कार्य स्थल पर यौन उत्पीड़न एवं यौन दुव्र्यवहार

  • by @ हेल्थ स्पेक्ट्रम
  • at November 19, 2019 -
  • 0 Comments

आज अधिक से अधिक महिलाएं घर से बाहर काम करने लगी हैं। घर से बाहर काम  करने वाली महिलाओं को सिर्फ दुर्घटनाओं का खतरा ही नहीं रहता है, बल्कि उन्हें यौन उत्पीड़न तथा यौन दुव्र्यवहारों का भी सामना करना पड़ता है। सन् 1990 में महिलाओं के विरुद्ध दर्ज किये गए कुल मामलों में से आधे मामले कार्यस्थल पर छेड़खानी और दुव्र्यवहार के थे। हालाँकि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न कोई नई चीज नहीं है। तकरीबन 60 फीसदी कामकाजी महिलाओं को अपनी कामकाजी जिंदगी में कभी न कभी यौन उत्पीड़न का शिकार होना ही पड़ता है। 


यौन उत्पीड़न का शिकार होने पर कुछ महिलाएं तो हो-हल्ला मचाती हैं, लेकिन कुछ चुप्पी साध लेती हैं। वे या तो नौकरी छोड़ देती हैं या तबादला करवा लेती हैं। सालों से, यौन उत्पीड़न कामकाजी महिलाओं की जिंदगी का एक अनिवार्य हिस्सा बना हुआ है। हालाँकि अब इस मामले में महिलाएं थोड़ी सचेत हो गई हैं और अधिकतर महिलाएं यौन उत्पीड़न को सहज रूप से स्वीकार नहीं करती हैं।


1997 में उच्चतम न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में कार्यस्थल पर महिलाओं के विरुद्ध यौन दुव्र्यवहार के खिलाफ एक मजबूत कदम उठाया था। यौन दुव्र्यवहार को 'अनैच्छिक यौन व्यवहार' (चाहे वह सीधे तौर पर हो या जबर्दस्ती) जिसमें शारीरिक स्पर्श, यौन संबंध के लिए माँग करना या अनुरोध करना, यौन इशारे, अश्लील साहित्य या फोटोग्राफ दिखाना और यौन प्रकृति वाले अनैच्छिक शारीरिक, मौखिक या गैर मौखिक व्यवहार' के रूप में परिभाषित किया गया।
 
कोर्ट ने शिकायत के निवारण और क्षति पूर्ति के लिए विस्तृत दिशानिर्देश भी जारी किया। राष्ट्रीय महिला आयोग ने कर्मचारियों के लिए इन दिशानिर्देशों को विस्तृत रूप से आचार संहिता के रूप में अपनाया है। राष्ट्रीय महिला आयोग ने जुलाई 1998 में व्यवस्थित और अव्यवस्थित निकायों में 1200 से अधिक महिलाओं के बीच सर्वेक्षण करने पर पाया कि इनमें से 50 प्रतिशत महिलाओं ने कार्य के दौरान लैंगिक भेदभाव या शारीरिक और मानसिक दुव्र्यवहार को झेला है। इनमें से 85 प्रतिशत महिलाओं ने उच्चतम न्यायालय के इस निर्णय के बारे में कभी सुना भी नहीं था। सिर्फ 11 प्रतिशत महिलाओं का कहना था कि उनके साथ यौन दुव्र्यवहार के मामले में वे कानून की मदद ले सकती हैं और उन्हें यह मालूम था कि यौन दुव्र्यवहार कानूनी रूप से दंडनीय है। 


राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस सर्वेक्षण में पाया कि व्यवस्थित निकायों की तुलना में अव्यवस्थित निकायों में महिलाएं यौन दुव्र्यवहार के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। सर्वेक्षण में यौन दुव्र्यवहार के अलावा 32 प्रतिशत महिलाओं ने वेतन, अवकाश, प्रोन्नति, कार्य वितरण और काम के घंटों में लैंगिक भेदभाव की बात कही।


