स्पास्मोडिक टोर्टिकोलिस वैसी बीमारी है जिसमें गर्दन एक तरफ झुक जाती है। इस समस्या के गंभीर होने पर मरीज चलने-फिरने में भी लाचार हो सकता है। इस बीमारी में गर्दन की जोड़ों में भी समस्या उत्पन्न हो सकती है और जोड़ बेकार हो सकते हैं।
इस बीमारी के कारणों के बारे में अभी तक ठीक से पता नहीं चला है। यह बीमारी कुछ परिवारों एवं जातीय समूहों में अधिक है। यह बीमारी वयस्क अवस्था में शुरू होती हैं। स्पास्मोडिक टोर्टिकोलिस की बीमारी से दस हजार में से एक व्यक्ति पीड़ित है। अमरीका में 83 हजार से अधिक लोग इससे पीड़ित हैं।
नई दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ न्यूरो एवं स्पाइन सर्जन डा.एस.के.सोगानी के अनुसार स्पास्मोडिक टोर्टिकोलिस तीन तरह की होती है। टोनिक- जब सिर एक तरफ झुक जाता है, क्लोनिक- जब सिर हिलता रहता है। मिश्रित- जब दोनों स्थितियां पैदा होती हैं।
गले की गतिशीलता संबंधी यह बीमारी मस्तिष्क की क्रियाशीलता में खराबी से जुड़ी हुयी है। यह बीमारी गले की मांसपेशियों के समय-समय या स्थायी तौर पर सिकुड़ने के कारण होती है। ये मांसपेशियां ही सिर की स्थिति को नियंत्रित करती हैं। इन मांसपेशियों में सिकुड़न के कारण सिर एक तरफ झुक जाता है। इसमें कंधे की स्थिति भी असामान्य हो सकती है। कुछ मरीजों को सिर या हाथों में थरथराहट या कंपन महसूस हो सकती है। कई बार मरीज को बहुत अधिक एवं तीव्र दर्द का अनुभव हो सकता है। स्पास्मोडिक टोर्टिकोलिस मरीज की क्रियाशीलता को प्रभावित कर सकती है लेकिन शरीर के अन्य अंगों को प्रभावित नहीं करती है। यह बीमारी एंक्जाइटी या तनाव के दौरान तीव्र हो जाती है। एक समय समझा जाता था कि यह मानसिक बीमारी है लेकिन यह दिमाग को प्रभावित नहीं करती है।
डा.सोगानी बताते हैं कि स्पास्मोडिक टोर्टिकोलिस संबंधी गतिशीलता कई बार सोने के दौरान भी उभर सकती है। लेकिन टहलने-घुमने के दस मिनट से चार घंटे के बाद यह गतिशीलता दूर हो सकती है। यही कारण है कि कई लोगों को पीठ के बल लेटने पर राहत मिलती है। चेहरे के पीछे सिर या ठुड्डी को छूने या दबाने से अस्थायी तौर पर स्पास्मोडिक टोर्टिकोलिस संबंधी गतिशीलता दूर हो सकती है। करीब 20 प्रतिशत मरीजों को बीमारी होने के पांच साल के बाद अचानक यह बीमारी दूर हो सकती है। यह बीमारी मध्यम वय के लोगों में ज्यादा सामान्य है।
नयी दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के अलावा अपोलो मिलेनियम अस्पताल में वरिष्ठ न्यूरो सर्जन के रूप में कार्यरत डा. सोगानी बताते हैं कि इस बीमारी का कोई निश्चित इलाज नहीं है। लेकिन आम तौर पर मरीजों का पहले दवाईयों से इलाज करने की कोशिश की जाती है। स्पास्मोडिक टोर्टिकोलिस होने पर कई मामलों में दवाईयों से लाभ होता है। कई बार दवाईयों से फायदा नहीं होने पर सिकुड़ने वाली मांसपेशियों में बोटोलिनस टाॅक्सिन नामक इंजेक्शन देने की जरूरत पड़ जाती है। इस प्रक्रिया को कीमोडिनर्वेशन कहा जाता है।
कुछ मरीजों को इंजेक्शन से भी फायदा नहीं होता है और ऐसी स्थिति में सर्जरी की मदद लेनी पड़ती है। इसके तहत गर्दन की क्रियाशीलता में बाधक बनने वाले नसों को काट दिया जाता है। इस बीमारी के उपचार के लिये सर्जरी के कई तरीकों का विकास हो चुका है। यह सर्जरी सलेक्टिव डिनर्वेटिव सर्जरी कहलाती है। यह सर्जरी अत्यंत ही जटिल होती है और इसे केवल कुशल एवं अनुभवी न्यूरोसर्जन से ही कराया जाना चाहिये। इसके इलाज के लिए बायोफिडबैक एवं इलेक्ट्रिकल स्टिमुलेशन की भी मदद ली जाती है। मरीज की जरूरत के अनुरूप सही तरीके का इस्तेमाल करने पर करीब 80 प्रतिशत मरीजों की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार होता है।
0 Comments: