गर्मियों में लोग पसीने और दुर्गंध से निजात पाने के लिए दुर्गंधनाशकों (डियोडेरेंट) का जमकर इस्तेमाल करते हैं। लेकिन इनका लगातार और असावधानी पूर्वक इस्तेमाल हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो सकता है।
दुर्गंधनाशकों में मुख्य तौर पर पसीने को रोकने वाले रसायन होते हैं जो त्वचा के रोम छिद्रों को बंद कर पसीना निकलने की प्रक्रिया को बाधित कर दुर्गंध को रोकते हैं। लेकिन रोम छिद्रों के बंद होने से शरीर के तरल विषाक्त पदार्थों के निष्कासन में रूकावट पहुंचती है। तरल विष सामान्यतः यकृत और त्वचा से निकलते हैं। लेकिन जब त्वचा से विषाक्त पदार्थ बाहर नहीं निकल पाते हैं तो त्वचा निस्तेज हो जाती है और यकृत अधिक कार्य करने लगता है जिससे यकृत संबंधी बीमारियों के हाने का खतरा बढ़ जाता है। पसीना निकलने से न सिर्फ त्वचा स्वस्थ रहती है बल्कि इससे रक्त में आक्सीजन की आपूर्ति करने और रक्त को शुद्ध करने में भी सहायता मिलती है। लेकिन जब त्वचा के रोम छिद्र बंद हो जाते हैं तो इससे शरीर की महत्वपूर्ण
गतिविधियां बाधित होती हैं और फेफड़ों को अधिक तनाव का सामना करना पड़ता है। दुर्गंधनाशक के अनवरत इस्तेमाल से त्वचा में एलर्जी भी हो सकती है और यह हमारे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है। ये विषैले पदार्थ रक्त में पहुंचकर रक्त को अशुद्ध कर देते हैं।
अमरीका के क्लिनिकल टाॅक्सिकोलाॅजी आफ काॅमर्शियल प्रोडक्ट के अनुसार सभी दुर्गंधनाशक विषैले होते हैं लेकिन इनमें विषाक्तता का स्तर भिन्न-भिन्न होता है। विषाक्तता पैमाने पर इसकी विषाक्तता आम तौर पर एक से छह तक होती है। एक स्तर की विषाक्तता सामान्य मानी जाती है जबकि छह स्तर की विषाक्तता घातक होती है। बाजार में उपलब्ध दुर्गंधनाशकों की विषाक्तता आम तौर पर दो से तीन होती है और ये अधिक घातक नहीं होती है लेकिन इनके अधिक समय तक लगातार इस्तेमाल से स्वास्थ्य को खतरा पहुंच सकता है।
दुर्गंधनाशक आमतौर पर क्रीम और पेंसिल या स्टिक के रूप में बाजार में उपलब्ध हैं। क्रीम दुर्गंधनाशक में मुख्य तौर पर आक्सीक्विनोलिन सल्फेट होता है जो एक जाना माना विषैला रसायन है और यह केन्द्रिय तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित करता है। इसके अलावा इसमें फार्मलडिहाइड होता है जिसका इस्तेमाल शव संलेपन में किया जाता है और यह भी विषाक्त होता है। जिंक सल्फोकार्बाेनेट भी एक जाना माना कृमिनाशक है इसमें एस्ट्रिंजेंट गुण होने के कारण इसका इस्तेमाल भी दुर्गंधनाशक में किया जाता है।
पेंसिल दुर्गंधनाशक में इन विषाक्त रसायनों के अलावा बेस बनाने के लिए पेट्रोलक्टम (पेट्रोलियम जेली का एक व्युत्पन्न) भी होता है। पेट्रोलक्टम त्वचा में जलन और त्वचा की कई बीमारियां पैदा करता है। पेंसिल दुर्गंधनाशक में सोडियम हाइड्रोक्साइड भी होता है जिसमें कास्टिक सोडा नामक रसायन भी होता है जिसका इस्तेमाल कपड़ा धोने के साबुन में किया जाता है। कास्टिक सोडा एक कड़ा क्षार है और यह वातावरण से भी नमी को सोख सकता है। इसके बहुत कम मात्रा में इस्तेमाल से भी त्वचा में जलन हो सकती है।
दुर्गंधनाशक बनाने के दौरान इन रसायनों के अलावा भी बेंजोइक अम्ल और क्लोरेट हाइड्रेट जैसे कई अन्य रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है। ये रसायन इतने विषैले होते हैं कि इनमें से किसी रसायन को यदि कोई बच्चा चख ले तो उसके शरीर में ऐंठन हो सकती है और उसकी जान भी जा सकती है। क्लोरेट हाइड्रेट बहुत ही अधिक क्षयकारी होता है और इसका इस्तेमाल धातुओं को मजबूत और कड़ा बनाने के लिए किया जाता है। इसे थोड़ा सा भी चखने पर बेहोशी हो सकती है।
गर्मी के मौसम में शरीर को झुलसाने वाली गर्मी के कारण दुर्गंधनाशक जल्दी वाष्पीकृत नहीं हो पाते और विषैले गैसों में तब्दील हो जाते हैं। ये न सिर्फ इसका इस्तेमाल करने वाले लोगों को हानि पहुंचाते हैं बल्कि उसके आसपास के लोगों के भी शरीर में ये गैसें सांस के जरिये पहुंचकर उतनी ही हानि पहुंचाते हैं।
दुर्गंधनाशक को पसीनारोधी भी माना जाता है लेकिन ये न तो सही मायने में पसीना को रोकते हैं और न ही दुर्गंध को ही रोक पाते हैं क्योंकि ये त्वचा के रोम छिद्रों को बंद कर पसीना निकलने के प्राकृतिक प्रवाह को ही बंद कर देते हैं। यही नहीं ये लाभदायी जावाणुओं को भी मार देते हैं। रोम छिद्रों के बंद हो जाने से शरीर से प्राकृतिक तेल भी बाहर नहीं निकल पाते हैं जो कि त्वचा को स्वस्थ बनाये रखने और कांति पैदा करने के लिए जरूरी है। इसके कारण मुंहासे और ब्लैक हेड्स की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
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