मनोचिकित्सकों ने साइकोलॉजिकल फर्स्ट एड (पीएफए) को बढ़ावा देने का किया आहवान

  • by @ हेल्थ स्पेक्ट्रम
  • at November 16, 2019 -
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मनोचिकित्सकों ने साइकोलॉजिकल फर्स्ट एड को बढ़ावा देने का आहृवान करते हुए कहा कि जिस तरह से शरीर में चोट लगने पर या अन्य बीमारी होने पर तत्काल फर्स्ट एड लेने की जरूरत होती है उसी तरह से मन को चोट लगने पर, मानसिक संकट या मनोवैज्ञानिक समस्या होने पर साइकोलॉजिकल फर्स्ट एड की जरूरत होती है ताकि मानसिक समस्या गंभीर नहीं हो और उसका समय रहते इलाज हो सके।


मनोचिकित्सकों ने कहा कि साइकोलॉजिक फर्स्ट एड की मदद से हजारों जानें बचाई जा सकती हैमिसाल के तौर पर तनाव (स्ट्रेस), डिप्रेशन और एंग्जाइटी जैसी मानसिक समस्याएं बहुत ही सामान्य है लेकिन अगर ये गंभीर रूप धारण कर ले और इनका इलाज नहीं हो तो ये आत्महत्या का भी कारण बन सकती हैं। एक अनुमान के अनुसार हमारे देश में हर साल करीब एक लाख लोग आत्महत्या करते हैं जबकि इससे अधिक संख्या में लोग ताउम्र मानसिक समस्याओं को झेलते रहते हैं।


नई दिल्ली के फोर्टिस-एस्कार्ट हार्ट इंस्टीच्यूट के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. मनु तिवारी ने कहा कि मन को लगी चोट या मानसिक बीमारी समुचित इलाज नहीं होने पर गंभीर रूप धारण कर सकती है और इसकी भयावह परिणति आत्महत्या के रूप में भी हो सकती है।


वरिष्ठ मनोचिकित्सक एवं कास्मोस इंस्टीच्यूट आफ मेंटल हेल्थ एंड बिहैवियरल साइंसेस के निदेशक डा. सुनील मित्तल ने कहा कि हमारे समाज में मानसिक समस्याओं एवं बीमारियों को लेकर व्यापक पैमाने पर भ्रांतियां और अंधविश्वास कायम है जिसके कारण मनोरोगियों का समुचित इलाज होने एवं देखरेख होने की बजाए समाज एवं परिवार के लोग उनकी या तो अनदेखी करते हैं या उनके साथ भेदभाव करते हैं जिससे मरीज की मानसिक समस्या बढ़ती जाती है और कई बार इतनी गंभीर हो जाती है कि मरीज आत्महत्या कर लेता है।


जीवन अनमोल हास्पीटल के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. अजय डोगरा ने कहा कि साइकोलॉजिक फर्स्ट एड की मदद से मरीज तनाव, डिप्रेशन और एंग्जाइटी जैसी मानसिक समस्याओं से उबर सकता है। बच्चे विशेष कर तनाव के शिकार होते हैं, खास तौर पर परीक्षा के समय। बच्चों पर माता-पिता और शिक्षकों की अत्यधिक महत्वाकांक्षाओं के कारण परीक्षा में अच्छे नम्बर लाने का बहुत अधिक दवाब होता है और कई बार जब वे परीक्षा में अच्छे नम्बर नहीं ला पाते हैं तो आत्महत्या तक कर लेते हैं


कास्मोस की मनोचिकित्सक डा. शोभना मित्तल ने कहा कि मानसिक समस्याओं से ग्रस्त लोगों को रिश्तेदार, दोस्त या सहपाठी/सहकर्मी द्वारा मानसिक सहायता दी जा सकती है लेकिन बेहतर यह है कि मनोचिकित्सकों की मदद ली जाए ताकि समस्या का समय पर समुचित समाधान हो सके।


डॉ. तिवारी ने बताया कि अक्सर परिवार के लोग मानसिक बीमारियों के लक्षणों से अनजान होते हैंउन्होंने बताया कि अगर आपको या आपके परिजनों में से किसी को नींद नहीं आती हो, भूख नहीं लगती हो, उदासी या हीनता की भावना हो, बात-बात पर शक करने की प्रवृति हो, शराब/अफीम/ स्मैक आदि


का नशा हो, घबराहट या बेचैनी होती हो, अत्यधिक गुस्सा आता हो अथवा बहकी-बहकी बातें करते हों तो मनोचिकित्सक से मदद ली जानी चाहिए। अगर बच्चे बहुत अधिक चंचल हों या उनका पढ़ाई में ध्यान नहीं लग पा रहा हो तो भी मनोचिकित्सक से सलाह ली जानी चाहिए।


डा. डोगरा ने कहा कि अगर मानसिक समस्या से ग्रस्त व्यक्ति को साइकोलॉजिकल फर्स्ट एड मिले तो वे अपने को बेहतर और सुरक्षित महसूस करेंगे। उनके मन को शांति मिलेगी तथा मन में उम्मीद जागेगी। वे अपने को समाज एवं परिवार से जुड़ा हुआ महसूस करेंगेवे अपनी भावनाओं पर बेहतर तरीके से नियंत्रण कर सकेंगे और खुद की मदद के लिए खुद को सक्षम पाएंगे।


 


 


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