मुंबई स्थित टाटा मेमोरियल सेंटर (टीएमसी) ने हाल ही में संसद की स्थायी समिति को बताया कि हर साल करीब छह करोड भारतीय कैंसर जैसी बीमारी के कारण गरीबी रेखा से नीचे चले जाते हैं। टीएमसी ने कहा कि यह जानलेवा बीमारी पूर्वोत्तर के राज्यों के लोगों के लिए एक भारी आर्थिक बोझ साबित हो रही है जो बेहतर इलाज के लिए ट्रेन से तीनचार दिन का सफर तय कर के टीएमसी आते हैं।
देश में कैंसर के इलाज की सुविधाओं को लेकर निराशाजनक तस्वीर पेश करते हुए टीएमसी ने समिति से कहा 'इस मसले (कैंसर के इलाज) से निपटने में मौजूदा बुनियादी सुविधाएं पर्याप्त नहीं हैं। यहां तक कि आयुष्मान भारत के पिछले एक साल के रिकॉर्ड को हमने देखा और पाया कि कैंसर के इलाज में दो तिहाई निजी क्षेत्र की भागीदारी रिपोर्ट है जिसका परिणाम यह है कि भारत की छह करोड़ की आबादी गरीबी रेखा से नीचे चली जाती है क्योंकि कैंसर के इलाज का खर्चा भारी भरकम है। राज्यसभा सदस्य जयराम प्रौद्योगिकी रमेश की अध्यक्षता वाले पैनल ने यह रिपोर्ट सौंपी है।
रिपोर्ट में टीएमसी के प्रतिनिधियों के बयान का हवाला काफी विस्तृत में दिया गया है। टीएमसी देश के 11 संस्थानों में से एक है जिसे केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत आने वाले परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) द्वारा मदद दी जाती है। यह देश में कैंसर के इलाज और शोध में शामिल है।
टीएमसी ने बताया कि पूरे देश में स्वास्थ्य सुविधाओं के असमान वितरण के कारण मरीजों को कैसे आर्थिक, शारीरिक और मानसिक परेशानियों का सामना करना पडता है। कैंसर के इलाज में देश के इस अग्रणी केंद्र ने छह महीने के दौरान पूरे देश से इलाज के लिए संस्थान में आने वाले 75,000 कैंसर मरीजों की जियो टैगिंग की और पाया कि इसमें पूर्वोत्तर से आने वाले मरीजों की संख्या सबसे ज्यादा है उसके बाद उत्तर और पर्व भारत का स्थान है। टीएमसी प्रतिनिधियों के मुताबिक अरुणाचल प्रदेश से मुंबई का सफर दो से तीन दिन का होता है। यह मरीजों पर आर्थिक बोझ भी डालता है क्योंकि आमतौर पर वे अपने परिवार के एक सदस्य के साथ आते हैं। इससे पूरे परिवार के जीविकोपार्जन पर असर पड़ता है। टीएमसी ने कहा, 'हमें यह भी कहना है कि स्वास्थ्य सुविधा पर कुल खर्च का करीब दो तिहाई जेब से जाता है, जो निजी खर्च होता है और केवल एक तिहाई सरकारी मदद होती है और यह तब और कम हो जाता है जब इलाज निजी क्षेत्र में हो। कैंसर पर शोध कर रही अंतरराष्ट्रीय एजेंसी ग्लोबोकैन के मुताबिक भारत में 2018 में कैंसर के 13 लाख मामले सामने आए हैं, जो 2035 में बढ़कर 17 लाख तक हो जाएंगे। कैंसर के बढ़ते मामलों से चिंतित पैनल ने केंद्र को सलाह दी है कि इसके इलाज के लिए राज्य और जिले में केंद्र स्थापित किए जाए। समिति ने पूर्वोत्तर में बड़ी संख्या में कैंसर के मरीजों पर चिंता जताई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति के कारण संवाद की कमी और कैंसर केंद्रो तक पहुंच न हो पाने के कारण यह समस्या लगातार बनी हुई है।
कैंसर ने एक साल में छह करोड़ लोगों को किया बर्बाद
~ ~
SEARCH
LATEST
6-latest-65px
POPULAR-desc:Trending now:
-
- Vinod Kumar मस्तिष्क में खून की नसों का गुच्छा बन जाने की स्थिति अत्यंत खतरनाक साबित होती है। यह अक्सर मस्तिष्क रक्त स्राव का कारण बनती ह...
-
विनोद कुमार, हेल्थ रिपोर्टर वैक्सीन की दोनों डोज लगी थी लेकिन कोरोना से बच नहीं पाए। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक...
-
INDIAN DOCTORS FOR PEACE AND DEVELOPMENT An international seminar was organised by the Indian Doctors for Peace and Development (IDPD) at ...
-
अत्यधिक प्रतीक्षित इंडो इंटरनेशनल फैशन कार्निवल एंड अवार्ड्स सीजन 2: मिस, मिसेज और मिस्टर स्टार यूनिवर्स ने एक शानदार लोगो लॉन्च इवेंट के सा...
-
The woman in the picture with a smile is Salwa Hussein !! She is a woman without a heart in her body. She is a rare case in the world, as...
Featured Post
Air Pollution Fuels Alarming Rise in Childhood Asthma Cases (On World Asthma Day - 6 May)
- Vinod Kumar, Health Journalist In a month, 3-4 kids, aged 6-10, report symptoms like frequent coughing, breathlessness during play, dis...