प्रशासनिक सेवाओं में कार्यरत महिलाओं पर किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि ऐसी महिलाएं आॅफिसर का दर्जा हासिल होने के बाद भी यौन दुव्र्यवहार से सुरक्षित नहीं हैं। सर्वेक्षण में पाँच में से एक महिला आफिसर ने कहा कि उन्होंने अपने कैरियर में कई बार यौन दुव्र्यवहार का सामना किया। जिन महिला आॅफिसरों ने अपने बाॅस की यौन इच्छा का प्रतिरोध किया उन्हें कई तरीकों से दंड दिया गया, जैसे- उनके गोपनीय रिपोर्ट में गलत टिप्पणी लिखना, अनैच्छिक पदवी पर तबादला या उनके बारे में गलत बातें फैलाना। महिला आफिसरों को यह डर होता है कि ऐसी बातें होने पर लोग उनके बारे में ओछी बातें करेंगे और उनका उपहास करेंगे, इससे उनका कैरियर भी प्रभावित हो सकता है इसलिए आम तौर वे चुप रह जाती हैं।


यौन उत्पीड़न क्या है?
यौन उत्पीड़न को अत्यंत बारीकी से अभिव्यक्त किया गया है जिसमें अभद्र इशारे या व्यंग्य, असंगत यौन इशारे, डेट्स का प्रस्ताव या यौन प्रोत्साहन शामिल है। स्पष्ट इशारों में बुरी नजर से देखना, चिकोटी काटना, पकड़ना, आलिंगन करना, थपथपाना, स्पर्श करना आदि शामिल है। 


उच्चतम न्यायालय केे यौन उत्पीड़न से संबंधित दिशानिर्देश में शारीरिक संबंध, यौन संबंध के लिए माँग या अनुरोध करना, अश्लील फोटो या अश्लील साहित्य दिखाना या आपत्तिजनक व्यवहार करना शामिल है। यौन उत्पीड़न का मामला तब और गंभीर हो जाता है जब यह व्यक्ति के रोजगार की शर्त बन जाता है, व्यक्ति की कार्य क्षमता को प्रभावित करने लगता है या कार्यस्थल के वातावरण को प्रतिकूल बना देता है। यौन उत्पीड़न के मामले अक्सर सीनियर, सहयोगी या ग्राहकों के द्वारा पैदा किए जाते हैं। 


कार्यस्थल क्या है?
किसी भी क्षेत्र का वैसा कार्यस्थल जहाँ कर्मचारी को प्रतिनिधित्व करने, किसी कार्य को कार्यान्वित करने, किसी ड्यूटी का पालन करने या अमल में लाने, दायित्व निभाने या अपनी सेवा उपलब्ध कराने जैसे कार्य करने पड़ते हैं, इसमें शामिल हैं। इस तरह एक घरेलू नौकरानी के लिए एक घर उसका कार्यस्थल होगा। फील्ड जाॅब वाली महिला के लिए अपने कार्य के दौरान वह जहाँ-जहाँ जाती है, उसका कार्यस्थल होगा।


यौन उत्पीड़न के कुछ महत्वपूर्ण मामले
कार्य स्थल पर यौन उत्पीड़न का एक गंभीर मामला शहनाज मुदभटकल का है। यह प्रभावशाली महिला सऊदी अरबियन एयरलाइन्स में होस्टेस के रूप में काम करती थी। उसने अपने सीनियर की सेक्स की माँग को पूरा करने से मना कर दिया, इसलिए उसे सऊदी अरबियन एयरलाइन्स की नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। लेकिन शहनाज ने हार नहीं मानी। इसके लिए उसने 11 साल तक लड़ाई लड़ी। वर्ष 1997 में उसकी नौकरी को 1985 से ही लगातार प्रभावी माना गया और उसे पूरे वेतन से नवाजा गया। लेकिन दुर्भाग्य से, एयरलाइन्स ने बम्बई उच्च न्यायालय में अपील किया और उसका स्टे स्वीकृत हो गया।


हालाँकि, यह इस तरह का अकेला मामला नहीं है। वर्ष 1994 में, दूरदर्शन (हैदराबाद) की प्रोड्युसर सैलजा सुमन ने डायरेक्टर पी एल चावला को मानहानि, अनुचित डाँट-डपट और मर्यादा हनन की कोशिश के मामले में कोर्ट में घसीटा। उसने मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट के दो अलग-अलग मामले में केस फाइल किए, लेकिन दुर्भाग्य से, सुमन का तबादला लखनऊ कर दिया गया।


