मौसम ने करवट लेना शुरू कर दिया है और सर्दियों ने दस्तक देना शुरू कर दिया है। दिवाली के बाद से तापमान में गिरावट होने से हालांकि गर्मी से छुटकारा मिल गया है लेकिन इसके साथ ही वायरल संक्रमणों, सर्दी-जुकाम, श्वसन समस्या, दमा, फेफडे और हृदय की समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं।
आने वाले समय में पिछले साल की तुलना में अधिक ठंड पड़ने की आशंका जतायी जा रही है और ऐसे में विशेषज्ञों ने दमा एवं दिल के मरीजों को अधिक सावधानी बरतने की सलाह दी है।
प्रमुख हृदय रोग चिकित्सक डॉ. पुरूषोत्तम लाल कहते हैं कि सर्दियों में हृदय और उच्च रक्त चाप के मरीजों को सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि गर्मियों के मुकाबले सर्दी के मौसम में दिल के दौरे तथा स्ट्रोक से होने वाली मौत के मामले 26 से 36 प्रतिशत तक बढ़ जाते हैं। डॉ. परूषोत्तम लाल ने बताया कि बच्चों तथा फेफडे, दमा, मधुमेह, आर्थराइटिस और हृदय रोगों से प्रभावित बुजुर्गों के लिए अत्यधिक ठंड खतरनाक साबित हो सकती है। उनके अनुसार जाड़े में छाती में दर्द अथवा भारीपन और सांस लेने में दिक्कत जैसी शिकायतें लेकर उनके अस्पताल आने वाले मरीजों की संख्या में 30 प्रतिशत तक का इजाफा हो जाता है
दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा आदि राज्यों में कार्यरत मेट्रो ग्रुप ऑफ हॉस्पीटल्स के चैयरमैन डॉ. पुरुषोत्तम लाल के अनुसार ठंड के कारण उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोगों में दिल का दौरा पड़ने का खतरा काफी बढ़ जाता हैजाड़े के दिनों में अधिक खाना, शराब का अधिक सेवन और अधिक तनाव हृदय रोगों को आमंत्रण देते हैं।
डॉ. पुरूषोत्तम लाल के अनुसार जाड़े के दिनों में ठंड के कारण हृदय के अलावा मस्तिष्क और शरीर के अन्य अंगों की धमनियां सिकडती हैं जिससे रक्त प्रवाह में रूकावट आती है और रक्त के थक्के बनने की आशंका अधिक हो जाती है। ऐसे में न केवल दिल के दौरे पड़ने के बल्कि मस्तिष्क और शरीर के अन्य अंगों में स्ट्रोक पड़ने के खतरे अधिक होते हैं। चिकित्सकों का कहना है कि सर्दियों में दिन छोटे होते हैं और अक्सर इस मौसम में लोग अवसाद या तनाव के भी शिकार हो जाते हैं। व्यायाम करने की आदत और खान-पान को लेकर बरती जाने वाली सावधानी भी कम हो जाती है
ये सभी कारण मिलकर सर्दियों में हमारे दिल को काफी संवेदनशील बना देते हैं। सर्दियों के दिनों में हृदय रोगियों को सबसे अधिक सावधानी सुबह बरतने की जरूरत होती है क्योंकि विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि सर्दियों में 53 प्रतिशत हृदयाघात सुबह के समय ही होते हैं।
डॉ. पुरुषोत्तम लाल कहते हैं कि सर्दियों की सुबह के तीन घंटे दिल और उच्च रक्तचाप के मरीजों के लिए भारी पड़ते हैं। इस दौरान रक्तचाप काफी बढ़ जाता है। ऐसे में जरा-सी भी लापरवाही भारी पड़ सकती है। यहां तक कि युवाओं में रक्तचाप बढ़ने के लक्षण सुबह के समय सिर भारी रहने के तौर पर देखने को मिलते हैसर्दी की सुबह बढ़ता रक्तचाप केवल बुजुर्गों या बढ़ती उम्र के लोगों को ही परेशान नहीं करता, बल्कि युवा वर्ग और स्कूली बच्चों भी इसकी चपेट में लेता हैं। गर्मियों की तुलना में सर्दियों में रक्तचाप न केवल तेजी से बढ़ता है बल्कि तेजी से गिरता भी है। खासकर सर्दियों की सुबह में रक्तचाप बहुत तेजी से बढ़ता है। इस दौरान दिल की धड़कन और नब्ज भी बहुत तेजी से बढ़ती है। उच्च रक्तचाप और दिल के मरीजों के लिए सुबह के पहले तीन घंटे बेहद अहम होते हैं।
दुनियाभर में सर्दियों के दौरान ही सबसे ज्यादा दिल के दौरे के मामले सामने आते हैंध्ं भारत में भी दिल का दौरा पड़ने से सबसे ज्यादा मौतें सर्दियों में ही होती हैं। सर्दियों में ही उच्च रक्तचाप के सबसे ज्यादा मामले सामने आते हैं। सर्दियों में ही ब्रेन हैमरेज, नकसीर और पैरालाइसिस के सबसे ज्यादा मामले सामने आते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इस मौसम में अल्फा रिसेप्टर्स ज्यादा काम करते हैं। इसलिए रक्तचाप तेजी से बढ़ता है। डॉ. पुरूषोत्तम लाल के अनुसार इन कारणों के अलावा सर्दियों में लोग देरी से उठते हैं। इस दौरान लोग सुबह की सैर भी नहीं करते। सर्दियों में नमक, नमकीन या यूं कहें कि चटपटी चीजें खाने का ज्यादा मन करता हैनमक रक्तचाप बढ़ाता हैसर्दियों में लोग चाय भी ज्यादा पीते हैं। इसके अलावा सर्दियों में सिगरेट, शराब का सेवन भी बढ़ जाता है। यानी सर्दियों में हम वे सब काम करते हैं जिससे रक्तचाप बढ़ता हैइसलिए इस दौरान उच्च कॉलेस्टेरॉल और उच्च रक्तचाप के सभी मरीजों को सावधान रहने की जरूरत है।
डॉ. पुरूषोत्तम लाल का सुझाव है कि जाड़े में दिल की हिफाजत करने का सबसे अच्छा तरीका शरीर को गर्म रखना, अधिक समय तक ठंड के संपर्क में रहने से बचना और खुली जगह में शारीरिक श्रम करने से परहेज करना है। इसके अलावा शराब, मादक पदार्थों, अधिक वसा वाले भोजन तथा मिठाइयों से भी बचना चाहिएविशेषज्ञों के अनुसार सर्दियों में न केवल तेज ठंड से उत्पन्न हाइपोथर्मिया के कारण, बल्कि उच्च रक्तचाप, दिल के दौरे, दमा और मधुमेह के कारण असामयिक मौत की घटनाएं कई गुना बढ़ जाती हैं। हमारे देश में हर साल ऐसी मौतों की संख्या लाखों में होती है। हाइपोथर्मिया का खतरा एक साल से कम उम्र के बच्चों तथा बुजुर्गों को बहुत अधिक होता है। अनुमान है कि जब कभी भी तापमान सामान्य से एक डिग्री सेल्सियस घटता है तब करीब आठ हजार बुजुर्ग मौत के हवाले हो जाते हैं।
0 Comments: