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कामकाजी महिलाओं में हृदय रोग का दोगुना खतरा

नये अध्ययनों से इस बात की पुश्टि हुयी है कि अधिक तनाव वाली नौकरी में कार्यरत महिलाओं में कम तनाव वाली नौकरी में कार्यरत महिलाओं की तुलना में दिल का दौरा सहित हृदय बीमारियों का खतरा 40 प्रतिषत तक बढ़ जाता है। इसके अलावा, असुरक्षित नौकरी और नौकरी खोने का डर भी महिलाओं में उच्च रक्त चाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल और मोटापा जैसे हृदय रोग के खतरे को बढ़ाता है। हालांकि दिल के दौरे, स्ट्रोक, दिल की इनवैसिव प्रक्रियाओं या हृदय रोग के कारण मौत का इससे सीधा संबंध नहीं है। नौकरी का तनाव एक प्रकार का मानसिक तनाव है, लेकिन इसका प्रभाव मानसिक के साथ-साथ षारीरिक रूप से भी पड़ता है।
अमेरिकन हार्ट असोसिएषन के वैज्ञानिक सत्र 2010 में पेष एक अनुसंधान के अनुसार बोस्टन के ब्रिघम एंड वुमेन्स हॉस्पीटल के सहायक फिजिषियन और इस अध्ययन के प्रमुख मिषेल ए. अल्बर्ट के अनुसार इस अध्ययन में महिलाओं में नौकरी से संबंधित तनाव का प्रभाव तत्काल और लंबे समय के बाद भी पाया गया। किसी भी महिला की नौकरी उसके स्वास्थ्य को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह से प्रभावित कर सकती है। इसलिए किसी भी कामकाजी महिला को यह मान कर चलना चाहिए कि नौकरी से संबंधित तनाव उसकी जिंदगी का एक हिस्सा है।
इस अध्ययन के तहत्् अनुसंधानकर्ताओं ने करीब साढ़े 17 हजार कामकाजी महिलाओं पर नौकरी से संबंधित तनाव का विष्लेशण किया। इन महिलाओं की औसत उम्र 57 वर्श थी और इन्हें नौकरी से संबंधित तनाव, नौकरी की असुरक्षा और हृदय रोग के रिस्क फैक्टर के बारे में जानकारी दी गयी। अनुसंधानकर्ताओं ने नौकरी से संबंधित तनाव के मूल्यांकन के लिए एक प्रष्नावली की मदद ली। इस प्रष्नावली में ''मेरी नौकरी में बहुत तेज काम करने की जरूरत है'', ''मेरी नौकरी में कठिन कार्य करने की आवष्यकता होती है'', ''मैं दूसरों की मांग को पूरा करने से स्वतंत्र हूं।'' जैसे सवाल पूछे गये। 
इनमें से 40 प्रतिषत महिलाओं में नौकरी से संबंधित अत्यधित तनाव पाया गया जिसकी परिणति दिल का दौरा, इस्कीमिक स्ट्रोक, कोरोनरी आर्टरी बायपास सर्जरी या बैलून एंजियोप्लास्टी और मौत के रूप में सामने आयी। इन महिलाओं में दिल के दौरा का खतरा 88 प्रतिषत पाया गया जबकि बासपास सर्जरी या इंवैसिव प्रक्रिया का खतरा करीब 43 प्रतिषत पाया गया। 
बोस्टन में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी सेंटर ऑन द डेवलपिंग चाइल्ड के पोस्टडॉक्टोरल रिसर्च फेलो और मुख्य अनुसंधानकर्ता नेटल स्लोपेन कहते हैं कि महिलाओं में काम की अधिक मांग और खुद पर कम नियंत्रण लंबे समय में हृदय रोग के खतरे को बढ़ाता है।
षोधकर्ताओं के अनुसार कुछ काम तो होते ही तनाव पैदा करने वाले हैं। मिसाल के तौर पर अगर एक ही काम को बार-बार करते रहना हो, तो उसमें नवीनता व उत्साह ही भावना नहीं रहती और काम करने वाला व्यक्ति बोरियत महसूस करने लगता है। 
जिन नौकरियों में षिफ्ट के हिसाब से काम होता है, वहां की समस्याएं तो अलग ही किस्म की होती है। यदि आप रात भर काम करते हैं और दिन में सोते हैं तो इससे आपके षरीर की स्वाभाविक अवस्था पर बुरा असर पड़ता है। यह समस्या तब और बढ़ जाती है जब थोड़े-थोड़े दिनों में षिफ्ट बदलनी पड़ती है। कार्यस्थल पर आपसी अनबन, ईर्श्या, प्रतिस्पर्धा तथा एक दूसरे के काम में मीन-मेख निकालने की आदत काम के साथ-साथ कर्मचारी के स्वास्थ्य पर भी असर डालती है। इसके अलावा बसों की धक्का-मुक्की, बॉस का नाराजगी, दफ्तर का षोरयुक्त वातावरण, ताजी हवा की कमी, काम का दबाव, वेतन में कटौती जैसे कई कारण हैं जिससे तनाव बढ़ता है।