एक अन्य मामले में, केन्द्रीय रेल मंत्रालय में स्टेनो के पद पर कार्यरत नूतन शर्मा ने चीफ आपरेटिंग मैनेजर के सेक्रेटरी आर.पी. शर्मा के खिलाफ छेड़खानी की शिकायत की और उसका तबादला कर दिया गया।


आलिशा चिनाय ने म्यूजिक कंपोजर अनु मलिक के खिलाफ यौन उत्पीड़न के मामले की याचिका दायर कर 26 लाख 60 हजार की माँग की और अनु मलिक ने इस मानहानि की याचिका पर दो करोड़ का जुर्माना भरा। लेकिन यौन उत्पीड़न के मामले में जिम्मेदार व्यक्ति को सबक सिखाने का सबसे जाना-माना मामला रूपन देयोल बजाज और के.पी.एस. गिल का है। 


कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को नियंत्रित करने के लिए दिशानिर्देश
यौन उत्पीड़न संविधान के अनुच्छेद 15 के तहत 'लिंग समानता' और 'जिंदगी जीने की स्वतंत्रता' के मूल अधिकार का उल्लंघन है। (यह अनुच्छेद धर्म, प्रजाति, जाति, सिद्धांत या लिंग के आधार पर असमानता को रोकता है)
इस अधिकार को ध्यान में रखते हुए उच्चतम न्यायालय ने 12 दिशानिर्देश जारी किए हैं और इसे कानूनी मान्यता दी है। यह निर्णय खंड पीठ द्वारा लिया गया कि कार्यस्थल पर लिंग समानता और यौन उत्पीड़न के खिलाफ गारंटी के मूल मानवीय अधिकार को प्रभावशाली ढंग से लागू किया जाए। ये दिशानिर्देश तब तक जारी रहेंगे जब तक कि ये कानून अधिनियम न बन जाएं। 


कुछ मुख्य दिशानिर्देश
— कार्यस्थल या अन्य संस्थानों में यौन उत्पीड़न को रोकने या इसका निवारण करने की जिम्मेदारी नियोक्ता या अन्य जिम्मेदार व्यक्तियों की होगी और वे यौन उत्पीड़न के समाधान, व्यवस्थापन या अभियोजन की व्यवस्था उपलब्ध कराए।
— यौन उत्पीड़न की शिकायत पर नियोक्ता को तत्काल कानूनी कार्रवाई करनी होगी। 
अपराधी चाहे तो नियोक्ता के सामने अपना तबादला कराने का विचार रख सकता है। 
— शिकायत की प्रक्रिया संगठन की ओर से होनी चाहिए। शिकायत की प्रक्रिया ऐसी होनी चाहिए जिससे शिकायतकर्ता आश्वस्त हो जाए कि इसमें अधिक समय नहीं लगेगा। शिकायत समिति का नेतृत्व कोई महिला करे और उसके आधे से अधिक सदस्य महिलाएं होनी चाहिए। उनके ऊपर किसी तरह का दबाव न डाला जाए या ऊँचे स्तर पर या किसी तीसरी पार्टी के द्वारा उन्हें प्रभावित करने की कोशिश न की जाए। शिकायत समिति में विशेषकर यौन उत्पीड़न के बारे में पूरी जानकारी रखने वाले गैर सरकारी संगठन शामिल हो सकते हैं। 
— समिति द्वारा सरकार को वार्षिक रिपोर्ट अवश्य सौंपना चाहिए। कर्मचारी यौन उत्पीड़न का मामला विभिन्न स्तर से उठा सकता है।
— जहाँ यौन उत्पीड़न का मामला संदेह से परे साबित हो जाए वहाँ भी न्यायिक कार्यवाही की पहल के लिए दिशानिर्देश उपलब्ध कराए गए हैं। 


