विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) का अनुमान है कि भारत में हृदय रोगों से मरने वालों की संख्या सन् 2015 तक दोगुनी हो जायेगी। आज न केवल बुजुर्ग बल्कि युवा लोग भी इसके ग्रास बन रहे हैं। यहां तक कि आज महिलायें भी इसका शिकार बन रही हैं जबकि एक समय वे हृदय रोगों से मुक्त मानी जाती थीं।
भारत में जेनेटिक कारणों के अलावा आधुनिक जीवन शैली एवं खान-पान के तौर-तरीके में बदलाव आने तथा तनाव बढ़ने के कारण तेजी से बढ़ रहे हृदय रोग चिकित्सकों के लिये चुनौती बने हुये हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि अनेक कारणों से दक्षिण एशियाई लोगों को खास तौर पर भारतीय लोगों को अधिक हृदय रोग होते हैं। अमरीका, ब्रिटेन, सिंगापुर और अफ्रिकी देशों समेत विश्व के विभिन्न देशों में बसे भारतीय लोगों में अन्य समूहों की तुलना में हृदय रोगों का प्रकोप सबसे अधिक पाया जाता है।
हमारे देश में हर साल तकरीबन 25 लाख लोग दिल के दौरे के कारण असामयिक मौत के ग्रास बन रहे हैं। इनमें से तकरीबन पांच लाख लोगों की मौत अस्पताल पहुंचने से पहले ही हो जाती है। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि अपने देश में युवा लोग भी बड़े पैमाने पर इससे प्रभावित हो रहे हैं। इसका एक प्रमुख कारण जेनेटिक भी है। जाहिर है कि भविष्य में हमारा पाला जिस महामारी से पड़ने वाला है वह और कोई नहीं हृदय रोग ही है। आने वाले समय में हृदय रोग सबसे बड़ा हत्यारा बनने वाला है। इसके चपेट में आकर भारी संख्या में लोग या तो काल के ग्रास बनेंगे या शारीरिक तौर पर अक्षम बन जायेंगे। ऐसे में हृदय रोगों के हमले से बचने के लिये समय रहते एक कारगर रणनीति बनाने की आवश्यकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में संक्रामक रोगों का प्रकोप घटने वाला है लेकिन जीवन शैली से जुड़े रोगों खास तौर पर हृदय रक्त वाहिका रोगों एवं कैंसर का प्रकोप बढ़ने वाला है। आने वाले समय में हृदय रोगों से न केवल बुजुर्ग बल्कि युवा वर्ग के लोग भी प्रभावित होंगे।
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