सबसे चिंताजनक बात तो यह है कि जब महिला की नौकरी पुरुष की तुलना में अधिक समय और श्रमसाध्य होती है तब भी महिला को घर के सभी काम-काज करने पड़ते हैं और पति घर में आराम फरमाते हैं। आज भी ज्यादातर घरों में कामकाजी महिलायें दफ्तर से लौटने के बाद घर के काम- काज में जुट जाती हैं जिसके कारण उन्हें दोहरे तनाव का सामना करना पड़ता है।


घर और बच्चों को पूरा समय न दे पाने की वजह से उनमें ग्लानि की भावना पनपने लगती है। इन सबसे उनके स्वास्थ्य पर गहरा दुष्प्रभाव पड़ता है। इससे उनमें घबराहट, उदासीनता, थकावट और कई प्रकार की मानसिक और शारीरिक बीमारियां पैदा हो सकती हैं। किसी महिला के अधिक दिनों तक तनावग्रस्त रहने पर सिरदर्द, आधासीसी (माइग्रेन), कमर दर्द जैसी सामान्य बीमारियों से लेकर दमा, दाद-खाज, जोड़ों का दर्द, बदहजमी, दस्त लगना, कब्ज, नींद की गड़बड़ी, दिल की धड़कन बढ़ना, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, मधुमेह, कैंसर जैसी गंभीर समस्यायें भी पैदा हो सकती हैं।
     
ज्यादातर पुरुषों का मानना होता है कि महिलायें पेशागत काम करने तथा निर्णय लेने के मामले में पुरुषों के समान सक्षम नहीं होती हैं। पुरुषों के मन में महिलाओं के प्रति उक्त धारणा महिलाओं के समक्ष अनेक तरह की बाधायें खड़ी करती है। उक्त धारणा के कारण महिलायें आम तौर पर अपनी योग्यता और क्षमता के अनुरूप नौकरी या पद पाने से वंचित रह जाती हैं जिससे महिलाओं में कुंठा पैदा होती है। महिलाओं को असमान वेतन, पदोन्नति में देरी और सहकर्मियों के अभद्र व्यवहार जैसे भेदभाव का भी उसे सामना करना पड़ता है। नियोजकों के मन में भी महिलाओं की जो छवि होती है उससे भी कामकाजी महिलाओं के लिए समस्यायें उत्पन्न होती हैं। बराबर मेहनत करने पर भी उन्हें पुरुषों के मुकाबले कम तनख्वाह में गुजारा करना पड़ता है।


अल्बर्ट कहते है, ''सार्वजनिक स्वास्थ्य के नजरिये से नियोक्ताओं, संभावित रोगियों, सरकार और अस्पताल के कर्मचारियों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे कर्मचारियों के काम से संबंधित तनाव की निगरानी करें और नौकरी से संबंधित तनाव को कम करने के लिए पहल करें। इससे नौकरीपेषा लोगों में हृदय रोग में कमी लाने में मदद मिलेगी।''


 


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