क्या है नियोक्ता की जिम्मेदारी
नियोक्ता कर्मचारियों के उचित माहौल में काम करने के लिए स्वास्थ्य, कार्य, अवकाश और स्वच्छता जैसे अच्छे वातावरण पैदा करने के लिए जिम्मेदार होता है। जब पीड़ित व्यक्ति नियोक्ता से शिकायत करता है तो नियोक्ता का यह दायित्व है कि वह उस मामले की सही तरीके से जाँच-पड़ताल कराए। यदि नियोक्ता शिकायतकर्ता की शिकायत पर ध्यान नहीं देता है तो इसका अर्थ वह अपने दायित्व का निर्वाह नहीं कर रहा है। नियोक्ता को कंपनी के हर विभाग में एक शिकायत प्रक्रिया की स्थापना करनी चाहिए। उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देश केंद्र और राज्य सरकारों तथा निजी और सार्वजनिक निकायों पर भी लागू होती है। यदि नियोक्ता इसका पालन नहीं करता है तो उसे अदालत की अवमानना के लिए समादेश याचिका का सामना करना पड़ सकता है। 


क्या कर सकती हैं महिलाएं
— महिलाओं को सहन करने की आदत को छोड़नी होगी। महिलाओं को खुद से यह कहना बंद करना होगा कि ऐसा व्यवहार पुरुषों के स्वभाव का हिस्सा है और महिलाओं को इस पर ध्यान नहीं देना चाहिए। 
— किसी पुरुष द्वारा पहली बार ऐसा व्यवहार करने पर ही उसका पूरी तरह से विरोध करना चाहिए। यदि महिलाएं इसका जोरदार तरीके से विरोध नहीं करेंगी तो अपराधी यह मान लेगा कि इसमें उनकी सहमति है। 
— अपने साथ अशोभनीय व्यवहार के लिए, महिलाओं को चाहिए कि अपनी ओर आकर्षित करने के लिए या उनका ध्यान अपनी ओर करने के लिए पुरुषों को प्रोत्साहित न करें। हर समय अपना आत्मसम्मान बनाए रखें।
— कार्य के वातारवरण को उचित बनाए रखने के लिए ढँग के कपड़े पहनें।
— यदि कोई व्यक्ति किसी महिला के साथ ऐसा व्यवहार करता हो जिससे उन्हें असुविधा महसूस करती हो, तो उसका पुरजोर विरोध करना चाहिए ताकि अन्य लोग भी यह जान सकें कि आपको ऐसे आचरण पसंद नहीं हैं।
— अपराधी प्रवृत्ति के व्यक्तियों से थोड़ी दूरी बनाकर रखनी चाहिए।
— इस तरह की घटना की रिपोर्ट पुलिस स्टेशन में अवश्य दर्ज करानी चाहिए।



घरेलू श्रम के बोझ से दबी लड़कियाँ 
सरकारी आँकड़ों के आधार पर लड़कियों पर कार्य के बोझ का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। पिछली जनगणना के अनुसार स्कूल जाने वाली बहुत कम लड़कियाँ ही श्रमिक के रूप में दर्ज थीं। यह संख्या सबसे अधिक आंध्रप्रदेश में थी जहाँ पाँच से 14 साल उम्र की हर दसवीं लड़की मेहनताना लेने वाली श्रमिक के रूप में दर्ज थी। इस आँकड़े में 5-14 साल उम्र वाली आंध्रप्रदेश में 10.54 प्रतिशत लड़कियाँ, बिहार में 2.93 प्रतिशत, कर्नाटक में 8.71 प्रतिशत, 
मध्यप्रदेश में 8.56 प्रतिशत, राजस्थान में 7.88 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 2.46 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में 2.68 प्रतिशत लड़कियाँ श्रमिक के रूप में दर्ज थीं। लड़कियों की दुःखभरी व्यथा यहीं खत्म नहीं होती है। सन् 1991 की जनगणना में 5 करोड़ 20 लाख से अधिक ऐसी लड़कियाँ दर्ज हैं जो न तो स्कूल जा रही हैं और न ही वेतनभोगी श्रमिक हैं। तब सवाल यह उठता है कि ये गुमनाम लड़कियाँ कौन हैं? ये कहाँ छिपी हैं? इनमें से अधिकतर लड़कियाँ घरों में काम करती हैं या असंगठित निकायों में काम करती हैं। इनका काम युवा महिलाओं की तरह ही अदृश्य और अमूल्याँकित रहता है। इन लड़कियों का कोई बचपन नहीं होता और मौजदा कानून इन्हें बाल श्रम से सुरक्षा प्रदान नहीं करता।


Join as an Author

Health Spectrum

Health Spectrum welcomes unsolicited articles, blog posts and other forms of content. If you are interested in writing for us, please write to us at healthspectrumindia@gmail.com.

0 Comments: