कड़ाके की ठंड हमारी सेहत पर कहर ढा रही है। पिछले दिनों पारे में हुयी रेकार्ड गिरावट उच्च रक्त चाप, दिल की बीमारियों, मधुमेह और जोड़ों की समस्याओं से ग्रस्त मरीजों के लिये आफत साबित हुयी। पिछले दिनों की कड़ाके की ठंड के दौरान छाती में दर्द अथवा भारीपन और सांस लेने में दिक्कत जैसी शिकायतें लेकर अस्पताल आने वाले मरीजों की संख्या में भारी इजाफा देखा गया।
हृदय रोग विशेषज्ञों के अनुसार अधिक ठंड दिल के मरीजों के लिये घातक साबित हो सकती है। वैसे तो हर साल का जाड़ा दिल के मरीजों के लिये खतरनाक होता है लेकिन इस साल देश के अनेक इलाकों में पारे के शून्य के आसपास पहुंच जाने के कारण दिल के दौरे, उच्च रक्त चाप, रक्त वाहिनियों की बीमारियों और मधुमेह के प्रकोप में करीब 20 फीसदी की वृद्धि हुयी है।
जाड़े के दिनों में हाइपोथर्मिया, उच्च रक्त चाप, मधुमेह, दमा तथा दिल के दौरे के कारण हर साल लाखों लोगों की मौत हो जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार सर्दियों में न केवल तेज ठंड से उत्पन्न हाइपोथर्मिया, उच्च रक्त चाप, दिल के दौरे, दमा और मधुमेह के कारण असामयिक मौत की घटनायें कई गुना बढ़ जाती हैं। हमारे देश में हर साल ऐसी मौतों की संख्या लाखों में होती हैं। अधिक ठंड के कारण फ्लू जैसी बीमारियां निमोनिया और ब्रोंकाइटिस आदि में तब्दील हो सकती हैं।
हृदय और मस्तिष्क के स्ट्रोक
प्रमुख ह्रदय रोग चिकित्सक तथा नौएडा स्थित मैट्रो हास्पीटल्स एंड हार्ट इंस्टीच्यूट्स के चेयरमैन डा. पुरुषोत्तम लाल ने राष्ट्रीय सहारा के साथ विशेष बातचीत में बताया कि जाड़े के दिनों में अधिक ठंड के कारण ह्रदय के अलावा मस्तिष्क और शरीर के अन्य अंगों की धमनियां सिकुड़ती हैं जिससे रक्त प्रवाह में रूकावट आती है और रक्त के थक्के बनने की आशंका अधिक हो जाती है। ऐसे में न केवल ह्रदय के, बल्कि मस्तिष्क और शरीर के अन्य अंगों में पक्षाघात/स्ट्रोेक पड़ने के खतरे अधिक होते हैं।
दिल का दौरा
गर्मियों में तापमान 35 डिग्री सेल्शियस के आसपास होता है जो जाड़े में घट कर 10 डिग्री सेल्शियस से भी कम हो जाता हैं। जाड़ों में तापमान कम होने के कारण शरीर से कम पसीने और कम लवण निकलते हैं लेकिन हम जाड़े के दिनों में भी गर्मियों की तरह ही पर्याप्त मात्रा में नमक लेते हैं। शरीर से कम नमक निकलने के कारण भी रक्त क्लाॅट बनने की प्रक्रिया तेज हो जाती है। हालांकि शरीर से कम लवण के बाहर आने से सामान्य ह्रदय को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है, लेकिन कमजोर ह्रदय वाले लोगों और खास कर उन्हें जिन्हें पहले दिल के दौरे पड़ चुके होते हैं, दोबारा दिल के दौरे पड़ने के खतरे बढ़ जाते हैं।
डा. लाल बताते हैं कि जाड़ों में दिल के दौरे पड़ने की आशंका बढ़ने का एक कारण यह भी है कि जाड़ों में श्वसन संबंधी संक्रमण अधिक होते हैं। इन संक्रमणों के कारण रक्त नलिकाओं में सूजन पैदा होती है और उनमें होने वाले रक्त प्रवाह में रूकावट आती है।
रक्त चाप
