़ाता है। यह इम्प्लांट को हड्डी के अधिक अनुकूल बनाता है और यह धातु के इम्प्लांट की तुलना में डायग्नोस्टिक इमेजिंग के साथ अधिक सुसंगत है।
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