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हर्निया का माइक्रोस्कोपी उपचार

आधुनिक समय में लोगों में मोटापे की बढ़ती समस्या तथा व्यायाम एवं शारीरिक श्रम से बचने की बढ़ती प्रवृतियों के कारण हर्निया का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है। मोटापा तथा व्यायाम के कारण मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। जांघ के विशेष हिस्से की मांसपेशियों एवं लिगामेंट के बहुुत अधिक कमजोर हो जाने के कारण पेट (आंत) के हिस्से मांसपेशियों से होकर बाहर निकल जाते हैं। इसे ही हर्निया कहा जाता है। 

हर्निया के कारण 

सुप्रसिद्ध लैपरोस्कोपी सर्जन एसोसिएषन आफ सर्जन्स आफ इंडिया (एएसआई) तथा इंटरनेषनल कालेज आफ सर्जन्स की भारतीय षाखा के अध्यक्ष डा. नरेन्द्र कुमार पाण्डे बताते हैं कि हर्निया के जन्मजात कारण भी होते हंै। बच्चों में आम तौर पर जन्मजात कारणों से ही हर्निया होती है। कई मामलों में बचपन से ही हर्निया होती है लेकिन इसके लक्षण 23 से 30 साल के बीच उस समय उभरते हैं जब मांसपेशियां कमजोर हो जाती हंै। बच्चों एवं पुरुषों में जन्मजात अथवा अचानक वजन बढ़ने जैसे अन्य कारणों से होने वाली हर्निया जांघ में जांघिया वाले क्षेत्र (ग्रोइन एरिया) में ही होती है। पुरुषों में  अधिक उम्र में वजन में अचानक परिवर्तन के अलावा प्रोस्टेट की समस्या, खांसी, कब्ज और मूत्र त्यागने में दिक्कत जैसे कारणों से भी हर्निया होने की आशंका बढ़ती है क्योंकि इन कारणों से पेट पर अधिक जोर पड़ता है।  हर्निया की समस्या हालांकि पुरुषों एवं महिलाओं दोनों में पायी जाती है लेकिन पुरुषों में यह बीमारी महिलाओं की तुलना में तकरीबन आठ गुना अधिक व्यापक है। हर्निया के रोगियों को असहनीय कष्ट सहना पड़ता है। हर्निया के बहुत अधिक समय तक रहने के कारण आंत के फटने जैसी समस्या हो सकती है। 

हर्निया के उपचार की तकनीकें 

फरीदाबाद स्थित एषियन इंस्टीच्यूट आफ मेडिकल साइंसेज (ए आई एम एस) के चेयरमैन डा. पाण्डे बताते हैं कि हर्निया के इलाज के लिये एकमात्र उपाय आॅपरेशन है लेकिन अब लैपरोस्कोपी  की मदद से हर्निया का आॅपरेशन अत्यंत कष्टरहित एवं कारगर बन गया है। हर्निया के परम्परागत आॅपरेशन के तहत हर्निया को काट कर निकाल लिया जाता है लेकिन इस आॅपरेशन के साथ मुख्य समस्या यह है कि मरीज को आॅपरेशन के बाद औसतन डेढ़ महीने तक आराम करने की जरूरत होती है। यही नहीं इस आॅपरेशन के बाद दोबारा हर्निया होने की आशंका बनी रहती है। परम्परागत आॅपेरशन के बाद दोबारा हर्निया होने की आशंका करीब 20 प्रतिशत तक होती है। परम्परागत आॅपरेशन की तुलना में लीशटेंस्टियन रिपेयर नामक तकनीक अधिक कारगर है और इस तकनीक से आॅपरेशन करने पर आॅपरेशन के बाद दोबारा हर्निया होने की आशंका एक प्रतिशत से भी कम होती है। इस तकनीक के तहत कम से कम टांके लगाये जाते हैं और कमजोर मांसपेशियों पर एक विशेष नेट रोपित कर दिया जाता है। हालांकि इस तरीके से आॅपरेशन करने पर भी मांसपेशियों में चीर-फाड़ करने की जरूरत पड़ती है और मरीज को आॅपेरशन के दौरान कष्ट सहना पड़ता है और आॅपरेशन के बाद काफी समय तक विश्राम करना पड़ता है। 

राश्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के हाथों प्रतिश्ठित डा. बी सी राय पुरस्कार से सम्मानित डा. पाण्डे बताते हैं कि अब लैपरोस्कोपी आधारित सर्जरी के विकास के बाद हर्निया के आॅपरेशन के लिये मांसपेशियों में चीर-फाड़ करने की आवश्यकता समाप्त हो गयी है। 

डा. पाण्डे के अनुसार अब लैपरोस्कोपी का अधिक विकसित रूप माइक्रो लैपरोस्कोपी के रुप में सामने आया है। भारत में अब यह तकनीक कुछ गिने-चुने चिकित्सा केन्द्रों में उपलब्ध हो गयी है। इस नयी तकनीक के कारण हर्निया का आॅपरेशन और अधिक कष्टरहित एवं कारगर बन गया है। इसमें मरीज को उतना ही कष्ट होता है मानो उसे सुई चुभोई जा रही है। माइक्रोलैपरोस्कोपी आॅपरेशन के तहत मात्र पांच मिलीमीटर व्यास का चीरा लगाना ही पर्याप्त होता है। यही नहीं माइक्रोलैपरोस्कोपी आॅपरेशन के बाद टांके को हटाने की जरूरत नहीं पड़ती है। इस तरह दूर-दराज के मरीजों को दोबारा सर्जन के पास आने की जरूरत नहीं पड़ती। ऐसे मरीज स्थानीय चिकित्सक से ही चेकअप आदि करवा सकते हैं।

लैपरोस्कोपी सर्जरी के तहत किसी भी मांसपेशी को काटे या मांसपेशियों में चीर-फाड़ किये बगैर उदर के निचले हिस्से की त्वचा में मात्र आधे इंच का चीरा लगाकर मांसपेशियों के बीच अत्यंत पतली ट्यूब (कैनुला) प्रवेश करायी जाती है। इस ट्यूब के जरिये लैपरोस्कोप डाला जाता है। यह लैपरोस्कोप अत्यंत सूक्ष्म कैमरे से जुड़ा होता है। फाइबर आप्टिक तंतु के जरिये भीतर की तस्वीरों को परिवर्द्धित आकार में उससे जुड़े टेलीविजन के माॅनिटर पर देखा जा सकता है। टेलीविजन माॅनिटर पर तस्वीरों को देखते हुये इस पतली ट्यूब के रास्ते आधे इंच के व्यास वाली एक और पतली ट्यूब प्रवेश करायी जाती है। इस ट्यूब की मदद से हर्निया को हटाकर वहां एक विशेष जाली (नेट) फिट कर दी जाती है जिससे भविष्य में दोबारा हर्निया होने की आशंका समाप्त हो जाती है। 

हालांकि फिलहाल लैपरोस्कोपी आॅपरेशन परम्परागत आॅपरेशन की तुलना में दोगुना महंगा है क्योंकि इसके लिये जरूरी उपकरण विदेशों से आयातित होते हैं लेकिन लैपरोस्कोपी आॅपरेशन के बाद मरीज शीघ्र काम-काज करने लायक हो जाता है और उसे अधिक समय तक अस्पताल में नहीं रहना पड़ता है। लैपरोस्कोपी आॅपरेशन पर आम तौर पर 25 से 40 हजार रुपये का खर्च आता है। 

 

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