जाड़ों में मांसपेशियों में खिंचाव आता है जिससे रक्त नलिकायें संकरी हो जाती हैं और हृदय के अलावा शरीर के अन्य अंगों में रक्त आपूर्ति बाधित होती है। इससे रक्त चाप भी बढ़ता है और बढ़ा हुआ रक्त चाप दिल के दौरे की आशंका को बढ़ाता है। इस तरह यह सिलसिला चलता रहता है। यह देखा गया है कि जिन लोगों को रक्त दाब अधिक होते हैं, उन्हें जाड़ों में दिल के दौरे पडने के खतरे अधिक होते हैं।
मधुमेह
दिल्ली डायबेटिक रिसर्च सेंटर के अध्यक्ष डा. अशोक कुमार झिंगन के अनुसार जाड़ों में मधुमेह के मरीजों को दिल के दौरे पड़ने की आशंका अधिक रहती है। जाड़ों में काफी लोग अधिक मात्रा में शराब, निकोटिन और मादक द्रव्यों का सेवन करते हैं, इससे भी शरीर की रोग प्रतिरक्षण क्षमता घटती है और विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त होने के खतरे बढ़ते हैं।
हाइपोथर्मिया
जाड़ों में काफी लंबे समय तक ठंड के संपर्क में रहने पर हाइपोथर्मिया होने का खतरा बहुत अधिक होता है। हाइपोथर्मिया में शरीर का तापमान बहुत अधिक गिर जाता है। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब शरीर अपने तापमान को सामान्य बनाये रखने के लिये पर्याप्त ऊर्जा पैदा कर नहीं पाता। हाइपोथर्मिया की स्थिति में दिल के दौरे पड़ने पर मौत होने की आशंका बहुत अधिक होती है।
हाइपोथर्मिया का खतरा एक साल से कम उम्र के बच्चों तथा बुजुर्गों को बहुत अधिक होता है। अनुमान है कि जब कभी भी तापमान सामान्य से एक डिग्री सेल्षियस घटता है तब आठ हजार और बुजुर्ग मौत के हवाले हो जाते हैं।
हाइपोथर्मिया के कारण मौत का षिकार होने वालों में ज्यादातर लोग मानसिक रोगी, दुर्घटना में घायल लोग, मधुमेह, हाइपोथाइराइड, ब्रांेकोनिमोनिया और दिल के मरीज तथा शराब का अधिक सेवन करने वाले होते हैं।
बेघर लोगों तथा ठंड से बचाव की सुविधाआंे से वंचित लोगों को हाइपोथर्मिया से मौत का खतरा अधिक होता है। पर्वतारोहियों को अत्यधिक ठंड से प्रभावित होने का खतरा अधिक होता है, लेकिन आम तौर पर पर्वतारोही ऐसी आपात स्थिति की तैयारी करके पर्वतारोहण करते हैं।
विभिन्न अध्ययनों एवं आंकड़ों के अनुसार हाइपोथर्मिया से होने वाली करीब 50 प्रतिषत मौतें 64 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों में होती है। बुजुर्गों को कम उम्र के लोगों की तुलना में हाइपोथर्मिया से पीड़ित होने की आषंका बहुत अधिक होती है, क्योंकि ठंड से बचाव की शरीर की अपनी प्रणाली उम्र के साथ कमजोर पड़ती जाती है। इसके अलावा उम्र बढ़ने के साथ सबक्युटेनियस वसा में कमी आ जाती है और ठंड को महूसस करने की क्षमता भी घट जाती है। इसके अलावा शरीर की ताप नियंत्रण प्रणाली भी कमजोर पड़ जाती है।
बचाव
मैट्रो हास्पीटल्स एंड हार्ट इंस्टीच्यूट्स के ह्रदय रोग चिकित्सक डा. परनीस अरोड़ा बताते हैं कि जाड़े में दिल की हिफाजत का सबसे अच्छा तरीका शरीर को गर्म रखना, अधिक समय तक ठंड के संपर्क में रहने से बचना और खुली जगह में शारीरिक श्रम करने से परहेज करना है। इसके अलावा शराब, मादक पदार्थों, अधिक वसा वाले भोजन तथा मिठाइयों से भी बचना चाहिये।
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