Header Ads Widget

We’re here to help you live your healthiest, happiest life.

गर्भाशय संबंधी विकार, इनकी होगी हार

आधुनिक दौर में व्यक्तिगत वजह (जैसे देर से शादी करना) और पर्यावरण से संबंधित कारणों से महिलाओं में गर्भाशय संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं। इन समस्याओं में गैर-कैंसरस ग्रंथियों जैसे फाइब्राॅइड्स और एडोनोमायोसिस के मामले बढ़ रहे हैं। अतीत में इस तरह की समस्याओं का एकमात्र इलाज हिस्टेरेक्टॅमी था। इसके तहत ऐसी पीड़ित महिलाओं के गर्भाशय को आपरेशन के जरिए निकाल दिया जाता था, जिनका परिवार पूरा हो चुका हो यानी जिनके बच्चे हो चुके हों। हमने गर्भाशय के विकारों को दूर करने के लिए एक नई चिकित्सा विधि विकसित की है, जिसे लैप्रोस्कोपिक ग्राॅस वेजिंग कहा जाता है।
नई प्रक्रिया के लाभ
परंपरागत हिस्टेक्टॅमी की तुलना में नई लैप्रोस्कोपिक ग्राॅस वेजिंग प्रक्रिया के कई फायदे हैं। जैसे इस प्रक्रिया में अंडाशय (ओवरी) को 30 से 60 फीसदी रक्त की आपूर्ति गर्भाशय की धमनियों के जरिये होती है। वहीं जिन महिलाओं की हिस्टेरेक्टॅमी होती है, उनमें अगर अंडाशय को बचा भी लिया जाता है, तब भी अंडाशय में रक्त की आपूर्ति घट जाती है। इस कारण समय से पूर्व रजोनिवृति (प्रीमैच्योर मेनोपाॅज) की आशंका रहती है। नतीजतन पीड़ित महिला में डिप्रेशन, पेशाब की थैली की समस्या, हड्डियों में कमजोरी, हृदय संबंधी समस्या और याददाश्त कमजोर होने का खतरा रहता है। इसके विपरीत ग्राॅस वेजिंग के जरिये ओवरी पर किसी तरह के असर के बगैर महिलाओं को गर्भाशय से संबंधित समस्या से छुटकारा पाने में मदद मिलती है। इस प्रक्रिया को लैप्रोस्कोपी के माध्यम से किया जाता है, जिससे मरीजों को कई राहतें मिलती हैं। ग्राॅस वेजिंग के दौरान गर्भाशय के सपोर्ट को छेड़ा नहीं जाता है जबकि हिस्टेरक्टॅमी के दौरान इस सपोर्ट को काट दिया जाता है। ग्राॅस वेजिंग के बाद गर्भाशय ग्रीवा सुरक्षित रहती है। इस कारण मरीज को ग्राॅस वेजिंग के कुछ समय बाद सेक्स से जुड़ी समस्या का सामना नहीं करना पड़ता।


Post a Comment

0 Comments